भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"इरशाद ख़ान सिकन्दर" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|नाम=इरशाद खान सिकंदर | |नाम=इरशाद खान सिकंदर | ||
|उपनाम=सिकंदर | |उपनाम=सिकंदर | ||
− | |जन्म= | + | |जन्म=08 अगस्त 1982 |
|जन्मस्थान=उत्तर प्रदेश के बस्ती ज़िले में | |जन्मस्थान=उत्तर प्रदेश के बस्ती ज़िले में | ||
|कृतियाँ= | |कृतियाँ= | ||
पंक्ति 13: | पंक्ति 13: | ||
}} | }} | ||
{{KKShayar}} | {{KKShayar}} | ||
+ | {{KKCatUttarPradesh}} | ||
+ | ====इरशाद खान सिकंदर की कुछ प्रतिनिधि रचनाएँ==== | ||
* [[बन्द दरवाज़े खुले रूह में दाख़िल हुआ मैं / इरशाद खान सिकंदर]] | * [[बन्द दरवाज़े खुले रूह में दाख़िल हुआ मैं / इरशाद खान सिकंदर]] | ||
* [[ख़ामोशी की बर्फ़ पिघल भी सकती है / इरशाद खान सिकंदर]] | * [[ख़ामोशी की बर्फ़ पिघल भी सकती है / इरशाद खान सिकंदर]] |
09:58, 8 अगस्त 2020 के समय का अवतरण
इरशाद खान सिकंदर
जन्म | 08 अगस्त 1982 |
---|---|
उपनाम | सिकंदर |
जन्म स्थान | उत्तर प्रदेश के बस्ती ज़िले में |
कुछ प्रमुख कृतियाँ | |
विविध | |
जीवन परिचय | |
इरशाद खान सिकंदर/ परिचय |
इरशाद खान सिकंदर की कुछ प्रतिनिधि रचनाएँ
- बन्द दरवाज़े खुले रूह में दाख़िल हुआ मैं / इरशाद खान सिकंदर
- ख़ामोशी की बर्फ़ पिघल भी सकती है / इरशाद खान सिकंदर
- सर पे बादल की तरह घिर मेरे / इरशाद खान सिकंदर
- करम है, दायरा दिल का बढ़ा तो / इरशाद खान सिकंदर
- वगरना उँगलियों पर नाचता क्या / इरशाद खान सिकंदर
- फ़र्ज़ के बंधन में हर लम्हा बँधा रहता हूँ मैं / इरशाद खान सिकंदर
- बहुत चुप हूँ कि हूँ चौंका हुआ मैं / इरशाद खान सिकंदर
- रिश्ता बहाल काश फिर उसकी गली से हो / इरशाद खान सिकंदर
- सोचने बैठा था मैं दिल की लगी / इरशाद खान सिकंदर
- मिरी ग़ज़लों में जिसने चांदनी की / इरशाद खान सिकंदर
- ज़मीनें आसमां छूने लगी हैं / इरशाद खान सिकंदर
- काग़ज़ पे दिल के तेरी यादों का दस्तखत है / इरशाद खान सिकंदर
- कितना अच्छा था / इरशाद खान सिकंदर
- चीख़ रहे हैं सन्नाटे / इरशाद खान सिकंदर
- तुमने मुझको समझा क्या / इरशाद खान सिकंदर
- दिलो-नज़र में तिरे रूप को बसाता हुआ / इरशाद खान सिकंदर
- मसायल हल न होंगे ख़ुदकुशी से / इरशाद खान सिकंदर
- हम रौशनी के शह्र में साहब अबस गए / इरशाद खान सिकंदर
- कब सोचा था दुनिया ऐसी निकलेगी / इरशाद खान सिकंदर
- ये कैसी आज़ादी है / इरशाद खान सिकंदर
- जिस्म दरिया का थरथराया है / इरशाद खान सिकंदर
- बेख़ुदी कुछ इस क़दर तारी हुई / इरशाद खान सिकंदर
- बेख़ुदी कुछ इस क़दर तारी हुई / इरशाद खान सिकंदर
- ज़ख़्म सारे ही गये / इरशाद खान सिकंदर
- घर की दहलीज़ अंधेरों से सजा देती है / इरशाद खान सिकंदर
- सबके दिल में ग़म होता है / इरशाद खान सिकंदर