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शृंगार-लतिका / द्विज/ पृष्ठ 5
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					- उजरत कहुँ संकेत हिऐं, बहु दुख उपजावैं / शृंगार-लतिका / द्विज
 - खेलि-रास हरि दुरैं, बहुरि बन-कुंजन माँहीं / शृंगार-लतिका / द्विज
 - श्री राधा की कबहुँ हरि / शृंगार-लतिका / द्विज
 - या बिधि बहु-लीला रचैं / शृंगार-लतिका / द्विज
 - कौन कहाँ कौ राव / शृंगार-लतिका / द्विज
 - तब तजि संभ्रम-भास / शृंगार-लतिका / द्विज
 - चिंता और उछाह मैं / शृंगार-लतिका / द्विज
 - अति प्रसन्न गदगद गिरा / शृंगार-लतिका / द्विज
 - जैसी कछु कीन्ही द्विज-देव की बिनै के बस / शृंगार-लतिका / द्विज
 - बैठी चित-हित चाँहि / शृंगार-लतिका / द्विज
 
	
	