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"कुछ कविताएँ / शमशेर बहादुर सिंह" के अवतरणों में अंतर

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|विविध=--यह पुस्तक खण्डेलवाल प्रेस, वाराणसी में मुद्रित हूई थी और तब इसका मूल्य था 2.50 रूपये । बाद में राधाकृष्ण प्रकाशन, नई दिल्ली ने इसे शमशेर जी के दूसरे संग्रह 'कुछ और कविताएँ' के साथ 1984 में फिर से
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|विविध=--यह पुस्तक खण्डेलवाल प्रेस, वाराणसी में मुद्रित हूई थी और तब इसका मूल्य था 2.50 रूपये । बाद में राधाकृष्ण प्रकाशन, नई दिल्ली ने इसे शमशेर जी के दूसरे संग्रह 'कुछ और कविताएँ' के साथ 1984 में फिर
प्रकाशित किया । मूल पुस्तक में कविताओं की सूची के बाद एक नोट था, जिसे हम ज्यों का त्यों यहाँ दे रहे हैं ।
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से प्रकाशित किया । मूल पुस्तक में कविताओं की सूची के बाद एक नोट था, जिसे हम ज्यों का त्यों यहाँ दे रहे हैं ।
 
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जिन कविताओं पर रचनाकाल नहीं है, वह प्राय: '५६-'५७-'५८ की हैं : लगभग सभी इससे पूर्व प्रकाशित । इनमें "चीन" सब से हाल की है : इसको प्रस्तुत रूप में आते-आते चाहे डेढ़ साल लग गया हो, मगर सुधार-संवार प्रेस में देते वक्त भी चलता रहा; और यहाँ पर श्री जगत शंखधर की सुरुचि का संयोग बहुत उपयोगी सिद्ध हुआ । (बहरहाल, कहीं यह न समझ लिया जाय कि चीनी भाषा मुझे ज़रा भी आती है! यह रौ दूसरी है। )
 
जिन कविताओं पर रचनाकाल नहीं है, वह प्राय: '५६-'५७-'५८ की हैं : लगभग सभी इससे पूर्व प्रकाशित । इनमें "चीन" सब से हाल की है : इसको प्रस्तुत रूप में आते-आते चाहे डेढ़ साल लग गया हो, मगर सुधार-संवार प्रेस में देते वक्त भी चलता रहा; और यहाँ पर श्री जगत शंखधर की सुरुचि का संयोग बहुत उपयोगी सिद्ध हुआ । (बहरहाल, कहीं यह न समझ लिया जाय कि चीनी भाषा मुझे ज़रा भी आती है! यह रौ दूसरी है। )
 
मेरे इस संग्रह के लिए कविताओं का चयन श्री जगत शंखधर ने ही किया है ।
 
मेरे इस संग्रह के लिए कविताओं का चयन श्री जगत शंखधर ने ही किया है ।

01:33, 29 जून 2007 का अवतरण


कुछ कविताएँ
से प्रकाशित किया । मूल पुस्तक में कविताओं की सूची के बाद एक नोट था, जिसे हम ज्यों का त्यों यहाँ दे रहे हैं । नोट : जिन कविताओं पर रचनाकाल नहीं है, वह प्राय: '५६-'५७-'५८ की हैं : लगभग सभी इससे पूर्व प्रकाशित । इनमें "चीन" सब से हाल की है : इसको प्रस्तुत रूप में आते-आते चाहे डेढ़ साल लग गया हो, मगर सुधार-संवार प्रेस में देते वक्त भी चलता रहा; और यहाँ पर श्री जगत शंखधर की सुरुचि का संयोग बहुत उपयोगी सिद्ध हुआ । (बहरहाल, कहीं यह न समझ लिया जाय कि चीनी भाषा मुझे ज़रा भी आती है! यह रौ दूसरी है। ) मेरे इस संग्रह के लिए कविताओं का चयन श्री जगत शंखधर ने ही किया है । एक कविता को सचित्र देना पड़ा । वास्तव में "घनीभूत पीड़ा" को जिन रेखाओं के संकेत और सहारे से शब्द मिले, वे--मुझे आज वर्षों बाद भी लगता है कि--उसका अभिन्न अंग हैं । "वह सलोना जिस्म" लिखते समय हज़रत फ़िराक़ गोरखपुरी के कलाम का कुछ असर, स्पष्ट ही, मेरे मन पर था । संग्रह की अंतिम कविता गत नवम्बर ('५८) में अज्ञेय जी के कुछ इधर के कविता-संग्रह पढ़ते समय अनायास ही लिख गयी । -- शमशेर बहादुर सिंह
रचनाकार शमशेर बहादुर सिंह
प्रकाशक जगत शंखधर, वाराणसी-1
वर्ष मई, 1959
भाषा हिन्दी
विषय
विधा
पृष्ठ 60
ISBN
विविध
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।