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गीतांजलि / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
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गीतांजलि | |
रचनाकार: | रवीन्द्रनाथ ठाकुर |
अनुवादक: | रणजीत साहा |
प्रकाशक: | किताबघर प्रकाशन, 485556/24 अंसारी रोड, दरियागंज, नई दिल्ली-110002 |
वर्ष: | 2006 |
मूल भाषा: | बंगला |
विषय: | -- |
शैली: | -- |
पृष्ठ संख्या: | 196 |
ISBN: | 81-7016-755-8 |
विविध: | गीतांजलि के लिये रवीन्द्रनाथ ठाकुर को 1913 में साहित्य के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। |
इस पन्ने पर दी गयी रचनाओं को विश्व भर के योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गयी प्रकाशक संबंधी जानकारी प्रिंटेड पुस्तक खरीदने में आपकी सहायता के लिये दी गयी है। |
- मेरा मस्तक अपनी चरणधूल तले नत कर दो / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- मैं अनेक वासनाओं को चाहता हूँ प्राणपण से / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- कितने अनजानों से तुमने करा दिया मेरा परिचय / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- विपदा से मेरी रक्षा करना / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- अंतर मम विकसित करो / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- प्रेम में प्राण में गान में गंध में / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- तुम नए-नए रूपों में, प्राणों में आओ / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- आज धान खेत की धूप-छाँव में / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- आनन्द सागर में आज उठा है ज्वार / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- तुम्हारे सोने के थाल में सजाऊंगा आज / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- हमने बांधी है कास की आँटी / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- अमल धवल पाल में कैसी / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- जब मेरा नैन-भुलैया आया / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- जननी, तुम्हारे करूण चरणद्वय / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- सारे अग-जग में उदार सुरों में / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- बिछ गए बादलों पर बादल / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- कहाँ है प्रकाश, कहाँ है उजाला / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- आज सघन सावन घन मोह से / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- घिर आई आषाढ़ की संध्या / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- आज झंझा की रात में है तुम्हारा अभिसार / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- जानता हूँ आदिकाल से ही / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- तुम कैसे गाते हो गान, ओ गायक गुनी / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- इस तरह से ओट लेकर छिपने से तो / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- यदि देख न पाऊँ प्रभु तुम को / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- विरह तुम्हारा देखँ अहरह / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- लो ढल गई वेला उतरी छाया धरा पर / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- आज भरी बदरी बरस रही है झर-झर / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- प्रभु, तुम्हारे लिए ये नैना जागे / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- धन-जन से मैं घिरा हुआ हूँ / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- हाँ, यही तो है तुम्हारा प्रेम / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- मैं रहता हूँ टिका यहाँ बस / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- मेरा भय नष्ट करो / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- इन सबने घेर लिया फिर मेरा मन / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- मुझ से मिलने को तुम / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- आओ, आओ हे सजल घन आओ / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- जोड़ नहीं पाओगे क्या कुछ तुम इस छंद में / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- निशा स्वप्न से पाई मुक्ति / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- आज शरत में कौन अतिथि / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- जो गीत यहाँ गाने आया था / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- बैठा उसे सम्भालूँ कब तक / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- यह मलिन वसन तजना होगा / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- पुलक जगी है तन में / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- प्रभु, आज छुपा कर मत रखना तुम / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- इस जग के आनंद यज्ञ में मिला निमंत्रण / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- आलोक में आलोकित करो / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- मैं तुम्हारे आसन तले धरा पर लोटता रहूंगा / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- रूप के सागर मैं पैठा हूँ / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- एक-एक कर खिली पंखुरी / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- यहीं उन्होंने डेरा डाला / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- निभृत प्राणों का देवता / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- किस प्रकाश से जला कर प्राण का प्रदीप / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- तुम मेरे हो, अपने हो, पास मेरे ही रहते हो / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- मुझे झुका दो, मुझे झुका दो / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- आज सुरभिसिक्त पवन में / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- आज द्वार पर आ पहुँचा है जीवंत बसंत / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- अपने सिंहासन से उतर कर / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- तुम अब तो मुझे स्वीकारो नाथ / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- जीवन जब सूख जाए / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- अपने इस वाचाल कवि को / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- विश्व है जब नींद में मगन / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- वह तो तुम्हारे पास बैठा था / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- तुम लोगों ने सुनी नहीं क्या / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- मान ली, मान गयी मैं हार / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- एक-एक कर / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- गाते-गाते गान तुम्हारा / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- प्रेम तुम्हारा वहन कर सकूँ / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- हे सुंदर आए थे तुम आज प्रात / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- जब तुम्हारे साथ मेरा खेल हुआ करता था / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- खुली नाव थामो पतवार / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- हृदय खो गया मेरा आज / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- ओ मौन मेरे तुम करो न कोई बात / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- जितनी बार जलाना चाहा दीप / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- मैं तुम्हें रखूंगा नाथ / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- वज्र में बजती तुम्हारी बाँसुरी / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- करुणा जल से धोना होगा / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- जब