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ग़ज़ल की सुरंगें / कांतिमोहन 'सोज़'
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ग़ज़ल की सुरंगें
रचनाकार | कांतिमोहन 'सोज़' |
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प्रकाशक | |
वर्ष | 1988 |
भाषा | हिन्दी |
विषय | हास्य-व्यंग्य की ग़ज़लें |
विधा | |
पृष्ठ | 80 |
ISBN | |
विविध |
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- भूमिका (ग़ज़ल की सुरंगें) / कांतिमोहन 'सोज़'
- कैसे कहूँ दुनिया से तेरी ऊब चला हूँ / कांतिमोहन 'सोज़'
- या तो हर ज़ुल्म को चुप रहके गवारा कर लो / कांतिमोहन 'सोज़'
- दूर जाकर देखिए या पास आकर देखिए / कांतिमोहन 'सोज़'
- शेख़ का एहतराम करते हैं / कांतिमोहन 'सोज़'
- कभी यूँ है कि तुमसे दूर जाकर क्या करें प्यारे / कांतिमोहन 'सोज़'
- क्या क्या पापड़ बेल चुके हैं अब ग़म से घबराना क्या? / कांतिमोहन 'सोज़'
- बात अब जब भी चलेगी तोप की तलवार की / कांतिमोहन 'सोज़'
- बजाए-होश जनूं दिल का राहबर होता / कांतिमोहन 'सोज़'
- बताएँ क्या तुम्हें कैसा हमारा हाल है यारो / कांतिमोहन 'सोज़'
- ज़िक्र उसका न कहीं था मेरे अफ़साने में / कांतिमोहन 'सोज़'