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19:19, 17 सितम्बर 2011 का अवतरण
शेष बची चौथाई रात
रचनाकार | वीरेन्द्र खरे 'अकेला' |
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प्रकाशक | अयन प्रकाशन, महरौली, नई दिल्ली-110030 |
वर्ष | 1999 |
भाषा | हिन्दी |
विषय | आम आदमी के जीवन और व्यवस्था की ख़ामियों पर केन्द्रित ग़ज़लें |
विधा | ग़ज़लें |
पृष्ठ | 80 |
ISBN | 81-7408-135-6 |
विविध | 80.00 रूपये |
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
- कवर टिप्पणी (गोपाल दास नीरज एवं बशीर बद्र / वीरेन्द्र खरे अकेला
- अपनी बात / वीरेन्द्र खरे अकेला
- एक अकेला सफ़र / विन्ध्य कोकिल भैया लाल व्यास / वीरेन्द्र खरे अकेला
[ग़ज़ल क्रम]
- मान्यवरों मै भी कुछ बोलूँ अगर इजाज़त हो / वीरेन्द्र खरे अकेला
- मेरे भी हालत सुनो फिर कुछ कहना / वीरेन्द्र खरे अकेला
- पहले तेरी जेब टटोली जाएगी / वीरेन्द्र खरे अकेला
- काम है जिनका रस्ते रस्ते बम रखना / वीरेन्द्र खरे अकेला
- फिर पुरानी राह पर आना पड़ेगा / वीरेन्द्र खरे अकेला
- क्यूँ हकीक़त बयान करता है / वीरेन्द्र खरे अकेला
- तबीयत हमारी है भारी सुबह से / वीरेन्द्र खरे अकेला
- किस तरह पूरी हो घन की आरज़ू / वीरेन्द्र खरे अकेला
- कौन कहता है की हम मर जाएँगे / वीरेन्द्र खरे अकेला
- पीड़ा का व्यापार किसी के कहने पर / वीरेन्द्र खरे अकेला
- रवि-किरणों से लड़ी हुई हैं नई कोंपलें ग़ज़लों की / वीरेन्द्र खरे अकेला
- रो दिए खो चुके आत्मबल हैं नयन / वीरेन्द्र खरे अकेला
- आजकल तो रास्ता अंधे भी दिखलाने लगे /वीरेन्द्र खरे अकेला
- रूठा जब से सावन है /वीरेन्द्र खरे अकेला
- ये वक़्त मेहमान के आने का वक़्त है /वीरेन्द्र खरे अकेला
- रूठा हुआ है मुझसे इस बात पर ज़माना /वीरेन्द्र खरे अकेला
- अपलक मुझे निहारा करते दो नैना /वीरेन्द्र खरे अकेला
- स्वप्न सागर-पार का बेकार है /वीरेन्द्र खरे अकेला
- हमने करली सफ़र की तैयारी /वीरेन्द्र खरे अकेला
- प्यार किसी का पाले कौन /वीरेन्द्र खरे अकेला
- मुझको आज मिली सच्चाई /वीरेन्द्र खरे अकेला
- इस दौर में ईमान जिस के पास होता है /वीरेन्द्र खरे अकेला
- पत्थर को पिघलाने जैसा तुम को प्यार सिखाना है /वीरेन्द्र खरे अकेला
- तुमने ही मुंह मोड़ लिया मन की आशाएं जाएँ कहाँ /वीरेन्द्र खरे अकेला
- दर्दे -दिल पहुंचेगा अब अंजाम तक /वीरेन्द्र खरे अकेला
- उठती शंकाओं पार सोच विचार बहुत आवश्यक है /वीरेन्द्र खरे अकेला
- चाहते जीना नहीं पर जीने को मजबूर हैं /वीरेन्द्र खरे अकेला
- चुप रहेंगे ग़लत पर कदाचित नहीं /वीरेन्द्र खरे अकेला
- फिर बढ़ाना द्वार पर पाबंदियां /वीरेन्द्र खरे अकेला
- जाग उठे हैं सपने क्या -क्या अय हय हय /वीरेन्द्र खरे अकेला
- दिल के दरिया में उतरने का मज़ा भी जान ले /वीरेन्द्र खरे अकेला
- रंज के सैलाब में मुझको बहाकर ले गया /वीरेन्द्र खरे अकेला
- कभी नयन को नम कर जातीं प्रेयसि तेरी स्मृतियाँ /वीरेन्द्र खरे अकेला
- करके इश्क पड़ा पछताना /वीरेन्द्र खरे अकेला
- उमीदों के कई रंगीं फसाने ढूंढ़ लेते हैं /वीरेन्द्र खरे अकेला
- भूल कर भेदभाव कई बातें /वीरेन्द्र खरे अकेला
- दिन बीता लो आई रात /वीरेन्द्र खरे अकेला
- चिकनी चुपड़ी बातों के मतलब मैं बोलूँगा /वीरेन्द्र खरे अकेला
- फासले कुछ कम हुए हैं /वीरेन्द्र खरे अकेला
- बढ़ते उपचारों का युग है /वीरेन्द्र खरे अकेला
- कब से बैठा सोच रहा हूँ मैं क्या भूल गया /वीरेन्द्र खरे अकेला
- कब होती है कोई आह्ट /वीरेन्द्र खरे अकेला
- चिकित्सकों को मैं यारो बीमार समझ में ना आया /वीरेन्द्र खरे अकेला
- दूर से ही हाथ जोड़े हमने ऐसे ज्ञान से /वीरेन्द्र खरे अकेला
- झंकृत है आज मेरे मन का हर तार मुझे प्यार हो गया /वीरेन्द्र खरे अकेला
- पूछो मत क्या हाल चाल हैं /वीरेन्द्र खरे अकेला
- खुद की नहीं खबर प्यारे /वीरेन्द्र खरे अकेला
- गुल को अंगार कर गया है ग़म /वीरेन्द्र खरे अकेला
- हर ख़ुशी ग़म में बदलती है कहो कैसे हँसूं /वीरेन्द्र खरे अकेला
- जो पूछो तो मेरी उमर कुछ नहीं है /वीरेन्द्र खरे अकेला
- चाहते हैं वृक्ष से छाया घनी /वीरेन्द्र खरे अकेला
- क्या पता था यह सियासी खेल खेला जायेगा /वीरेन्द्र खरे अकेला
- जो खुल कर अपनी भी खामी कहते हैं /वीरेन्द्र खरे अकेला
- क्या व्यवस्थित रख सकेंगे निज घरों को /वीरेन्द्र खरे अकेला
- ली गई थी जो परीक्षा वो बड़ी भारी न थी /वीरेन्द्र खरे अकेला
- किसको किसको ले के जायेगा ख़ुशी के गाँव में /वीरेन्द्र खरे अकेला
- छल किया है छल मिलेगा आपको /वीरेन्द्र खरे अकेला
- सूना घर आंगन लागे है ए साथी /वीरेन्द्र खरे अकेला
- अपना सा हर शख्स हुआ है /वीरेन्द्र खरे अकेला
- गुजरेंगे इस चमन से तूफान और कितने /वीरेन्द्र खरे अकेला
- उम्मीद कुछ जगा के भरोसे के आदमी /वीरेन्द्र खरे अकेला
- कुछ मुक्तक /वीरेन्द्र खरे अकेला