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बावरिया बरसाने वाली / प्रेम नारायण 'पंकिल'
Kavita Kosh से
प्रेम नारायण 'पंकिल'
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रचनाकार | प्रेम नारायण 'पंकिल' |
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प्रकाशक | |
वर्ष | |
भाषा | हिन्दी |
विषय | खंडकाव्य |
विधा | |
पृष्ठ | |
ISBN | |
विविध |
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
- व्रजमंडल नभ में उमड़-घुमड़ घिर आए आषाढ़ी बादल / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- थे नाप रहे नभ ओर-छोर चढ़ धारधार पर धाराधर / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- पी कहाँ पी कहाँ रटे जा रहा था पपीहरा उत्पाती / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- भर रही अंग में थी अनंग-मद सिहर लहर पुरवईया की / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- सिक्ता कर रही सुरंग चूनरी ऋतु पावसी निगोड़ी थी / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- बोली "सुधि करो प्राण !कहते थे हमने देखा है सपना / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- कहते "तव अरुण राग पद से भू अम्बर छपना देखा था / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- था कहा "अधर-रस-सुधा पिला" तन्वंगी ने तब था पूछा । / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- सुधि करो कहा था तुमने ही "चाहता नहीं कुछ और प्रिये! / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- था कहा "धूसरित ग्रीष्म गगन या सरस बरसता पावस हो। / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- तुम मसृण पाणि मम पड़ सहला सो गए प्राण ले मधु सपना। / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- सुधि करो प्राण पूछा तुमने "क्यों मौन खड़ी ब्रजबाला हो? / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- कहते थे "मौन उषा गवाक्ष से प्राण! झांकता सविता हो / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- सुधि करो प्राण पूछा तुमने " वह पीर प्रिये क्या होती है / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- सुधि करो प्राण थी अंकगता किसलय काया अधखुले नयन। / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- भूलते न क्षण प्रियतम इंगित से तुमने मुझे बुलाया था। / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- सुधि करो कहा "क्यों स्नेह-सलिल संकुल तेरे कुवलय लोचन / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- पूछा "क्यों उर्मिल उदधि चंद्रकर झूम झूम चूमता सदा / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- पूछा था " क्यों अन्तक करस्थ सायक सहलाता मृगछौना / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- पूछा तुमने अति पास बैठ " अब भी न जान पाया आली / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- सुधि करो कुञ्ज से उमड़-घुमड़ देखती स्निग्ध श्यामल जलधर / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- सुधि करो प्राण ! गोविन्द-गीत 'पंकिल' स्वर करती थी गायन / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- सुधि करो प्राण ! था कहा कभीं "चिर अमर वल्लभे वे मधुक्षण / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- कर्णावलम्बि कम्पित कुंडल स्वेदाम्बु-सिक्त मनसिज-मथिता / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- अगणित मधु प्रणय-केलि-क्षणिकाएं मानस पट पर लहरातीं / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- तेरे लालित विहंग मुझको दुलरा करते पवानारोहण / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- परिमल-सम्पुट पिक-स्वर-गुंजित उन्मन मीठे तीसरे पहर / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- मम उरज प्रान्त पर शांत बाल सा रख कपोल थे किए शयन/ प्रेम नारायण 'पंकिल'
- कैसे कहकर थे फूट पड़े छोडो न अकेला मुझे प्रिये / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- सुधि करो प्राण कहते थे तुम क्यों बात-बात में हंसती हो / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- प्रिय ! इस विस्मित नयना को कब आ बाँहों में कस जाओगे / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- मम-अधर दबा करते थे सी-सी ध्वनित सम्पुटक चुम्बन जब / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- सुधि करो अंक ले मुझे कहा था अभीं अभीं चंदा निकला है / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- था कहा "शुक्र झांकता न मलिना उडुगण की चटकारी है / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- था कहा "पिंजरित कीर मूक है हरित पंख में चंचु छिपा / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- तुमने ही तो था कहा प्राण! "सखि कितना कोमल तेरा तन / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- कहते थे प्राण "अरी, तन्वी! मैं कृष कटि पर हो रही विकल / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- था कहा सुमन-मेखला-वहन से बढ़ती श्वांस समीर प्रबल / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- क्या कहूं आज ही विगत निशा के सपने में आये थे प्रिय / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- निज इन्द्रनीलमणि-सा श्यामल कर में ले उत्तरीय-कोना / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- अधरों पर चाहा हास किन्तु लोचन में उमड़ गया पानी / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- सुधि करो प्राण! कहते गदगद "प्राणेश्वरि, तुम जीवनधन हो / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- सुधि करो प्राण! कहते "मृदुले! तारुण्य न फ़िर फ़िर आता है / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- था कहा "प्रिये! लहरते सुमन ज्यों फ़ेनिल-सरिता बरसाती / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- था कहा विहँस "मृगनयनी! मेरा कर हथेलियों में ले लो / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- सुधि करो प्राण! कहते थे तुम,"बस प्राणप्रिये! इतना करना / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- सुधि करो कहा था,"कभीं निभृत में सजनी! तेरा घूँघट-पट। / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- प्रिय! झुका कदम्ब-विटप-शाखा तुम स्थित थे कालिन्दी-तट पर / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- सुधि करो कहा था, "प्रेम-पर्व पर पंकिल उल्कापात न हो / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- क्या नहीं कहा प्रिय! "मंजु-अँगुलियाँ खेलें प्रेयसि-अलकों में / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- कहते थे हे प्रिय! “स्खलित-अम्बरा मुग्ध-यौवना की जय हो / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- सुधि करो प्राण! वह भी कैसी मनहरिणी निशा अनूठी थी / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- “पिंडलि पर आँकू”, कहा श्याम “लतिका दल में खद्योत लिये / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- था कहा "पयोधर पर कर मेरे नील-झीन-कञ्चुकी धरें / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- उचटी अनमनी प्राणधन! जब मैं विकल कर रही थी रोदन। / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- कहते "इस प्रणयी से पूछो क्यों व्योम जलद से भर जाता। / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- कैसे भूलूँ प्रिय, कहते थे ”ये बड़े लालची हैं लोचन । / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- कहते "जब सजनि! सजल घन में छिपती-दुरती रजनीश-कला। / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- चाहती मौन हो रहूँ कहूँ प्रिय तुमसे उर-उच्छ्वास नहीं। / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- स्मित सिहर कमल कोमल कपोल पर मल प्रसून-परिमल ‘पंकिल’ / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- तुम जिसके हित नित रहे विकल जिसकी दिन-रात प्रतीक्षा थी / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- कहते थे प्रिय! ”जब सिन्दूरी सन्ध्या में उमगी मधुबाला / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- था कहा ‘प्रिये’ ‘पंकिल’ प्रणयी की तरूण वयस बीतती नहीं / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- सुधि करो प्राण! पूछा हमने ‘प्रिय! जीवन कैसा नाटक है / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- पूछा ‘यह कैसा द्वन्द्व, केलि चल रही कहीं है कोहबर में। / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- सुधि करो कहा था प्रिय! तुमने “थी मधुर गीत गा रही प्रिये! / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- सुधि करो प्राण वह दिवस गगन में घिरीं घटायें थी काली / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- विस्मृत न हाय होतीं प्रियतम वे विरह-वेदना की घड़ियाँ / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- कहते थे "एक ओर संसृति-संस्तुत प्रतिमा-पुराण-ईश्वर / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- कितने दुलार से कहते थे प्रिय! “हमनें पा लीं हैं राहें / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- देखते मनोहर सरि जन में हिलता पद-पिंडलि छूता जल / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- चमकता नयन में था काजल बादल-सी प्राण! हुई पुतली / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- था कहा ”प्रिये! मत ठुकराओ हो