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+ | ** [[कहते रहे हैं दिल की कहानी सभी से हम]] | ||
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+ | ** [[कहनी है कोई बात मगर भूल रहे हैं]] | ||
+ | ** [[कितनी भी दूर जाके बसे हों निगाह से]] | ||
+ | ** [[कुछ तो आगे इस गली के मोड़ पर आने को है]] | ||
+ | ** [[कुछ भी नहीं, जो हमसे छिपाते हो, ये क्या है!]] | ||
+ | ** [[कोई ऊंची अटारी पे बैठा रहा, हाय! हमने उसे क्यों पुकारा नहीं!]] | ||
+ | ** [[कोई मंजिल नयी हरदम है नज़र के आगे]] | ||
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* '''[[भक्ति गीत]]''' | * '''[[भक्ति गीत]]''' |
08:31, 22 जून 2009 का अवतरण
गुलाब खंडेलवाल
जन्म | 21 फ़रवरी 1924 |
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जन्म स्थान | नवलगढ़, जिला झुझनू, राजस्थान, भारत |
कुछ प्रमुख कृतियाँ | |
सौ गुलाब खिले, गुलाब-ग्रंथावली, देश विराना है, पंखुरियां गुलाब की [ पूरी सूची ] | |
विविध | |
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जीवन परिचय | |
गुलाब खंडेलवाल / परिचय |
- गज़लें
- कुछ हम भी लिख गये हैं तुम्हारी किताब में / सौ गुलाब खिले
- अब कहाँ चाँद-सितारे हैं नज़र के आगे! / नई ग़ज़लें
- साथ हरदम भी बेनकाब नहीं / नई ग़ज़लें
- यों तो खुशी के दौर भी होते है कम नहीं / नई ग़ज़लें
- तेरी अदाओं का हुस्न तो हम छिपाके ग़ज़लों में रख रहे हैं / नई ग़ज़लें
- फिर इस दिल के मचलने की कहानी याद आती है / नई ग़ज़लें
- उम्र भर खाक़ ही छाना किये वीराने की / नई ग़ज़लें
- अदाओं की तेरी जादूगरी जानी नहीं जाती / नई ग़ज़लें
- कभी धड़कनों में है दिल की तू, कभी इस जहान से दूर है / नई ग़ज़लें
- खिली गुलाब की दुनिया तो है सभी के लिए / गुलाब खंडेलवाल
- उन्हीं की राह में मरना कहीं होता तो क्या होता / गुलाब खंडेलवाल
- पहले तो मेरे दर्द को अपना बनाइए / गुलाब खंडेलवाल
- कभी सिर झुका के चले गये / गुलाब खंडेलवाल
- फिर उन्हें हम पुकार बैठे हैं / गुलाब खंडेलवाल
- अब न जाने की करो बात, करीब आ जाओ
- आँखें भरी-भरी मेरी कुछ और नहीं है
- आँखों-आँखों मुस्कुराना खूब है!
- आओ कुछ देर गले लग लें ठहर के
- आईने में जब उसने अपना चाँद-सा मुखड़ा देखा होगा
- आपने ज़िन्दगी न दी होती
- इस दिल में तड़पने के अरमान ही अच्छे हैं
- इस बेरुखी से प्यार कभी छिप नहीं सकता
- उस नज़र पे छाये हुए और सौ गुलाब
- एक से एक बढ़कर चले
- एक अनबुझी सी चाह मेरे साथ रही है
- ऐ ग़म न छोड़ना हमें इस ज़िन्दगी के साथ
- कभी बेसुधी में रुके नहीं, कभी भीड़ देखके डर गये
- कहते रहे हैं दिल की कहानी सभी से हम
- क्या कहा, 'अब तो कोई ग़म न होगा!'
- कहनी है कोई बात मगर भूल रहे हैं
- कितनी भी दूर जाके बसे हों निगाह से
- कुछ तो आगे इस गली के मोड़ पर आने को है
- कुछ भी नहीं, जो हमसे छिपाते हो, ये क्या है!
- कोई ऊंची अटारी पे बैठा रहा, हाय! हमने उसे क्यों पुकारा नहीं!
- कोई मंजिल नयी हरदम है नज़र के आगे
- ख़त्म रंगों से भरी रात हुई जाती है