ऊषा
रचनाकार | विजयदान देथा 'बिज्जी' |
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प्रकाशक | राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर |
वर्ष | 1949 |
भाषा | हिन्दी |
विषय | कविता |
विधा | |
पृष्ठ | 80 |
ISBN | |
विविध |
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- मैं चिर मौन भी तो क्योंकर / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- मुझ मानव का, मानस मृणाल ही क्यों / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- नयनों में रात बिता दूँगा ! / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- जाग्रत कर चिर—प्रसुप्त प्यार मेरा / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- मेरे रोम—रोम में ऊषा छाई ! / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- इतनी तो मेरी भी सुन लो ! / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- मेरा तो स्वप्न बना रखना ! / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- मैं तुमको न मिटने दूँगा ! / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- किसका सन्देशा लाई हो / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- क्या यह आमन्त्रण गान सुनाया ? / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- मेरे अन्तर—तम में छिप जाओ ! / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- तेरे श्रम का ही है प्रतिफल ! / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- मेरे ये दो नयन सितारे ! / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- तुम्हारा व्यक्तित्व है कितना प्रबल ! / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- करुणा की सजीव सी प्रतिमा हो तुम / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- प्रसव पीड़ा से पीड़ित ऊषा ! / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- मैं तुमको पा लूँगा ! / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- यह निष्ठुर-सी जल-क्रीड़ा क्यों ? / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- तुम अवगुण्ठन ही के अन्दर ! / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- है क्षणिक तुम्हारा भी यौवन ! / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- तेरी निष्ठुरता का अनुभव कर / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- आज कितनी लाल ऊषा ! / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- चिर अदृश्य शून्य भी तो रे / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- कितना तेरा अन्तर श्यामल ! / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- आचिर अरुणिमा पर / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- इतनी तो दया-भर ला दो ! / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- दिनकर ! क्या सन्देशा लाये ? / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- तुम्हें प्यार करना तो असम्भव रे असम्भव ! / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- ऐ निष्ठुर दुनिया वालो / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- मुझे तुम-सा ही गाना सिखला दो ! / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- एक विनय तुम से यह मेरी ! / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- तेरी क्या अभिलाषा ? / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- यह प्रेम की अभिव्यंजना ! / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- लो आया भिखारी द्वार तुम्हारे / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- सौन्दर्य की झीनी गगरी में तेरे / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- यह वर्षा जल या विरहा जल ? / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- न मालूम चह कल कब आएगा ? / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- रे ओ निर्मम निष्ठुर प्यार मेरे ! / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- सुख की मृगतृष्णा के पीछे / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- तू मेरा अपना है / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- यह कब का बदला ? / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- मेरी इस गहन व्यथा पर / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- रजनी के अपरिमित तम-सिन्धु में / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- सहर्ष दो विदाई / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- तम के अपरिमित उर-अन्तर में / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- तुम क्यों इतने प्रकाशवान ? / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- रे ओ धूर्त दिवाकर ! / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- इस ज्योतिर्मय स्वर्णिम प्रकाश की / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- बन्दी ! यह कैसा पागलपन ? / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- अभिशापित / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- अन्तर / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- आया हूँ जती के तल पर ! / विजयदान देथा 'बिज्जी'