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मन यायावर है / दयानन्द पाण्डेय
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मन यायावर है
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रचनाकार | दयानन्द पाण्डेय |
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प्रकाशक | प्रेमनाथ एंड संस, 30/35-36, द्वितीय तल गली नंबर- 9, विश्वास नगर, दिल्ली - 110032 |
वर्ष | |
भाषा | हिन्दी |
विषय | |
विधा | ग़ज़ल |
पृष्ठ | 168 |
ISBN | |
विविध |
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
इस पुस्तक में संकलित रचनाएँ
* मैं तुम्हें ख़ुद से ज़्यादा चाहता हूँ, ऐसा झूठ बोलना भी अच्छा है पर कभी-कभी / दयानन्द पाण्डेय
- यह मन के दीप जलने का समय है तुम कहाँ हो / दयानन्द पाण्डेय
- सहिष्णुता के शैतान तुम्हारी ऐसी तैसी / दयानन्द पाण्डेय
- आख़िर तुम्हारी ज़न्नत का तकाज़ा क्या है / दयानन्द पाण्डेय
- जैसे गाँव से शहर आ कर अम्मा मुझे विभोर कर देती है / दयानन्द पाण्डेय
- तुम नहीं, वह नहीं, हम सब से बड़े हैं / दयानन्द पाण्डेय
- यह अहले लखनऊ है कुल्लू मनाली की बर्फ़ नहीं जो गुड़ के साथ खाना है / दयानन्द पाण्डेय
- तुम्हारी मुहब्बत का जहाँपनाह होना चाहता हूँ / दयानन्द पाण्डेय
- अम्मा ने बुढ़ौती में पिता से खुल कर बग़ावत कर दी है / दयानन्द पाण्डेय
- देवदास लोग रोया नहीं करते सब के सामने / दयानन्द पाण्डेय
- माल रोड पर झूमती शिमला की रातें हैं / दयानन्द पाण्डेय
- अम्मा तुम्हारी गोद में दौड़ कर छुप जाने को जी करता है / दयानन्द पाण्डेय
- नीले आकाश में तुम्हारे साथ उड़ जाने को दिल करता है / दयानन्द पाण्डेय
- शादी खोजने निकलिए तो समाज बाजा बजा देता है / दयानन्द पाण्डेय
- बेईमानों के नाम नया साल लिखना चाहता हूँ / दयानन्द पाण्डेय
- एक सपना है मेरे भीतर जो खिल कर सूर्य होना चाहता है / दयानन्द पाण्डेय
- सत्ता का मीठा जहर है तुम्हारे पास जो मेरे पास नहीं है / दयानन्द पाण्डेय
- इश्क कर के देखो इश्क आदमी को बादशाह बना देता है / दयानन्द पाण्डेय
- मैं सड़क पर हूँ घने कोहरे में खोया ख़ुद को खोजता हुआ / दयानन्द पाण्डेय
- मालदा इस के विपरीत है यह बात बताऊँ कैसे / दयानन्द पाण्डेय
- लेकिन यह मन के जंगल की आग है / दयानन्द पाण्डेय
- गंगा सागर हो आया हूँ अब तुम्हारे द्वार आना चाहता हूँ / दयानन्द पाण्डेय
- लेकिन सागर से उछल कर मिलती तो है / दयानन्द पाण्डेय
- प्यार की नाव में नदी बहती अब है / दयानन्द पाण्डेय
- चादर हमारी रोज फटती है सुबह शाम उसे सी रहे हैं / दयानन्द पाण्डेय
- औरत मरती है टुकड़ों-टुकड़ों में दुनिया सारी हत्यारी होती है / दयानन्द पाण्डेय
- तुम्हारी सरहदों पर गाँधी के कुछ भजन गाना चाहता हूँ / दयानन्द पाण्डेय
- ताजमहल भारत में है पाकिस्तान बना सकता नहीं / दयानन्द पाण्डेय