सभा होगी विसर्जित तब / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- जीवन भर की वेदना / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- तुम जब कहते हो मुझ को सुनाने गान / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- मेरा सारा प्रेमानुराग / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- वे आए थे दिन रहते ही मेरे घर पर / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- हमें पकड़ कर लेते हैं वसूल, वे महसूल / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- इस चांदनी रात में जाग उठे हैं मेरे प्राण / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- यह तो तय था एक तरी में केवल हम-तुम / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- मैं अपने एकाकी घर की तोड़ कर दीवार / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- लौटूंगा मैं नहीं अकेला इस तरह / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- मुझे नींद से अगर जगाया आज / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- मुझे तोड़ लो / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- चाहता हूँ, मैं तुम्हें ही चाहता हूँ / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- मेरा यह प्रेम न तो कायर है / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- और अधिक सह लेगा वह आघात मेरा / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- ठीक किया है तुमने ओ निष्ठुर / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- देवता जान कर ही दूर खड़ा रहता मैं / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- तुम कर रहे जो काम उसमें / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- अखिल विश्व के साथ तुम विहार करते हो / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- मुझे पुकारो, मुझे पुकारो / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- जहाँ तुम्हारी मची हुई है लूट भुवन में / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- फूलों जैसा तुम्हीं खिला जाते हो गान / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- मैं सदा निहारता रहूँ तुम्हारी ओर / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- फिर आ गया आषाढ़ और छा गया गगन / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- देख रहा हूँ आज रूप वर्षा का, लोगों के बीच / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- हे मेरे देवता, भर कर मेरी देह और मेरे प्राण / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- मेरी यह साध है इस जीवन में / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- मई अकेला बाहर निकल पड़ा / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- मैं देख रहा हूँ तुम सबकी ही ओर / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- ख़ुद को अपने सिर पर अब आगे कभी / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- हे मेरे चित्त, इस पुण्य तीर्थ में / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- जहाँ अधम से अधम और दीन से भी दीन / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- हे अभागे देश मेरे तुमने किया जिनका अपमान / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- कभी न छोड़ो, कस कर पकड़ो / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- हृदय मेरा भरा हुआ है, पूरी तरह भरा / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- कभी गर्व नहीं रहा इस बात का / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- कौन कहता है कि सब छोड़ जाओगे / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- नदी पार के इस आषाढ़ का विहान / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- दिन ढलने पर मृत्यु जिस दिन / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- दया कर और इच्छा कर / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- ओ मेरे जीवन की अंतिम परिपूर्णता / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- मैं हूँ राही / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- बादल भेदी रथ पर, ध्वजा लहरा कर / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- भजन-पूजन साधन-आराधन / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- सीमा में ही हे असीम तुम / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- इसीलिए आनंद तुम्हारा मुझ पर है निर्भर / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- मान भरा पद और शयन सुख / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- प्रभुगृह से आया था जिस दिन / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- जो सोचा था मन में / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- मेरे इन गानों ने तज दिए / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- निंदा, दु:ख और अपमान में / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- राजा जैसे वेश में तुम जिन बच्चों को सजाते हो / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- उलझ गए हैं आपस में ही / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- गाने लायक़ रचा न कोई गान / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- मुझ में ही होनी है, लीला तुम्हारी / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- पता नहीं कहाँ से आता है दु:स्वप्न चल / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- गान में ही तुम्हारा पाना चाहूंगा संधान / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- शेष नहीं होगा तब तक मेरा / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- मेरे अंतिम गान में सारी रागिनी भर जाए / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- जब मुझे जकड़ रखते हो आगे और पीछे / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- जितने दिन तुम शिशु के जैसे / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- मेरा चित्त तुम में ही नित्य होगा / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- मैं तुम को अपना प्रभु बना कर रखूँ / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- मेरे प्राणों को भर, जितना भी दिया है / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- ओ रे माझी / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- अपना मन, अपनी काया को / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- जाने का दिन ऎसा हो / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- जिन्हें हम रखते हैं ढाँक, साथ अपने नाम के / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- जिस दिन मेरा नाम मिटा दोगे, मेरे नाथ! / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- जितना भी छुड़ाना चाहूँ / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- नहीं जानता कैसे मांगूँ / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- जीवन में जितनी पूजा थी / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- एक ही नमस्कार में प्रभु / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- जीवन में चिर दिवस / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- नित्य विवाद तुम्हारे साथ / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- प्रेम के हाथों पकड़ा जाऊँ / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- इस दुनिया में और भी जितने लोग / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- नाथ, प्रेम दूत तुम भेजोगे कब / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- मुझ से इतने गीत गवाए / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- लगता है अब यही शेष है / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- शेष में ही होता है अशेष / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
- यदि दिवस विदा ले और पंछी ना गाएँ / रवीन्द्रनाथ ठाकुर