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गुरप्रीत की सात कविताएं
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हिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव
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|चित्र=Gurpreet.jpg
(1) घर
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|नाम=गुरप्रीत
गुम हुई चीज को
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तलाशने के लिए
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खंगाल डालती थी
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घर का हर अंधेरा-तंग कोना
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मेरी माँ !
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|कृतियाँ=शबदां दी मरज़ी(1996), अकारन(2001), सियाही घुली है(2001)
बीवी भी अब ऐसा ही करती है
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|विविध=“शबदां दी मरज़ी” को गुरू नानक देव युनिवर्सिटी, अमृतसर की ओर से वर्ष 1996 का प्रो0 मोहन सिंह कविता पुरस्कार।
और अपनी ससुराल में बहन भी !
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चीज़ों के गुम होने
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{{KKCatPunjab}}
और इनके रोने के लिए
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====प्रतिनिधि रचनाएँ====
अगर घर में अंधेरी-तंग जगहें न होंती
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* [[घर / गुरप्रीत]]
तो घर का नाम भी
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* [[दोस्ती / गुरप्रीत]]
घर नहीं होता।
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* [[जीने की कला / गुरप्रीत]]
 
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* [[माँ / गुरप्रीत]]
(2) दोस्ती
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* [[पिता होने की कोशिश / गुरप्रीत]]
 
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* [[चिट्ठियों से भरा झोला / गुरप्रीत]]
जब छोटे-छोटे कोमल पत्ते फूटते हैं
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* [[राशन की सूची और कविता / गुरप्रीत]]
और खिलते हैं रंग-बिरंगे फूल
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====जगजीत सिद्धू द्वारा अनूदित====
मैं याद करता हूँ जड़ें अपनी
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* [[पत्थर / गुरप्रीत]]
अतल गहरी ।
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* [[ग़ालिब की हवेली / गुरप्रीत]]
 
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* [[पिता / गुरप्रीत]]
जब पीले पत्ते झड़ते हैं
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* [[बिका हुआ मकान और वह चिड़िया / गुरप्रीत]]
और फूल बीज बन
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* [[कामरेड / गुरप्रीत]]
मिट्टी में दब जाते हैं
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* [[लेखा / गुरप्रीत]]
मैं याद करता हूँ जड़ें अपनी
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* [[आदिकाल से लिखी जाती है कविता / गुरप्रीत]]
अतल गहरी ।
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* [[दोस्त / गुरप्रीत]]
 
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(3) जीने की कला
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ये अर्थ
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जो जीवंत हो उठे
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मेरे सामने
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अगर ये शब्दों की देह से होकर
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न आते
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तो कैसे आते
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मैं हँसता हूँ, प्यार करता हूँ
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रोता हूँ, लड़ता हूँ
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चुप हो जाता हूँ
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पार नहीं हूँ सब कुछ से
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मुझे जीना आता है
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जीने की कला नहीं।
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(4) माँ
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मैं माँ को प्यार करता हूँ
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इसलिए नहीं
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कि जन्म दिया है
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उसने मुझे
+
 
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मैं माँ को प्यार करता हूँ
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इसलिए नहीं
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कि पाला-पोसा है
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उसने मुझे
+
 
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मैं माँ को प्यार करता हूँ
+
इसलिए
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कि उसको
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अपने दिल की बात कहने के लिए
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शब्दों की ज़रूरत नहीं पड़ती मुझे।
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(5) पिता होने की कोशिश
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दु:ख
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गठरी मेंढ़कों की
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गाँठ खोलता हूँ
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तो उछ्लते-कूदते बिखर जाते हैं
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घर के चारों तरफ
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हर रोज़
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एक नई गाँठ लगाता हूँ
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इस गठरी में
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कला यही है मेरी
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दिखने नहीं दूँ
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सिर पर उठाई गठरी यह
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बच्चों को।
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(6) चिट्ठियों से भरा झोला
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कविता आई सुबह-सुबह
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जागा नहीं था मैं अभी
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सिरहाने रख गई- ‘उत्साह’।
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उठा जब
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दौड़कर मिला मुझे ‘उत्साह’
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कविता की चिट्ठियों से भरा झोला थमाने।
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एक चिट्ठी
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मैंने अपनी बच्ची को दी
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‘पढ़ती जाना स्कूल तक
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मन लगा रहेगा…’
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एक चिट्ठी बेटे को दी
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कि दे देना अपने अध्यापक को
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वह तुझे बच्चा बन कर मिलेगा…
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चिट्ठी एक कविता की
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मैंने पकड़ाई पत्नी को
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गूँध दी उसने आटे में।
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पिता इसी चिट्ठी से
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आज किसी घर की
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छत डाल कर आया है!
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नहीं दी चिट्ठी मैंने माँ को
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वह तो खुद एक चिट्ठी है !
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(7) राशन की सूची और कविता
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5 लीटर रिफाइंड धारा
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5 किलो चीनी
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5 किलो साबुन कपड़े धोने वाला
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1 किलो मूंगी मसरी
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1 पैकेट सोयाबीन
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पैकेट एक नमक, भुने चने
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थैली आटा
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इलायची-लौंग 25 ग्राम…
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कविता की किताब में
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कहाँ से आ गई
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रसोई के राशन की सूची ?
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मैं इसे कविता से
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अलग कर देना चाहता हूँ
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पर गहरे अंदर से उठती
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एक आवाज़
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रोक देती है मुझे
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और कहती है –
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अगर रसोई के राशन की सूची
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जाना चाहती है कविता के साथ
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फिर तू कौन होता है
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इसे पृथक करने वाला
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फैसला सुनाता ?
+
 
+
मैं मुस्कराता हूँ
+
राशन की सूची को
+
कविता की दोस्त ही रहने देता हूँ।
+
 
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दोस्तो !
+
नाराज़ मत होना
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यह मेरा नहीं मेरे अंदर का फैसला है
+
अंदर को भला कौन रोके !
+
 
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सूची अगर तुम
+
मेरी रसोई की नहीं
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तो अपनी की पढ़ लेना
+
 
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कविता अगर तुम
+
मेरी नहीं
+
तो अपने अंदर की पढ़ लेना।
+

10:37, 15 मार्च 2017 के समय का अवतरण

गुरप्रीत
Gurpreet.jpg
जन्म 07 मई 1968
निधन
उपनाम
जन्म स्थान मानसा, पंजाब
कुछ प्रमुख कृतियाँ
शबदां दी मरज़ी(1996), अकारन(2001), सियाही घुली है(2001)
विविध
“शबदां दी मरज़ी” को गुरू नानक देव युनिवर्सिटी, अमृतसर की ओर से वर्ष 1996 का प्रो0 मोहन सिंह कविता पुरस्कार।
जीवन परिचय
गुरप्रीत़ / परिचय
कविता कोश पता
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प्रतिनिधि रचनाएँ

जगजीत सिद्धू द्वारा अनूदित