भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"जहीर कुरैशी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
छो |
|||
पंक्ति 15: | पंक्ति 15: | ||
* '''[[समंदर ब्याहने आया नहीं है / जहीर कुरैशी]]''' (ग़ज़ल-संग्रह) | * '''[[समंदर ब्याहने आया नहीं है / जहीर कुरैशी]]''' (ग़ज़ल-संग्रह) | ||
* '''[[चांदनी का दु:ख / जहीर कुरैशी]]''' (ग़ज़ल-संग्रह) | * '''[[चांदनी का दु:ख / जहीर कुरैशी]]''' (ग़ज़ल-संग्रह) | ||
+ | * [[वो हिम्मत करके पहले अपने अन्दर से निकलते हैं / जहीर कुरैशी]] | ||
* [[वे शायरों की कलम बेज़ुबान कर देंगे / जहीर कुरैशी]] | * [[वे शायरों की कलम बेज़ुबान कर देंगे / जहीर कुरैशी]] | ||
* [[अँधेरे की सुरंगों से निकल कर / जहीर कुरैशी]] | * [[अँधेरे की सुरंगों से निकल कर / जहीर कुरैशी]] |
14:27, 22 अक्टूबर 2009 का अवतरण
जहीर कुरैशी
जन्म | 05 अगस्त 1950 |
---|---|
जन्म स्थान | चंदेरी, ज़िला गुना, मध्य प्रदेश, भारत |
कुछ प्रमुख कृतियाँ | |
लेखनी के स्वप्न (1975), एक टुकड़ा धूप (1979), चांदनी का दु:ख (1986), समंदर ब्याहने आया नहीं है(1992), भीड़ में सबसे अलग (2003) | |
विविध | |
जीवन परिचय | |
जहीर कुरैशी / परिचय |
- भीड़ में सबसे अलग / जहीर कुरैशी (ग़ज़ल संग्रह)
- समंदर ब्याहने आया नहीं है / जहीर कुरैशी (ग़ज़ल-संग्रह)
- चांदनी का दु:ख / जहीर कुरैशी (ग़ज़ल-संग्रह)
- वो हिम्मत करके पहले अपने अन्दर से निकलते हैं / जहीर कुरैशी
- वे शायरों की कलम बेज़ुबान कर देंगे / जहीर कुरैशी
- अँधेरे की सुरंगों से निकल कर / जहीर कुरैशी
- घर छिन गए तो सड़कों पे बेघर बदल गए / जहीर कुरैशी
- सब की आँखों में नीर छोड़ गए / जहीर कुरैशी
- हमारे भय पे पाबंदी लगाते हैं / जहीर कुरैशी
- उन्हें देखा गया खिलते कमल तक / जहीर कुरैशी
- दबंगों की अनैतिकता अलग है / जहीर कुरैशी
- आँखों की कोर का बडा हिस्सा तरल मिला / जहीर कुरैशी
- सपने अनेक थे तो मिले स्वप्न-फल अनेक / जहीर कुरैशी
- चित्रलिखित मुस्कान सजी है चेहरों पर / जहीर कुरैशी
- गगन तक मार करना आ गया है / जहीर कुरैशी
- मुस्कुराना भी एक चुम्बक है / जहीर कुरैशी
- फूल के बाद, फलना ज़रूरी लगा / जहीर कुरैशी