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+ | * [[उस बीहड़ काली एक शिला पर बैठा दत्तचित्त / अज्ञेय]] | ||
+ | * [[ढूह की ओट बैठे / अज्ञेय]] | ||
+ | * [[यही, हाँ, यही / अज्ञेय]] | ||
+ | * [[ओ मूर्त्ति ! / अज्ञेय]] | ||
+ | * [[व्यथा सब की / अज्ञेय]] | ||
+ | * [[उसी एकांत में घर दो / अज्ञेय]] | ||
+ | * [[सागर और धरा मिलते थे जहाँ / अज्ञेय]] | ||
+ | * [[आँगन के पार / अज्ञेय]] | ||
+ | * [[दूज का चाँद / अज्ञेय]] | ||
+ | '''असाध्य-वीणा''' | ||
+ | * [[असाध्य वीणा / अज्ञेय]] |
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आँगन के पार द्वार
रचनाकार | अज्ञेय |
---|---|
प्रकाशक | भारतीय ज्ञानपीठ |
वर्ष | 1966 |
भाषा | हिन्दी |
विषय | कविता |
विधा | |
पृष्ठ | 86 |
ISBN | |
विविध | 1959 से 1961 की कविताएँ |
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
अन्तःसलिला
- सरस्वती पुत्र / अज्ञेय
- बना दे, चितेरे / अज्ञेय
- भीतर जागा दाता / अज्ञेय
- अन्धकार में दीप / अज्ञेय
- पास और दूर / अज्ञेय
- पहचान / अज्ञेय
- झील का किनारा / अज्ञेय
- अंतरंग चेहरा / अज्ञेय
- पराई राहें / अज्ञेय
- पलकों का कँपना / अज्ञेय
- एक उदास साँझ / अज्ञेय
- अनुभव-परिपक्व / अज्ञेय
- सूनी-सी साँझ एक / अज्ञेय
- एक प्रश्न / अज्ञेय
- अँधेरे अकेले घर में / अज्ञेय
- चिड़िया ने ही कहा / अज्ञेय
- अन्तःसलिला / अज्ञेय
- साँस का पुतला / अज्ञेय
चक्रांत शिला
- यह महाशून्य का शिविर / अज्ञेय
- वन में एक झरना बहता है / अज्ञेय
- सुनता हूँ गान के स्वर / अज्ञेय
- किरण अब मुझ पर झरी / अज्ञेय
- एक चिकना मौन / अज्ञेय
- रात में जागा / अज्ञेय
- हवा कहीं से उठी, बही / अज्ञेय
- जितनी स्फीति इयत्ता मेरी झलकाती है / अज्ञेय
- जो बहुत तरसा-तरसा कर / अज्ञेय
- धुँध से ढँकी हुई / अज्ञेय
- तू नहीं कहेगा ? / अज्ञेय
- अरी ओ आत्मा री / अज्ञेय
- अकेली और अकेली / अज्ञेय
- वह धीरे-धीरे आया / अज्ञेय
- जो कुछ सुन्दर था, प्रेम, काम्य / अज्ञेय
- मैं कवि हूँ / अज्ञेय
- न कुछ में से वृत्त यह निकला / अज्ञेय
- अंधकार में चली गई है / अज्ञेय
- उस बीहड़ काली एक शिला पर बैठा दत्तचित्त / अज्ञेय
- ढूह की ओट बैठे / अज्ञेय
- यही, हाँ, यही / अज्ञेय
- ओ मूर्त्ति ! / अज्ञेय
- व्यथा सब की / अज्ञेय
- उसी एकांत में घर दो / अज्ञेय
- सागर और धरा मिलते थे जहाँ / अज्ञेय
- आँगन के पार / अज्ञेय
- दूज का चाँद / अज्ञेय
असाध्य-वीणा