- वह ईमानदार है इस लिए बहुत हैरान और परेशान है / दयानन्द पाण्डेय
- यह पुस्तक मेला यह पुस्तक विमोचन दम तोड़ते हुए जलसे हैं / दयानन्द पाण्डेय
- सारे घोड़े वह अपने विजय रथ में बाँध लेती है / दयानन्द पाण्डेय
- हम इतने बुजदिल हैं कि टुकुर-टुकुर सिर्फ़ ताकते रह गए / दयानन्द पाण्डेय
- जींस पहन कर फ़ेसबुक पर वह लाल सलाम बोलते हैं ताकि तने रहें / दयानन्द पाण्डेय
- फ़ेसबुक गूगल अमरीकी हैं पूँजीवादी हैं फिर आप यहाँ उपस्थित कैसे हैं / दयानन्द पाण्डेय
- हम हार-हार जाते हैं जब तुम नहीं होती हो / दयानन्द पाण्डेय
- अंबेडकर वोट और नोट देता है तो वह गाँधी को भूल जाते हैं / दयानन्द पाण्डेय
- मीरा का एकतारा बजता रहता है और मन मोहन हो जाता है / दयानन्द पाण्डेय
- घर बेच कर शराब पी गए अब दुनिया जलाने की बात करते हैं / दयानन्द पाण्डेय
- तुम्हारे पास ख़ुद को छोड़ आया हूँ / दयानन्द पाण्डेय
- इश्क में कोई बड़ा भी जो पड़ जाए तो बच्चा लगने लगता है / दयानन्द पाण्डेय
- पर इतने कायर हैं कि मां के गर्भ में उपस्थित लड़की से डरते हैं / दयानन्द पाण्डेय
- वह दलित हैं वह सेक्यूलर हैं पर ज़िद ऐसे करते हैं जैसे छोटे बच्चे हैं / दयानन्द पाण्डेय
- कांटे सारे हमारे गुलाब सारे तुम्हारे हैं / दयानन्द पाण्डेय
- बहुत कर चुका प्रपोज तुम को अब तुम्हारी बारी है / दयानन्द पाण्डेय
- शिकारियों की चूजों पर बहुत तगड़ी नज़र है / दयानन्द पाण्डेय
- मेरिट मार खाती है तो लड़का टूटता बहुत है / दयानन्द पाण्डेय
- योजनाओं का पैसा कलक्टर और मुख्यमंत्री मिल कर पी जाता है / दयानन्द पाण्डेय
- जे एन यू में आतंक का कश्मीरी राग सुन कर हरगिज हैपी नहीं हैं / दयानन्द पाण्डेय
- फागुन की मस्त दस्तक है हम हर हाल हैपी हैं / दयानन्द पाण्डेय
- प्रेम का पहाड़ा कितना कठिन है बता देता है / दयानन्द पाण्डेय
- काश देशद्रोहियों को जो सीधे सीध गोली मार देने का क़ानून होता इस देश में / दयानन्द पाण्डेय
- वैलेंटाईन की बाँसुरी बज रही बहुत मीठी तुम चली आओ / दयानन्द पाण्डेय
- जान से प्यारा पाकिस्तान का वह गीत अब गाने लगे / दयानन्द पाण्डेय
- देश में रहते खाते हैं पर देशद्रोह से पहचाने गए / दयानन्द पाण्डेय
- उन के पास पैसे हैं भारत की बर्बादी के नारे हैं तराने हैं / दयानन्द पाण्डेय
- सुप्रीम कोर्ट अफजल की हत्यारी है यह कौन सी बात है / दयानन्द पाण्डेय
- भारत तेरे टुकड़े होंगे, इंशा अल्लाह इंशा अल्लाह नारे लगते हैं / दयानन्द पाण्डेय
- तुम्हारी प्रेम नदी में साईबेरियन पक्षी की तरह हम उड़े हैं / दयानन्द पाण्डेय
- मन यायावर है ठहरता ही नहीं पारे की तरह फिसलता बहुत है / दयानन्द पाण्डेय
- मनी लांड्रिंग बढ़ती जाती है देशभक्ति की बात करते हैं / दयानन्द पाण्डेय
- कुतर्क देखिए मां को बाप की बीवी बताते हैं / दयानन्द पाण्डेय
