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*[[एक बड़े ऊँचे फाटक से आग उठी, सडकों लहरी / ऋषभ देव शर्मा ]] | *[[एक बड़े ऊँचे फाटक से आग उठी, सडकों लहरी / ऋषभ देव शर्मा ]] | ||
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+ | *[[मानचित्र को चीरती, मज़हब की शमशीर / | ||
+ | *[[सभी रंग बदरंग हैं, कैसे खेलूँ रंग? | ||
+ | *[[लोगों ने आग सही कितनी / | ||
+ | *[[मिलीं शाखें गिलहरी को इमलियों की / | ||
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22:17, 26 अप्रैल 2009 का अवतरण
तरकश
रचनाकार | ऋषभ देव शर्मा |
---|---|
प्रकाशक | तेवरी प्रकाशन, खतौली |
वर्ष | 1996 |
भाषा | हिन्दी |
विषय | कविताएँ |
विधा | तेवरी |
पृष्ठ | 72 |
ISBN | |
विविध |
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- अब न बालों और गालों की कथा लिखिए / ऋषभ देव शर्मा
- मैं हिंदू हूँ मैं मुस्लिम हूँ मैं मस्जिद मैं मंदिर हूँ / ऋषभ देव शर्मा
- बौनी जनता, ऊंची कुर्सी, प्रतिनिधियों का कहना है / ऋषभ देव शर्मा
- धुंध है घर में उजाला लाइए / ऋषभ देव शर्मा
- आदमकद मिल जाए कोई दल-दल द्वार-द्वार भटका / ऋषभ देव शर्मा
- हटो, यह रास बंद करो / ऋषभ देव शर्मा
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- शक्ति का अवतार हैं ये रोटियाँ / ऋषभ देव शर्मा
- यह नए दिन का उजाला देख लो / ऋषभ देव शर्मा
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- जब नसों में पीढियों की, हिम समाता है / ऋषभ देव शर्मा
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- एक नेता मंच पर कल रो पड़ा / ऋषभ देव शर्मा
- किसी को भून डालें वे हाथ में स्टेनगन लेकर / ऋषभ देव शर्मा
- पुरखों ने कर्ज़ लिया, पीढ़ी को भरने दो / ऋषभ देव शर्मा
- कच्ची नीम की निंबौरी, सावन अभी न अइयो रे / ऋषभ देव शर्मा
- माला-टोपी ने मिल करके कुछ ऐसा उपचार किया / ऋषभ देव शर्मा
- हँस के हरेक ज़हर को पी जाय फकीरा / ऋषभ देव शर्मा
- एक बड़े ऊँचे फाटक से आग उठी, सडकों लहरी / ऋषभ देव शर्मा
- [[अब भारत नया बनाएँगे, हम वंशज गाँधी के /
- [[गलियों की आवाज़ आम है , माना ख़ास नहीं होगी /
- [[योगी बन अन्याय देखना, इसको धर्म नहीं कहते हैं /
- [[मंच पर केवल छुरे हैं, या मुखौटे हैं /
- [[दृष्टि धुँधली, स्वाद कडुआने लगा /
- [[पग-पग घर-घर हर शहर, ज्वालामय विस्फोट /
- [[कुर्सी का आदेश कि अब से, मिल कर नहीं चलोगे /
- [[माना कि भारतवर्ष यह संयम की खान है /
- [[नस्ल के युद्ध हैं /
- [[हिंसा की दूकान खोलकर, बैठे ऊँचे देश /
- [[लोकशाही के सभी सामान लाएँगे /
- [[अपने हक में वोट दिला के, क्या उत्ती के पाथोगे /
- [[पाक सीमा पर बसे इक गाँव में यह हाल देखा /
- [[क्या हुआ जो गाँव में घर-घर अँधेरा है /
- [[धार लगा कर सब आवाजें, आरी करनी हैं /
- [[औंधी कुर्सी, उस पर पंडा /
- [[कुर्ते की जेबें खाली हैं,औ' फटा हुआ है पाजामा /
- [[मानचित्र को चीरती, मज़हब की शमशीर /
- [[सभी रंग बदरंग हैं, कैसे खेलूँ रंग?
- [[लोगों ने आग सही कितनी /
- [[मिलीं शाखें गिलहरी को इमलियों की /
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