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बावरिया बरसाने वाली / प्रेम नारायण 'पंकिल'
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द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:05, 24 जनवरी 2009 का अवतरण
- व्रजमंडल नभ में उमड़-घुमड़ घिर आए आषाढ़ी बादल / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- थे नाप रहे नभ ओर-छोर चढ़ धारधार पर धाराधर / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- पी कहाँ पी कहाँ रटे जा रहा था पपीहरा उत्पाती / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- भर रही अंग में थी अनंग-मद सिहर लहर पुरवईया की / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- सिक्ता कर रही सुरंग चूनरी ऋतु पावसी निगोड़ी थी / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- बोली "सुधि करो प्राण !कहते थे हमने देखा है सपना / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- कहते "तव अरुण राग पद से भू अम्बर छपना देखा था / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- था कहा "धूसरित ग्रीष्म गगन या सरस बरसता पावस हो। / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- तुम मसृण पाणि मम पड़ सहला सो गए प्राण ले मधु सपना। / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- था कहा "अधर-रस-सुधा पिला" तन्वंगी ने तब था पूछा । / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- सुधि करो कहा था तुमने ही "चाहता नहीं कुछ और प्रिये! / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- सुधि करो प्राण पूछा तुमने "क्यों मौन खड़ी ब्रजबाला हो? / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- कहते थे "मौन उषा गवाक्ष से प्राण! झांकता सविता हो / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- सुधि करो प्राण पूछा तुमने " वह पीर प्रिये क्या होती है / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- सुधि करो प्राण थी अंकगता किसलय काया अधखुले नयन। / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- भूलते न क्षण प्रियतम इंगित से तुमने मुझे बुलाया था। / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- सुधि करो कहा "क्यों स्नेह-सलिल संकुल तेरे कुवलय लोचन / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- पूछा "क्यों उर्मिल उदधि चंद्रकर झूम झूम चूमता सदा / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- पूछा था " क्यों अन्तक करस्थ सायक सहलाता मृगछौना / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- पूछा तुमने अति पास बैठ " अब भी न जान पाया आली / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- सुधि करो कुञ्ज से उमड़-घुमड़ देखती स्निग्ध श्यामल जलधर / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- सुधि करो प्राण ! गोविन्द-गीत 'पंकिल' स्वर करती थी गायन / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- सुधि करो प्राण ! था कहा कभीं "चिर अमर वल्लभे वे मधुक्षण / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- कर्णावलम्बि कम्पित कुंडल स्वेदाम्बु-सिक्त मनसिज-मथिता / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- अगणित मधु प्रणय-केलि-क्षणिकाएं मानस पट पर लहरातीं / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- तेरे लालित विहंग मुझको दुलरा करते पवानारोहण / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- परिमल-सम्पुट पिक-स्वर-गुंजित उन्मन मीठे तीसरे पहर / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- मम उरज प्रान्त पर शांत बाल सा रख कपोल थे किए शयन/ प्रेम नारायण 'पंकिल'
- कैसे कहकर थे फूट पड़े छोडो न अकेला मुझे प्रिये / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- सुधि करो प्राण कहते थे तुम क्यों बात-बात में हंसती हो / प्रेम नारायण 'पंकिल'