प्राय! प्रेरणा-आस तुम्हीं / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- तुम रहे भाल पर झुके प्राण! मैं रही विनिद्रा-बीच पड़ी / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- ”तेरी सुषमा-रस पियें“, कहा, “बस यही प्राण की प्यास रहे / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- कैसे विस्मृत कर दूँ प्रिय! जो उस निशि की मधुर कहानी है / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- अभिरामा निद्रा की गोदी में सोये तुम कर बन्द नयन / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- हम डाल आँख में आँख परस्पर लगे निरखने रूद्ध-गिरा / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- काँपते पाणि में उठा लिया प्रिय तुमने फिर रस-भरित चषक / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- सुधि करो प्राण! पूछा मैंने ”प्रिय! क्यों हॅंसता है सदा सुमन / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- नव विटप-वृन्त पर गुम्फित सौरभ- नमिता कमनीया लतिका / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- आ रहा स्मरण प्रियतम! कहते थे ”सुमुखि! स्वर्ग का नन्दन वन / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- कहते ”मंथर मृदु मलयानिल मघवा को सुलभ कहाँ सजनी / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- था कहा, “रम्य हृदयेश्वरि! राका-पति रत्नाकर-रहस मिलन / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- दृगगोचर कब होंगे प्रियतम! अब अलस सिहरती काया है / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- अगणित उडुगण-उज्ज्वल-अक्षर में व्योम भेजता संदेशा / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- रंजित-सुरेश-धनु शरद-पूर्णिमा उदधि, उषा, विहंग-कलरव / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- सौन्दर्य-सृष्टि-संवेदन में कितना संजीवन अमृत है / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- कर रहे निवेदन थे प्रियतम! “वह प्राण नाटिका रच डालो / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- सुधि करो कहा करते थे सकरुण ”सुन्दरि! दुख निर्मूल करो / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- कहते थे, ”मेरी दृगपुतरी! मुझको न स्वयं से दूर करो / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- हमको जीवनधन! जगा रहे थे बैठ प्रेम से सिरहाने / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- तुमने मेरा शरदेन्दु भाल फिर हौले हौले सहलाया / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- था कहा ”पहेली बूझ रहे प्रेयसि, कबरी-श्लथ म्लान सुमन / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- बोले ”सित दशने! भानु प्रसव पीड़ा से अरूण हुई प्राची / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- कहते ”उमड़ी परिरंभण की तृप्तिदा त्रिवेणी” प्राणेश्वर / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- सुधि करो प्राण! पावस की घन-बोझिल सन्ध्या अभिरामा थी / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- पूछा था एक बार “सागर क्यों खोले धवल ऊर्मि-अंचल / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- पूछा था “हे प्रियतम! कैसे तुम अगणित स्वर गढ़ लेते हो / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- पूछा था, “क्यों करता ऐसा प्रियतम! अमिताभ अंशुमाली / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- था कहा कभीं “हे प्राणेश्वरि! मत पूछो कैसे जीता हॅ / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- प्रेयसि-विरहित होता न तल्प मम मधु-धन होता अल्प नहीं” / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- निर्मोही कैसे हुए प्राण! किस भाँति बिसार दिया ममता / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- उमड़े अम्बर में प्रिय! आषाढ़ी घन बैठी रोती हूँ मैं / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- तुम मृदुल सुमन से कभीं हमारे प्रियतम! पाटल चिबुक छुये / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- नयनों से पिघल-पिघल कज्जल कर रहा कपोलों को श्यामल / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- जाने हमको क्या हुआ आज इतना व्याकुल है मेरा मन / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- गिरि मौन, धरित्री मौन, मौन नभ अनुपम मौन सुमन-श्वाँसे / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- वह दिन न भूलता पूछ रहे “कैसे आया यह परिवर्तन / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- कहते “अब होती मुदित देख निर्जन में पृथु उरु उर-वर्धन / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- कहते थे “कैसे हुआ घटित