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+ | * [[भूले भूले भौंर बन भाँवरे भरैंगे चहूँ / द्विज]] | ||
+ | * [[घहरि घहरि घन सघन चहुँधा घेरि / द्विज]] |
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द्विजदेव
जन्म | 30 दिसम्बर 1820 |
---|---|
निधन | 1871 |
उपनाम | द्विज, द्विजदेव |
जन्म स्थान | |
कुछ प्रमुख कृतियाँ | |
शृंगार बत्तीसी, शृंगार-लतिका, शृंगार चालीसी | |
विविध | |
पूरा नाम महाराज मानसिंह "द्वजदेव"। रीतिकाल के कवि। ब्रजभाषा के शृंगार रस के कवि। | |
जीवन परिचय | |
द्विज / परिचय |
प्रतिनिधि संग्रह
- शृंगार बत्तीसी / द्विज
- शृंगार चालीसी / द्विज
- शृंगारलतिकासौरभ / द्विज
- अविमुक्तपंचदशी / द्विज
- मान मयंक / द्विज
प्रतिनिधि रचनाएँ
- डारे कं मथनि, बिसारे कं घी कौ घडा / द्विज
- बोलि हारे कोकिल, बुलाई हारे केकीगन / द्विज
- सुर ही के भार, सूधे सबद सुकरीन के / द्विज
- आज सुभाइन ही गई बाग / द्विज
- आवती चली है यह, विषम बयारि देखि / द्विज
- भ्रमे भूले मलिंदनि देखि नितै / द्विज
- बाग बिलोकनि आई इतै / द्विज
- जावक के भार पग धरा पै मंद / द्विज
- मदमाती रसाडाल की डारन पै / द्विज
- चित चाह अबूझ कहै कितने छवि छीनी गयँदन की टटकी / द्विज
- कै बिधि कँचनगार सिंगार कै दीने बनाय अनूपम रंग के / द्विज
- मदमाती रसाल की डारन पै चढ़ि ऊँचे से बोल उचारती हैँ / द्विज
- बाँके संकहीने राते कंज छबि छीने माते / द्विज
- भूले भूले भौंर बन भाँवरे भरैंगे चहूँ / द्विज
- घहरि घहरि घन सघन चहुँधा घेरि / द्विज