भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"लावण्या शाह" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 42: पंक्ति 42:
 
* [[रात कहती है कहानी / लावण्या शाह]]
 
* [[रात कहती है कहानी / लावण्या शाह]]
 
* [[पाती एक अजानी / लावण्या शाह]]
 
* [[पाती एक अजानी / लावण्या शाह]]
 +
*[[जब काली रात बहुत गहराती है/लावण्या शाह]]
 +
  जब काली रात बहुत गहराती है, तब सच कहूँ, याद तुम्हारी आती है !
 +
 +
 +
जब काले मेघोँ के ताँडव से,सृष्टि डर डर जाती है,
 +
 +
 +
तब नन्हीँ बूँदोँ मेँ, सारे,अँतर की प्यास छलकाती है.
 +
 +
 +
जब थक कर, विहँगोँ की टोली, साँध्य गगन मे खो जाती है,
 +
 +
 +
तब नीड मेँ दुबके पँछी -सी, याद, मुझे अक्स्रर अकुलाती है!
 +
 +
 +
जब भीनी रजनीगँधा की लता, खुदब~ खुद बिछ जाती है,
 +
 +
 +
तब रात भर, माटी के दामन से, मिलकर, याद, मुझे तडपाती है !
 +
 +
 +
जब हौलेसे सागर पर , माँझी की कश्ती गाती है,
 +
 +
 +
तब पतवार के सँग कोई, याद दिल चीर जाती है!
 +
जब पर्बत के मँदिर पर,घँटियाँ नाद गुँजातीँ हैँ
 +
 +
 +
तब मनके दर्पण पर पावन माँ की छवि दीख जाती है!
 +
जब कोहरे से लदी घाटीयाँ,कुछ पल ओझल हो जातीँ हैं
 +
 +
 +
तब तुम्हेँ खोजते मेरे नयनोँ के किरन पाखी मेँ समातीँ हैं
 +
 +
 +
वह याद रहा,यह याद रहा, कुछ भी तो ना भूला मन!
 +
 +
 +
मेघ मल्हार गाते झरनोँ से जीत गया बैरी सावन!
 +
 +
 +
हर याद सँजोँ कर रख लीँ हैँ मन मेँ,
 +
 +
 +
याद रह गईँ, दूर चला मन! ये कैसा प्यारा बँधन!

19:49, 28 जून 2008 का अवतरण

लावण्या शाह की रचनाएँ

लावण्या शाह
Lavanya.jpg
जन्म 22 नवम्बर 1950
निधन
उपनाम लावणी
जन्म स्थान मुम्बई, महाराष्ट्र, भारत
कुछ प्रमुख कृतियाँ
फिर गा उठा प्रवासी - कविता संग्रह छप कर तैयार है
विविध
लावण्या शाह हिन्दी के सुप्रसिद्ध कवि पंडित नरेन्द्र शर्मा की सुपुत्री हैं।
जीवन परिचय
लावण्या शाह / परिचय
कविता कोश पता
www.kavitakosh.org/{{{shorturl}}}




 जब काली रात बहुत गहराती है, तब सच कहूँ, याद तुम्हारी आती है ! 


जब काले मेघोँ के ताँडव से,सृष्टि डर डर जाती है,


तब नन्हीँ बूँदोँ मेँ, सारे,अँतर की प्यास छलकाती है.


जब थक कर, विहँगोँ की टोली, साँध्य गगन मे खो जाती है,


तब नीड मेँ दुबके पँछी -सी, याद, मुझे अक्स्रर अकुलाती है!


जब भीनी रजनीगँधा की लता, खुदब~ खुद बिछ जाती है,


तब रात भर, माटी के दामन से, मिलकर, याद, मुझे तडपाती है !


जब हौलेसे सागर पर , माँझी की कश्ती गाती है,


तब पतवार के सँग कोई, याद दिल चीर जाती है! जब पर्बत के मँदिर पर,घँटियाँ नाद गुँजातीँ हैँ


तब मनके दर्पण पर पावन माँ की छवि दीख जाती है! जब कोहरे से लदी घाटीयाँ,कुछ पल ओझल हो जातीँ हैं


तब तुम्हेँ खोजते मेरे नयनोँ के किरन पाखी मेँ समातीँ हैं


वह याद रहा,यह याद रहा, कुछ भी तो ना भूला मन!


मेघ मल्हार गाते झरनोँ से जीत गया बैरी सावन!


हर याद सँजोँ कर रख लीँ हैँ मन मेँ,


याद रह गईँ, दूर चला मन! ये कैसा प्यारा बँधन!