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14:11, 2 दिसम्बर 2017 का अवतरण
ज़फ़र गोरखपुरी
जन्म | 05 मई 1935 |
---|---|
निधन | 29 जुलाई 2017 |
जन्म स्थान | गाँव बेदौली बाबू, गोरखपुर, उत्तरप्रदेश |
कुछ प्रमुख कृतियाँ | |
तेशा (1962), वादिए-संग (1975), गोखरु के फूल (1986), चिराग़े-चश्मे-तर (1987), हलकी ठंडी ताज़ा हवा(2009) — सभी कविता-संग्रह। नाच री गुड़िया (बच्चों की कविताएँ 1978 )। आर-पार का मंज़र (ग़ज़ल-संग्रह 1997)। | |
विविध | |
बच्चों के लिए कहानियाँ भी लिखी हैं जो 1979 में‘सच्चाइयाँ’ नामक कहानी-संग्रह में संकलित हैं। महाराष्ट्र उर्दू अकादमी का राज्य पुरस्कार (1993 ), इम्तियाज़े मीर अवार्ड (लखनऊ ) और युवा-चेतना गोरखपुर द्वारा फ़िराक़ सम्मान (1996) | |
जीवन परिचय | |
ज़फ़र गोरखपुरी / परिचय |
प्रतिनिधि रचनाएँ
प्रतिनिधि रचनाएँ
- अब के साल पूनम में, जब तू आएगी मिलने / ज़फ़र गोरखपुरी
- अश्क-ए-ग़म आँख से बाहर भी / ज़फ़र गोरखपुरी
- इकीसवीं सदी / ज़फ़र गोरखपुरी
- इरादा हो अटल तो मोजज़ा ऐसा भी होता है / ज़फ़र गोरखपुरी
- क्या उम्मीद करे हम उन से जिनको वफ़ा मालूम नहीं / ज़फ़र गोरखपुरी
- कौन याद आया ये महकारें कहाँ से आ गईं / ज़फ़र गोरखपुरी
- चेहरा लाला-रंग हुआ है मौसम-ए-रंज / ज़फ़र गोरखपुरी
- जब इतनी जाँ से मोहब्बत बढ़ा / ज़फ़र गोरखपुरी
- जब मेरी याद सताए तो मुझे ख़त लिखना / ज़फ़र गोरखपुरी
- ज़मीं, फिर दर्द का ये सायबां कोई नहीं देगा / ज़फ़र गोरखपुरी
- जिस्म छूती है जब आ आ के पवन बारिश में / ज़फ़र गोरखपुरी
- जो अपनी है वो ख़ाक-ए-दिल-नशीनी / ज़फ़र गोरखपुरी
- जो आए वो हिसाब-ए-आब-ओ-दाना / ज़फ़र गोरखपुरी
- तो फिर मैं क्या अगर अनफ़ास के / ज़फ़र गोरखपुरी
- दिन को भी इतना अन्धेरा है मेरे कमरे में / ज़फ़र गोरखपुरी
- देखें क़रीब से भी तो अच्छा दिखाई दे / ज़फ़र गोरखपुरी
- धूप क्या है और साया क्या है अब मालूम हुआ / ज़फ़र गोरखपुरी
- पल पल जीने की ख़्वाहिश में / ज़फ़र गोरखपुरी
- पुकारे जा रहे हो अजनबी से चाहते / ज़फ़र गोरखपुरी
- बदन कजला गया तो दिल की ताबानी से निकलूंगा / ज़फ़र गोरखपुरी
- मजबूरी के मौसम में भी जीना पड़ता है / ज़फ़र गोरखपुरी
- मयक़दा सबका है सब हैं प्यासे / ज़फ़र गोरखपुरी
- मसीहा उंगलियां तेरी.... / ज़फ़र गोरखपुरी
- मिले किसी से नज़र तो समझो ग़ज़ल हुई / ज़फ़र गोरखपुरी
- मेरा क़लम मेरे जज़्बात माँगने / ज़फ़र गोरखपुरी
- मेरी इक छोटी सी कोशिश तुझको पाने के लिए / ज़फ़र गोरखपुरी
- मेरे बाद किधर जाएगी तन्हाई / ज़फ़र गोरखपुरी
- मैं ऐसा ख़ूबसूरत रंग हूँ दीवार का अपनी / ज़फ़र गोरखपुरी
- मौसम को इशारों से बुला क्यूँ नहीं लेते / ज़फ़र गोरखपुरी
- सिलसिले के बाद कोई सिलसिला / ज़फ़र गोरखपुरी
- हमेशा है वस्ल-ए-जुदाई का धन्धा / ज़फ़र गोरखपुरी
- एक मुट्ठी एक सहरा भेज दे / ज़फ़र गोरखपुरी
- रौशनी परछाईं पैकर आख़िरी / ज़फ़र गोरखपुरी
- अभी ज़िन्दा हैं हम पर ख़त्म कर ले इम्तिहाँ सारे / ज़फ़र गोरखपुरी
- अपने अतवार में कितना बड़ा शातिर होगा / ज़फ़र गोरखपुरी
- छत टपकती थी अगरचे फिर भी आ जाती थी नींद / ज़फ़र गोरखपुरी
- फ़लक ने भी न ठिकाना कहीं दिया हम को / ज़फ़र गोरखपुरी
- कैसी शब है एक इक करवट पे कट जाता है जिस्म / ज़फ़र गोरखपुरी
- ख़त लिख के कभी और कभी ख़त को जला कर / ज़फ़र गोरखपुरी
- कितनी आसानी से मशहूर किया है ख़ुद को / ज़फ़र गोरखपुरी
- कोई आँखों के शोले पोंछने वाला नहीं होगा / ज़फ़र गोरखपुरी
- मैं 'ज़फ़र' ता-ज़िंदगी बिकता रहा परदेस में / ज़फ़र गोरखपुरी
- नहीं मालूम आख़िर किस ने किस को थाम रक्खा है / ज़फ़र गोरखपुरी
- समुन्दर ले गया हम से वो सारी सीपियाँ वापस / ज़फ़र गोरखपुरी
- शायद अब तक मुझ में कोई घोंसला आबाद है / ज़फ़र गोरखपुरी
- शजर के क़त्ल में इस का भी हाथ है शायद / ज़फ़र गोरखपुरी
- तन्हाई को घर से रुख़्सत कर तो दो / ज़फ़र गोरखपुरी
- उसे ठहरा सको इतनी भी तो वुसअत नहीं घर में / ज़फ़र गोरखपुरी
- ज़ेहनों की कहीं जंग कहीं ज़ात का टकराव / ज़फ़र गोरखपुरी