- अभिव्यक्ति का पंचांग कुछ इस तरह हँस-हँस कर बांच रहे हैं / दयानन्द पाण्डेय
- लहराती और लचकती हुई तुम कइन जैसी हो / दयानन्द पाण्डेय
- इशरत को बेटी अफजल को दामाद बताना चाहते हैं / दयानन्द पाण्डेय
- सेक्यूलर दिखने की बीमारी से लोग उबरना कहाँ चाहते हैं / दयानन्द पाण्डेय
- संसद बजट रुपए का आना जाना सब बहुत बड़ा धोखा है / दयानन्द पाण्डेय
- कामरेड तुम्हारे फासीवाद की नदी से गुज़रती अब यह नई सदी है / दयानन्द पाण्डेय
- तुम्हारे साथ बहते हुए रहना चाहता हूँ / दयानन्द पाण्डेय
- तुम हमारे साथ हो यह साथ ही सर्वदा याद रखते हैं / दयानन्द पाण्डेय
- लगता है कामरेड तुम्हारी काठ की हाड़ी उतर गई है / दयानन्द पाण्डेय
- रहता है लखनऊ में लेकिन लाहौर सुहाता है / दयानन्द पाण्डेय
- अपने भीतर तुम को चीन्ह रहा हूँ मैं तो हर पल हरियाली बीन रहा हूँ / दयानन्द पाण्डेय
- जिस संसद पर भरोसा था देश को उस संसद में कोई भरोसेमंद नेता नहीं रहा / दयानन्द पाण्डेय
- तुम्हारी आंख में मुझे खींचने वाला अब वह चुंबक नहीं रहा / दयानन्द पाण्डेय
- मेरे ही कांधे पर सिर रख कर दुलराना मुझे / दयानन्द पाण्डेय
- आग बन कर मन को दहकाने लगे हैं / दयानन्द पाण्डेय
- लोग तो मिलते ही रहते हैं हरदम ख़ुद से मिले बहुत दिन हुए / दयानन्द पाण्डेय
- जैसे अपने मन का वह कोई गड्ढा पाट रहे हैं / दयानन्द पाण्डेय
- आम में बौर देखता हूँ और तुम्हें खोजता हूँ / दयानन्द पाण्डेय
- मन में फूल खिला कर हम को फिर तड़पाने आए हैं / दयानन्द पाण्डेय
- मधुमास की हवा में बहा जा रहा हूँ / दयानन्द पाण्डेय
- जातीय आग में कूद फांद कर देश जलाने आए हैं / दयानन्द पाण्डेय
- आप उन्हें देशद्रोह पर घेरेंगे वह वंचित दलित बन जाएंगे / दयानन्द पाण्डेय
- वह मर मिटना चाहता है देश के लिए देश को मां मानता है / दयानन्द पाण्डेय
- बेटी को पेट में ही मार कर वह महिला दिवस मनाते हैं / दयानन्द पाण्डेय
- अब फागुन के दिन हैं सताने लगे हैं / दयानन्द पाण्डेय
- चकमा देने वाले ही अब तो हर रोज चमक रहे हैं / दयानन्द पाण्डेय
- शेर सारे पिंजरे में कैद रंगे सियारों के दिन हैं / दयानन्द पाण्डेय
- साथ रोती साथ हँसा करती है बेटी तो ऐसी ही हुआ करती है / दयानन्द पाण्डेय
- इन दिनों फैशन नया चला है सेना को गरियाने का / दयानन्द पाण्डेय
- जाने कौन सी बीमारी लग गई है उन को हर एक बात बुरी लगती है / दयानन्द पाण्डेय
- संसद मीडिया अदालत अफ़सर सब सज धज कर तैयार खड़े हैं / दयानन्द पाण्डेय
- ग्लोब्लाइज हो गए हैं बच्चे लेकिन यह लोग तो मनुस्मृति में उलझे हैं / दयानन्द पाण्डेय
- सेक्यूलरिज़्म के शौक ने उन्हें पमेलियन कुत्ता बना दिया / दयानन्द पाण्डेय
- खिड़कियां प्यार की खुल गईं मधुमास में / दयानन्द पाण्डेय
- हम बहुत रश्क से जावेद अख्तर अनुपम खेर देखते हैं / दयानन्द पाण्डेय
