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"लावण्या शाह" के अवतरणों में अंतर

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[ श्री कृष्ण ] " हे , वीर गंगा -पुत्र ! जय शांतनु - नंदन की !
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सुनो , वीर पांडव , " इच्छा - मृत्यु", इनका वरदान है !
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अब उत्तरायण की करेंगें प्रतीक्षा , भीष्म यूँही , लेटे,
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बाण शैय्या पर , यूँही , पूर्णाहुति तक ! "
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कुरुक - शेत्र के रण मैदान का , ये भी एक सर्ग था !

23:40, 26 अगस्त 2008 का अवतरण

लावण्या शाह
Lavanya.jpg
जन्म 22 नवम्बर 1950
निधन
उपनाम लावणी
जन्म स्थान मुम्बई, महाराष्ट्र, भारत
कुछ प्रमुख कृतियाँ
फिर गा उठा प्रवासी - कविता संग्रह छप कर तैयार है
विविध
लावण्या शाह हिन्दी के सुप्रसिद्ध कवि पंडित नरेन्द्र शर्मा की सुपुत्री हैं।
जीवन परिचय
लावण्या शाह / परिचय
कविता कोश पता
www.kavitakosh.org/{{{shorturl}}}



इच्छा - अनिच्छा के द्वंद में धंसा , पिसा मन 

धराशायी तन , दग्ध , कुटिल अग्नि - वृण से , छलनी , तेजस्वी सूर्य - सा , गंगा - पुत्र का , गिरा , देख रहे , कुरुक्षेत्र की रण- भूमि में , युधिष्ठिर! [ युधिष्ठिर] " हा तात ! युद्ध की विभीषिका में , तप्त - दग्ध , पीड़ित , लहू चूसते ये बाणोँ का , सघन आवरण , तन का रोम रोम - घायल किए ! ये कैसा क्षण है ! " धर्म -राज , रथ से उतर के , मौन खड़े हैं , रूक गया है युद्ध , रवि - अस्ताचलगामी ! आ रहे सभी बांधव , धनुर्धर इसी दिशा में , अश्रु अंजलि देने , विकल , दुःख क़तर , तप्त ह्रदय समेटे । [ अर्जुन ] " पितामह ! प्रणाम ! क्षमा करें ! धिक् - धिक्कार है !" गांडीव को उतार, अश्रु पूरित नेत्रों से करता प्रणाम , धरा पर झुक गया पार्थ का पुरुषार्थ , हताश , हारा तन - मन , मन मंथन कुरुक्षेत्र के रणाँगण में ! [ भीष्म पितामह ] " आओ पुत्र ! दो शिरस्त्राण, मेरा सर ऊंचा करो !" [ अर्जुन ] " जो आज्ञा तात ! " कह , पाँच तीरों से उठाया शीश [ भीष्म ] " प्यास लगी है पुत्र , पिला दो जल मुझे " फ़िर आज्ञा हुई , निशब्द अर्जुन ने शर संधान से , गंगा प्रकट की ! [ श्री कृष्ण ] " हे , वीर गंगा -पुत्र ! जय शांतनु - नंदन की ! सुनो , वीर पांडव , " इच्छा - मृत्यु", इनका वरदान है ! अब उत्तरायण की करेंगें प्रतीक्षा , भीष्म यूँही , लेटे, बाण शैय्या पर , यूँही , पूर्णाहुति तक ! " कुरुक - शेत्र के रण मैदान का , ये भी एक सर्ग था !