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03:19, 29 मई 2010 के समय का अवतरण
व्यक्ति बनकर आ
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रचनाकार | गुलाब खंडेलवाल |
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प्रकाशक | |
वर्ष | |
भाषा | हिन्दी |
विषय | |
विधा | कविता |
पृष्ठ | |
ISBN | |
विविध |
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- देखते-देखते, / गुलाब खंडेलवाल
- तू एक शक्ति है यह तो निर्विवाद है / गुलाब खंडेलवाल
- सीपियाँ बटोरते हुए साँझ हो गयी / गुलाब खंडेलवाल
- मैं सदा जिसके लिए भटकता रहा / गुलाब खंडेलवाल
- धरती में गड़ा बीज चिल्लाया-- / गुलाब खंडेलवाल
- आकाश का यह कौन-सा किनारा है / गुलाब खंडेलवाल
- मेरा मस्तक लज्जा से झुक जाता है / गुलाब खंडेलवाल
- कभी हम भी आकाश में उड़कर / गुलाब खंडेलवाल
- अभिव्यक्ति ने तो आकाश को छुआ है / गुलाब खंडेलवाल
- द्वार में द्वार में द्वार,/ गुलाब खंडेलवाल
- अब मेरी वीणा बाह्य उपकरणों से स्वच्छंद है;/ गुलाब खंडेलवाल
- दुःख ही सत्य है,,/ गुलाब खंडेलवाल
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