चुपके शैशव-यौवन संगम / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- पूछते ”कौन सी प्रबल प्रीति का हो प्रवाह दो बता प्रिये / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- पूछते ”कामिनी-कर-झंकृत किस वीणा की झंकार प्रिये / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- मेरी प्रति चेष्टाओं के स्रष्टा, द्रष्टा, भोक्ता, प्राण! सुनो / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- “क्षण-क्षण डूबती किरण-सी करती विमल सलिल-संक्षोभ प्रिये / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- कहते “था चिपक रहा भींगा पट काया से कर होड़ प्रिये! / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- “जाते थे उभर आर्द्र अम्बर से पीन पयोधर पीत प्रिये! / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- पूछा, “उस सुमन-मुकुल के हित क्यों रही नहीं अनुकूल प्रिये / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- “जोहते रह गये विकच कुसुम पर तुमने हे वृषभानु-लली! / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- शत बार विनय है इस अभागिनी के पुर में मत चन्द्र उगो / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- था कहा “तुम्हारी स्मृति ने ही नृप किया रहा मैं वनवासी! / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- तुम ही तो कहते थे, “सहता हूँ अगणित कटु आघात प्रिये! / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- कहते थे, “सुन्दरि! गंधानिल-तव अंचल-कोर कुसुम्बी ले / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- यह करूण विनय है प्राणनाथ! उस दिन अवश्य तुम आ जाना / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- जब मेरे निखरे कंचन-तन में प्रिय! भूकम्प समा जाये / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- सुधि करो प्राण! छू-छूकर मेरा मृदु तन शीतल चन्द्रोपम / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- कहते तुम, “जब जलक्रीडन करती प्रेमद सुन्दरि कोटि गुना / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- जो रत्नमालिका से निबद्ध थी बीच-बीच में कुसुम-खचित / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- कहते थे ”तेरे युगल नयन ज्यों जलक्रीड़ा करती मछली / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- चंचल मयूर-चन्द्रिका भाल मेरे मानस-सर के मराल / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- कैसे विस्मृत हो गया तुम्हें प्रिय! केलि-कुंज कालिन्दी-तट / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- सुधि करो कहा था, ”जहाँ चरण रखती पंकज खिल जाते हैं / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- सरिता-तट की निशि-केलि-कथा पूछा था भाव-विभोर कभीं / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- “तुमको कितनी ही बार निहारा”, कहते थे, “लोचन-पुतरी / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- कहते, “माधवी-लता-सी सखि! गदराई जाती सिहर-सिहर / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- आ जा हे प्राणों के राजा! अब याद तुम्हारी गाढ़ हुई / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- वह स्वप्न नहीं भूलता प्राणधन! थी बसंत की विभावरी / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- ढॅंक सकी न उरज-कुम्भ को कंचुकि अलक-गुँथी माला बिखरी / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- कब से तेरा पथ जोह रही हूँ सजल बिछा पलकें प्रियतम / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- छू सकती केश-कलाप नहीं कर सकती नव जूड़ा-बन्धन / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- मखमली वसन से ढँक दूँगी प्राणेश! सदन का वातायन / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- था कहा प्राण! तुमने मुझसे, “ढल रही यामिनी ढला करे / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- कहते थे प्राण! “अखिल जग में गुंजित दुख-द्वन्द्व और ही है / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- कहते, “रंजित करतीं जग को अमिता शरदेन्दु कलायें हैं / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- कंटकित हो गयी स्निग्ध सेज डॅंस रहा सर्पिणी-सदृश सदन / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- आ जा व्रजपति के परम दुलारे! माखन तुम्हें खिलाऊँगी / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- आशा ले घूम रही पगली अब आओगे, अब आओगे / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- उर मेरा मेरे मनभावन! यह नित्य तुम्हारा ही घर है / प्रेम नारायण 'पंकिल'
- बस एक तुम्हारे सिवा श्याम! है अन्य किसी की चाह नहीं / प्रेम नारायण 'पंकिल'