"लावण्या शाह" के अवतरणों में अंतर
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+ | जब पर्बत के मँदिर पर,घँटियाँ नाद गुँजातीँ हैँ | ||
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+ | तब मनके दर्पण पर पावन माँ की छवि दीख जाती है! | ||
+ | जब कोहरे से लदी घाटीयाँ,कुछ पल ओझल हो जातीँ हैं | ||
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+ | तब तुम्हेँ खोजते मेरे नयनोँ के किरन पाखी मेँ समातीँ हैं | ||
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+ | याद रह गईँ, दूर चला मन! ये कैसा प्यारा बँधन! |
19:49, 28 जून 2008 का अवतरण
लावण्या शाह की रचनाएँ
जन्म | 22 नवम्बर 1950 |
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उपनाम | लावणी |
जन्म स्थान | मुम्बई, महाराष्ट्र, भारत |
कुछ प्रमुख कृतियाँ | |
फिर गा उठा प्रवासी - कविता संग्रह छप कर तैयार है | |
विविध | |
लावण्या शाह हिन्दी के सुप्रसिद्ध कवि पंडित नरेन्द्र शर्मा की सुपुत्री हैं। | |
जीवन परिचय | |
लावण्या शाह / परिचय |
- श्री सीता ~ स्तुति / लावण्या शाह
- अबोध का बोध पाठ / लावण्या शाह
- यादें / लावण्या शाह
- संक्रमण : गुलमोहर के फूल! / लावण्या शाह
- अहम ब्रह्मास्मि / लावण्या शाह
- युति / लावण्या शाह
- सौगात / लावण्या शाह
- सपनों का संसार / लावण्या शाह
- उच्चैश्रेवा / लावण्या शाह
- श्वेत श्याम / लावण्या शाह
- बीती रात का सपना / लावण्या शाह
- दोपहर के अलसाये पल / लावण्या शाह
- समय! धीरे धीरे चल / लावण्या शाह
- जीवंत प्रकृति / लावण्या शाह
- चित्र -वीथी / लावण्या शाह
- हर कोई चाहता है / लावण्या शाह
- प्रणामांजलि / लावण्या शाह
- गुलमोहर की छाँव में / लावण्या शाह
- माँ, मुझे फिर जनो / लावण्या शाह
- वसंत तो आया है पर / लावण्या शाह
- दीपावली मंगलमय हो / लावण्या शाह
- व्यथा गीत / लावण्या शाह
- चाँदनी / लावण्या शाह
- स्वर्ण कलश / लावण्या शाह
- रे मन / लावण्या शाह
- दहलीज / लावण्या शाह
- रात कहती है कहानी / लावण्या शाह
- पाती एक अजानी / लावण्या शाह
- जब काली रात बहुत गहराती है/लावण्या शाह
जब काली रात बहुत गहराती है, तब सच कहूँ, याद तुम्हारी आती है !
जब काले मेघोँ के ताँडव से,सृष्टि डर डर जाती है,
तब नन्हीँ बूँदोँ मेँ, सारे,अँतर की प्यास छलकाती है.
जब थक कर, विहँगोँ की टोली, साँध्य गगन मे खो जाती है,
तब नीड मेँ दुबके पँछी -सी, याद, मुझे अक्स्रर अकुलाती है!
जब भीनी रजनीगँधा की लता, खुदब~ खुद बिछ जाती है,
तब रात भर, माटी के दामन से, मिलकर, याद, मुझे तडपाती है !
जब हौलेसे सागर पर , माँझी की कश्ती गाती है,
तब पतवार के सँग कोई, याद दिल चीर जाती है!
जब पर्बत के मँदिर पर,घँटियाँ नाद गुँजातीँ हैँ
तब मनके दर्पण पर पावन माँ की छवि दीख जाती है!
जब कोहरे से लदी घाटीयाँ,कुछ पल ओझल हो जातीँ हैं
तब तुम्हेँ खोजते मेरे नयनोँ के किरन पाखी मेँ समातीँ हैं
वह याद रहा,यह याद रहा, कुछ भी तो ना भूला मन!
मेघ मल्हार गाते झरनोँ से जीत गया बैरी सावन!
हर याद सँजोँ कर रख लीँ हैँ मन मेँ,
याद रह गईँ, दूर चला मन! ये कैसा प्यारा बँधन!