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"जहीर कुरैशी" के अवतरणों में अंतर
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+ | * [[असली चेहरा याद नहीं / जहीर कुरैशी]] | ||
+ | * [[आत्म-परिचय का गीत / जहीर कुरैशी]] | ||
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* [[वो हिम्मत करके पहले अपने अन्दर से निकलते हैं / जहीर कुरैशी]] | * [[वो हिम्मत करके पहले अपने अन्दर से निकलते हैं / जहीर कुरैशी]] | ||
* [[वे शायरों की कलम बेज़ुबान कर देंगे / जहीर कुरैशी]] | * [[वे शायरों की कलम बेज़ुबान कर देंगे / जहीर कुरैशी]] | ||
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* [[मुस्कुराना भी एक चुम्बक है / जहीर कुरैशी]] | * [[मुस्कुराना भी एक चुम्बक है / जहीर कुरैशी]] | ||
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+ | * [[दिन-ब-दिन घाव गहरे हुए / जहीर कुरैशी]] | ||
+ | * [[मुश्किल से मुझको आपके घर का पता लगा / जहीर कुरैशी]] | ||
+ | ====बाल-कविताएँ==== | ||
+ | * [[पप्पी करे शिकायत / जहीर कुरैशी]] | ||
+ | * [[सपने में / जहीर कुरैशी]] | ||
+ | * [[कुकडूँ-कूँ / जहीर कुरैशी]] |
12:24, 21 अप्रैल 2021 के समय का अवतरण
जहीर कुरैशी
जन्म | 05 अगस्त 1950 |
---|---|
निधन | 20 अप्रैल 2021 |
जन्म स्थान | चंदेरी, ज़िला गुना, मध्य प्रदेश, भारत |
कुछ प्रमुख कृतियाँ | |
लेखनी के स्वप्न (1975), एक टुकड़ा धूप (1979), चांदनी का दु:ख (1986), समंदर ब्याहने आया नहीं है(1992), भीड़ में सबसे अलग (2003) पेड़ तन कर भी नहीं टूटा | |
विविध | |
जीवन परिचय | |
जहीर कुरैशी / परिचय |
विषय सूची
ग़ज़ल संग्रह
- भीड़ में सबसे अलग / जहीर कुरैशी
- समंदर ब्याहने आया नहीं है / जहीर कुरैशी
- चांदनी का दु:ख / जहीर कुरैशी
- पेड़ तन कर भी नहीं टूटा / जहीर कुरैशी
नवगीत
ग़ज़लें
- वो हिम्मत करके पहले अपने अन्दर से निकलते हैं / जहीर कुरैशी
- वे शायरों की कलम बेज़ुबान कर देंगे / जहीर कुरैशी
- अँधेरे की सुरंगों से निकल कर / जहीर कुरैशी
- घर छिन गए तो सड़कों पे बेघर बदल गए / जहीर कुरैशी
- सब की आँखों में नीर छोड़ गए / जहीर कुरैशी
- हमारे भय पे पाबंदी लगाते हैं / जहीर कुरैशी
- उन्हें देखा गया खिलते कमल तक / जहीर कुरैशी
- दबंगों की अनैतिकता अलग है / जहीर कुरैशी
- आँखों की कोर का बडा हिस्सा तरल मिला / जहीर कुरैशी
- सपने अनेक थे तो मिले स्वप्न-फल अनेक / जहीर कुरैशी
- चित्रलिखित मुस्कान सजी है चेहरों पर / जहीर कुरैशी
- गगन तक मार करना आ गया है / जहीर कुरैशी
- मुस्कुराना भी एक चुम्बक है / जहीर कुरैशी
- फूल के बाद, फलना ज़रूरी लगा / जहीर कुरैशी
- उपन्यासों की बानी हो रही है / जहीर कुरैशी
- वो जिन लोगों को सपने बेचते हैं / जहीर कुरैशी
- उपालंभ में करता है--ग़ज़ल / जहीर कुरैशी
- लोग जो गुनगुनाते रहे / जहीर कुरैशी
- दिन-ब-दिन घाव गहरे हुए / जहीर कुरैशी
- मुश्किल से मुझको आपके घर का पता लगा / जहीर कुरैशी