भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"गणेश बिहारी 'तर्ज़'" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) |
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 15: | पंक्ति 15: | ||
{{KKCatUttarPradesh}} | {{KKCatUttarPradesh}} | ||
====ग़ज़ल-संग्रह==== | ====ग़ज़ल-संग्रह==== | ||
− | * ''' | + | * '''हिना बन गई ग़ज़ल / गणेश बिहारी 'तर्ज़''' |
====कुछ प्रतिनिधि रचनाएँ==== | ====कुछ प्रतिनिधि रचनाएँ==== | ||
* [[दुनिया बनी तो हम्द-ओ-सना बन गई ग़ज़ल / गणेश बिहारी 'तर्ज़']] | * [[दुनिया बनी तो हम्द-ओ-सना बन गई ग़ज़ल / गणेश बिहारी 'तर्ज़']] |
22:55, 15 सितम्बर 2016 के समय का अवतरण
गणेश बिहारी 'तर्ज़'
जन्म | 18 मई 1928 |
---|---|
निधन | 2008 |
उपनाम | तर्ज |
जन्म स्थान | लखनऊ, उत्तर प्रदेश, भारत |
कुछ प्रमुख कृतियाँ | |
हिना बन गई ग़ज़ल | |
विविध | |
जीवन परिचय | |
गणेश बिहारी 'तर्ज़' / परिचय |
ग़ज़ल-संग्रह
- हिना बन गई ग़ज़ल / गणेश बिहारी 'तर्ज़
कुछ प्रतिनिधि रचनाएँ
- दुनिया बनी तो हम्द-ओ-सना बन गई ग़ज़ल / गणेश बिहारी 'तर्ज़'
- अश्क बहने दे यूँ ही / गणेश बिहारी 'तर्ज़'
- इश्क़ की मार बड़ी दर्दीली, इश्क़ में जी न फँसाना जी / गणेश बिहारी 'तर्ज़'
- इक ज़माना था कि जब था कच्चे धागों का भरम / गणेश बिहारी 'तर्ज़'
- एक नज़र क्या इधर हो गई / गणेश बिहारी 'तर्ज़'
- एक ज़रा दिल के करीब आओ तो कुछ चैन पड़े / गणेश बिहारी 'तर्ज़'
- चमकी कहीं जो बर्क तो एहसास बन गई / गणेश बिहारी 'तर्ज़'
- जाने जाने की बात करते हो / गणेश बिहारी 'तर्ज़'
- बेनियाज़-ए-सहर हो गई / गणेश बिहारी 'तर्ज़'
- मुझे दे के मय मेरे साक़िया मेरी तिश्नगी को हवा न दे / गणेश बिहारी 'तर्ज़'
- रह गए आँसू, नैन बिछाए / गणेश बिहारी 'तर्ज़'
- सपने मिलन के मिल के तो काफ़ूर हो गए / गणेश बिहारी 'तर्ज़'
- है बात वक़्त वक़्त की चलने की शर्त है / गणेश बिहारी 'तर्ज़'
- अहल-ए-दिल के वास्ते पैग़ाम हो कर / गणेश बिहारी 'तर्ज़'
- दोस्ती अपनी जगह और दुश्मनी / गणेश बिहारी 'तर्ज़'
- जिस्म तो मिट्टी में मिलता है यहीं / गणेश बिहारी 'तर्ज़'
- कितने जुमले हैं के जो रू-पोश हैं / गणेश बिहारी 'तर्ज़'
- माहौल साज़-गार करो मैं नशे में हूँ / गणेश बिहारी 'तर्ज़'
- रह-ए-इश्क़ में ग़म-ए-ज़िंदगी की भी / गणेश बिहारी 'तर्ज़'
- साँसों की जल-तरंग पर नग़मा-ए-इश्क़ / गणेश बिहारी 'तर्ज़'
- सामने आँखों के घर का घर बने और टूट / गणेश बिहारी 'तर्ज़'