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+ | *[[समय की व्यूह रचनाओं में उलझे / जहीर कुरैशी]] | ||
+ | *[[सुनामी लहरों की तैयारियाँ बताती हैं/ जहीर कुरैशी]] |
23:03, 11 अगस्त 2010 का अवतरण
पेड़ तन कर भी नहीं टूटा
रचनाकार | जहीर कुरैशी |
---|---|
प्रकाशक | अयन प्रकाशन, 1/20, महरौली, नई दिल्ली-110030 |
वर्ष | 2010 |
भाषा | हिन्दी |
विषय | ग़ज़ल संग्रह |
विधा | ग़ज़ल |
पृष्ठ | 120 |
ISBN | 978-81-7408-393-7 |
विविध |
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- जो भी कहना था वो अनकहा रह गया / जहीर कुरैशी
- वो हिम्मत करके पहले अपने अन्दर से निकलते हैं / जहीर कुरैशी
- सपनों की भाव-भूमि को तैयार कर गई / जहीर कुरैशी
- मौन के गहरे समन्दर में कहीं खोने लगे / जहीर कुरैशी
- द्वन्द्व के ज्वार बदले नहीं / जहीर कुरैशी
- अब ‘आटोग्राफ़’ की लत बन गई है / जहीर कुरैशी
- उपालम्भ में करता है या आदर से बारे करता है / जहीर कुरैशी
- कम करती है गर्मी की मनमानी को / जहीर कुरैशी
- हम एक -दूसरे से परस्पर नहीं मिलते / जहीर कुरैशी
- ख़ुशी मुख पर प्रवासी दिख रही है / जहीर कुरैशी
- जहाँ निडर थे वहाँ डर भी साथ-साथ रहे / जहीर कुरैशी
- हमारे भय पे पाबंदी लगाते हैं / जहीर कुरैशी
- जीत या हार का बस यही वक़्त है / जहीर कुरैशी
- यूँ डूबते हुए को सहारा नहीं मिला / जहीर कुरैशी
- कामनाओं की तलवार से / जहीर कुरैशी
- शर चले अविराम मंज़िल तक नहीं पँहुचे / जहीर कुरैशी
- भूख लगती है समय पर प्यास लगती है/ जहीर कुरैशी
- कामनाओं की तलवार से / जहीर कुरैशी
- मुस्कुराना भी एक चुम्बक है / जहीर कुरैशी
- समय की व्यूह रचनाओं में उलझे / जहीर कुरैशी
- सुनामी लहरों की तैयारियाँ बताती हैं/ जहीर कुरैशी