भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उद्धव-शतक / जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
Kavita Kosh से
उद्धव-शतक
क्या आपके पास इस पुस्तक के कवर की तस्वीर है?
कृपया kavitakosh AT gmail DOT com पर भेजें
कृपया kavitakosh AT gmail DOT com पर भेजें
रचनाकार | जगन्नाथदास 'रत्नाकर' |
---|---|
प्रकाशक | |
वर्ष | |
भाषा | |
विषय | |
विधा | |
पृष्ठ | |
ISBN | |
विविध |
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
श्री उद्धव द्वारा मथुरा से ब्रज गमन के कवित्त
- न्हात जमुना मैं जलजात एक दैख्यौ जात / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’
- आए भुजबंध दये ऊधव सखा कैं कंध / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’
- देखि दूरि ही तैं दौरि पौरि लगि भेंटि ल्याइ / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’
- विरह-बिथा की कथा अकथ अथाह महा / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’
- नंद और जसोमति के प्रेम पगे पालन की / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’
- चलत न चारयौ भाँति कोटिनि बिचारयौ तऊ / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’
- रूप-रस पीवत अघात ना हुते जो तब / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’
- गोकुल की गैल-गैल गोप ग्वालिन कौ / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’
- मोर के पखौवनि को मुकुट छबीलौ छोरि / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’
- कहत गुपाल माल मंजुमनि पुंजनि की / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’
- राधा मुख-मंजुल सुधाकर के ध्यान ही सौं / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’
- सील सनी सुरुचि सु बात चलै पूरब की / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’
- प्रेम-भरी कातरता कान्ह की प्रगट होत / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’
- हेत खेत माँहि खोदि खाईं सुद्ध स्वारथ की / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’
- पाँचौ तत्व माहिं एक तत्व ही की सत्ता सत्य / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’
- दिपत दिवाकर कौं दीपक दिखावै कहा / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’
- हा! हा! इन्हैं रोकन कौं टोक न लगावौ तुम / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’
- प्रेम-नेम निफल निवारि उर-अंतर तैं / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’
- बात चलैं जिनकी उड़ात धीर धूरि भयौ / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’
- ऊधव कैं चलत गुपाल उर माहिं चल / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’
श्री उद्धव के मथुरा से ब्रज के मार्ग के कवित्त
- आइ ब्रज-पथ रथ ऊधौ कौं चढ़ाइ कान्ह / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’
- लै कै उपदेश-औ-संदेस पन ऊधौ चले / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’
- हरैं-हरैं ज्ञान के गुमान घटि जानि लगे / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’
श्री उद्धव के ब्रज में पहुँचने के समय के कवित्त
- दुख-सुख ग्रीषम और सिसिर न ब्यापै जिन्हें / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’
- धाईं धाम-धाम तैं अवाई सुनि ऊधव की / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’
- भेजे मनभावन के उद्धव के आवन की / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’
- देखि-देखि आतुरी बिकल-ब्रज-बारिन की / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’
- दीन दशा देखि ब्रज-बालनि की उद्धव कौ / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’
- मोह-तम-राशि नासिबे कौं स-हुलास चले / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’
श्री उद्धव-वचन ब्रजवासियों से
- चाहत जौ स्वबस संयोग स्याम-सुन्दर कौ / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’
- पंच तत्त्व मैं जो सच्चिदानन्द की सत्ता सो तौ / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’
- सोई कान्ह सोई तुम सोई सबही हैं लखौ / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’
- सुनि सुनि ऊधव की अकथ कहानी कान / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’
गोपी-वचन
- रस के प्रयोगनि के सुखद सु जोगनि के / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’
- ऊधो कहौ सूधौ सौ सनेस पहिले तौ यह / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’
- षटरस-व्यंजन तौ रंजन सदा ही करें / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’
- कान्ह-दूत कैंधौं ब्रह्म-दूत ह्वै पधारे आप / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’
- चोप करि चंदन चढ़ायौ जिन अंगनि पै / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’
- / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’
- / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’
- / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’
- / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’
- / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’
- / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’
- / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’
- / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’
- / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’
- / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’
- / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’
- / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’
- / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’
- / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’
- / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’
- / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’