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ग़ुलाम हमदानी 'मुसहफ़ी'
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ग़ुलाम हमदानी 'मुसहफ़ी'
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जन्म | 1751 |
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निधन | 1824 |
जन्म स्थान | अकबरपुर, दिल्ली |
कुछ प्रमुख कृतियाँ | |
विविध | |
जीवन परिचय | |
ग़ुलाम हमदानी 'मुसहफ़ी' / परिचय |
कुछ प्रतिनिधि रचनाएँ
- अव्वल तो तेरे कूचे में आना नहीं मिलता / ग़ुलाम हमदानी 'मुसहफ़ी'
- दिल चीज़ क्या है चाहिए तो जान लीजिए / ग़ुलाम हमदानी 'मुसहफ़ी'
- दिल चुराना ये काम है तेरा / ग़ुलाम हमदानी 'मुसहफ़ी'
- दिल को ये इज़ितरार कैसा है / ग़ुलाम हमदानी 'मुसहफ़ी'
- ग़ुस्से को जाने दीजिए न तेवरी चढ़ाइए / ग़ुलाम हमदानी 'मुसहफ़ी'
- हर-चंद के बात अपनी कब लुत्फ़ से खाली है / ग़ुलाम हमदानी 'मुसहफ़ी'
- इस क़दर भी तो मेरी जान न तरसाया कर / ग़ुलाम हमदानी 'मुसहफ़ी'
- जब के बेपर्दा तू हुआ होगा / ग़ुलाम हमदानी 'मुसहफ़ी'
- जब तक के तेरी गालियाँ खाने के नहीं हम / ग़ुलाम हमदानी 'मुसहफ़ी'
- कभी वफ़ाएँ कभी बेवफ़ाइयाँ देखीं / ग़ुलाम हमदानी 'मुसहफ़ी'
- खड़ा ने सुन के सदा मेरी एक यार रहा / ग़ुलाम हमदानी 'मुसहफ़ी'
- खेल जाते हैं जान पर आशिक़ / ग़ुलाम हमदानी 'मुसहफ़ी'
- ख़्वाब था या ख़याल था क्या था / ग़ुलाम हमदानी 'मुसहफ़ी'
- की आह हम ने लेकिन उस ने इधर न देखा / ग़ुलाम हमदानी 'मुसहफ़ी'
- मुहँ में जिस के तू शब-ए-वस्ल ज़बाँ देता है / ग़ुलाम हमदानी 'मुसहफ़ी'
- न पूछ इश्क़ के सदमें उठाए हैं क्या क्या / ग़ुलाम हमदानी 'मुसहफ़ी'
- ना-तवानी के सबब याँ किस से उट्ठा जाए हैं / ग़ुलाम हमदानी 'मुसहफ़ी'
- नसीबों से कोई गर मिल गया है / ग़ुलाम हमदानी 'मुसहफ़ी'
- पर्दा उठा के महर को रूख़ की झलक दिखा के यूँ / ग़ुलाम हमदानी 'मुसहफ़ी'
- रात पर्दे से ज़रा मुहँ जो किसू का निकला़ / ग़ुलाम हमदानी 'मुसहफ़ी'
- रो के इन आँखों ने दरिया कर दिया / ग़ुलाम हमदानी 'मुसहफ़ी'
- सदा फ़िक्र-ए-रोज़ी है जा ज़िंदगी है / ग़ुलाम हमदानी 'मुसहफ़ी'
- सर अपने को तुझ पर फ़िदा कर चुके हम / ग़ुलाम हमदानी 'मुसहफ़ी'
- शब-ए-हिज्राँ में था और तन्हाई का आलम था / ग़ुलाम हमदानी 'मुसहफ़ी'
- तुम भी आओगे मेरे घर जो सनम क्या होगा / ग़ुलाम हमदानी 'मुसहफ़ी'
- उम्र-ए-पस-मांदा कुछ दलील सी है / ग़ुलाम हमदानी 'मुसहफ़ी'
- उस रस्क-ए-मह को याद दिलाती है चाँदनी / ग़ुलाम हमदानी 'मुसहफ़ी'
- वो चाँदनी रात और वो मुलाक़ात का आलम / ग़ुलाम हमदानी 'मुसहफ़ी'
- आज पलकों को जाते है आँसू / ग़ुलाम हमदानी 'मुसहफ़ी'
- आसाँ नहीं है तन्हा दर उस का बाज़ करना / ग़ुलाम हमदानी 'मुसहफ़ी'
- आशिक़ तो मिलगें तुझे इंसाँ न मिलगा / ग़ुलाम हमदानी 'मुसहफ़ी'
- आतिश-ए-ग़म में इस के जलते हैं / ग़ुलाम हमदानी 'मुसहफ़ी'