- भारत माता की जय बोलने से घबराए लोग जय हिंद बोल रहे हैं / दयानन्द पाण्डेय
- प्यार सितार का तार होता है टूट कर बज नहीं सकता / दयानन्द पाण्डेय
- मधुबाला जैसी तुम्हारी आंखों में आशनाई बहुत है / दयानन्द पाण्डेय
- तुम्हारे साथ हम नाव में क्या चढ़े यह अंजोरिया मचल गई / दयानन्द पाण्डेय
- तुम आती हो तो आता है फागुन फिर होली हैपी करती है / दयानन्द पाण्डेय
- मदहोश हो गए हैं रंग भी तुम से आज होली खेल कर / दयानन्द पाण्डेय
- अंबेडकर के आरक्षण की यही बड़ी सफलता है / दयानन्द पाण्डेय
- घर परिवार में उलझी स्त्री प्रेम में आ कर सुलझती है / दयानन्द पाण्डेय
- और तो और ललमुनिया की माई बदल गई / दयानन्द पाण्डेय
- कभी असहिष्णुता तो कभी भारत माता की जय का गिला है / दयानन्द पाण्डेय
- कम्युनिस्ट हो कर पूजा करना भी बहुत बड़ी लाचारी है / दयानन्द पाण्डेय
- लिखना है तुम्हारी आंख लेकिन कटार लिखता हूँ / दयानन्द पाण्डेय
- मधुमास बीत गया अब चढ़ते चईत का खरमास हो तुम / दयानन्द पाण्डेय
- बेज़मीर बन कर हमें झुकना नहीं आता / दयानन्द पाण्डेय
- फ़ेसबुक पर वह प्यार करती है सब कुछ यहीं स्वीकार है उसे / दयानन्द पाण्डेय
- दुनिया भर की झंझट है लेकिन प्यार करता हूँ / दयानन्द पाण्डेय
- मनाता हूँ ख़ुदा से बराबर तुम्हारे नगर में अपने कारवां से छूट जाऊं / दयानन्द पाण्डेय
- बेवफ़ाई करते हुए वफ़ा के निरंतर गीत गाने का क्या मतलब / दयानन्द पाण्डेय
- प्यार का वेंटिलेटर पर अचानक चले जाना अच्छा नहीं लगता / दयानन्द पाण्डेय
- हमारी मुहब्ब्त तुम्हारी ज़मींदारी नहीं है / दयानन्द पाण्डेय
- अगले जनम में सब आएँगे तुम भी आना / दयानन्द पाण्डेय
- लेकिन बोल गया सेक्स का सागर हूँ / दयानन्द पाण्डेय
- संबंधों में लड़ नहीं पाता बस रास्ता बदल लेता हूँ / दयानन्द पाण्डेय
- अब की आई ऐसी गरमी कि बालम चिरई भाग गई / दयानन्द पाण्डेय
- सुखद यह कि मन की सूखी नदी में धार ले कर लौटी है / दयानन्द पाण्डेय
- राजनीति के आगे चलने वाली साहित्य की वह मशाल नहीं मिली / दयानन्द पाण्डेय
- तुम्हारे भीतर मैं ख़ुद को खोजता हूँ / दयानन्द पाण्डेय
- ठीक सामने होती हो तुम और बात नहीं होती / दयानन्द पाण्डेय
- नए दौर की लड़की ग़ुलामी से निकलना चाहती है / दयानन्द पाण्डेय
- प्यार में कभी अंहकार का आकाश नहीं होता / दयानन्द पाण्डेय
- मेरे मन के आषाढ़ को अपने सावन से मिलने तो दो / दयानन्द पाण्डेय
- अब सजदा मेरा हराम है इतने लोगों के मर जाने के बाद / दयानन्द पाण्डेय
- आतंक का मज़हब नहीं होता यह गाना बेसुरा लगता है / दयानन्द पाण्डेय
- हमारा इम्तहान लेने की तुम्हारी आदत सी है / दयानन्द पाण्डेय
- मनुष्यता कम सेक्यूलरिज़्म ज़्यादा समझते हैं / दयानन्द पाण्डेय
- फागुन धड़कता देह की हर पोर में तुम कहाँ हो / दयानन्द पाण्डेय
- प्रधान मंत्री ख़ुद बाज़ार में है , बोलो ख़रीदोगे / दयानन्द पाण्डेय