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'अना' क़ासमी
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मौलाना हारून 'अना' क़ासमी
जन्म | 28 फ़रवरी 1966 |
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उपनाम | अना |
जन्म स्थान | छतरपुर, मध्य प्रदेश, भारत। |
कुछ प्रमुख कृतियाँ | |
हवाओं के साज़ पर (ग़ज़ल-संग्रह)
मीठी सी चुभन (ग़ज़ल-संग्रह) | |
विविध | |
जीवन परिचय | |
'अना' क़ासमी / परिचय |
ग़ज़ल संग्रह
ग़ज़लें <sort order="asc" class="ul">
- रोज़ चिकचिक में सर खपायें क्या / 'अना' क़ासमी
- आराइशे-खुर्शीदो-क़मर किसके लिए है / 'अना' क़ासमी
- जाने क्या दुश्मनी है शाम के साथ / 'अना' क़ासमी
- आप इस छोटे से फ़ितने को जवां होने तो दो / 'अना' क़ासमी
- मेरा खूने-जिगर होने को है फिर / 'अना' क़ासमी
- उल्फ़त का फिर मन है बाबा / 'अना' क़ासमी
- फ़न तलाशे है दहकते हुए जज़्बात का रंग / 'अना' क़ासमी
- अक्सर मिलना ऐसा हुआ बस / 'अना' क़ासमी
- अब हलो हाय में ही बात हुआ करती है / 'अना' क़ासमी
- तेरी इन आंखों के इशारे पागल हैं / 'अना' क़ासमी
- चलो जाओ ,हटो कर लो तुम्हें जो वार करना है / 'अना' क़ासमी
- बर्थ पर लेट के हम सो गये आसानी से / 'अना' क़ासमी
- हमारे बस का नहीं है मौला ये रोज़े-महशर हिसाब देना / 'अना' क़ासमी
- बचा ही क्या है हयात में अब सुनहरे दिन तो निपट गये हैं / 'अना' क़ासमी
- वो अभी पूरा नहीं था हाँ मगर अच्छा लगा / 'अना' क़ासमी
- कभी हाँ कुछ, मेरे भी शेर पैकर में रहते हैं / 'अना' क़ासमी
- माने जो कोई बात, तो इक बात बहुत है / 'अना' क़ासमी
- बहुत वीरान लगता है, तिरी चिलमन का सन्नाटा / 'अना' क़ासमी
- ये फ़ासले भी, सात समन्दर से कम नहीं / 'अना' क़ासमी
- कभी वो शोख़ मेरे दिल की अंजुमन तक आए / 'अना' क़ासमी
- ख़बर है दोनों को दोनों से दिल लगाऊँ मैं / 'अना' क़ासमी
- यूँ इस दिले नादाँ से रिश्तों का भरम टूटा / 'अना' क़ासमी
- ये अपना मिलन जैसे इक शाम का मंज़र है / 'अना' क़ासमी
- दिल की हर धड़कन है बत्तिस मील में / 'अना' क़ासमी
- खैंची लबों ने आह कि सीने पे आया हाथ / 'अना' क़ासमी
- ये मक़ामे इश्क़ है कौनसा, कि मिज़ाज सारे बदल गए / 'अना' क़ासमी
- उससे कहना कि कमाई के न चक्कर में रहे / 'अना' क़ासमी
- पैसा तो खुशामद में, मेरे यार बहुत है / 'अना' क़ासमी
- उसको नम्बर देके मेरी और उलझन बढ़ गई / 'अना' क़ासमी
- बचा ही क्या है हयात में अब सुनहरे दिन तो निपट गए हैं / 'अना' क़ासमी
- उस क़ादरे-मुतलक़ से बग़ावत भी बहुत की / 'अना' क़ासमी
- फ़न तलाशे है दहकते हुए जज़्बात का रंग / 'अना' क़ासमी
- कैसा रिश्ता है इस मकान के साथ / 'अना' क़ासमी
- कुछ चलेगा जनाब, कुछ भी नहीं / 'अना' क़ासमी
- ये शबे-अख़्तरो-क़मर चुप है / 'अना' क़ासमी
- छू जाए दिल को ऐसा कोई फ़न अभी कहाँ / 'अना' क़ासमी
- जो ज़बाँ से लगती है वो कभी नहीं जाती / 'अना' क़ासमी
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