भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ऊषा / विजयदान देथा 'बिज्जी'
Kavita Kosh से
आशीष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:55, 1 सितम्बर 2016 का अवतरण
ऊषा
क्या आपके पास इस पुस्तक के कवर की तस्वीर है?
कृपया kavitakosh AT gmail DOT com पर भेजें
कृपया kavitakosh AT gmail DOT com पर भेजें
रचनाकार | विजयदान देथा 'बिज्जी' |
---|---|
प्रकाशक | राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर |
वर्ष | |
भाषा | हिन्दी |
विषय | कविता |
विधा | |
पृष्ठ | 80 |
ISBN | |
विविध |
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
- मैं चिर मौन भी तो क्योंकर / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- मुझ मानव का, मानस मृणाल ही क्यों / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- नयनों में रात बिता दूँगा ! / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- जाग्रत कर चिर—प्रसुप्त प्यार मेरा / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- मेरे रोम—रोम में ऊषा छाई ! / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- इतनी तो मेरी भी सुन लो ! / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- मेरा तो स्वप्न बना रखना ! / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- मैं तुमको न मिटने दूँगा ! / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- किसका सन्देशा लाई हो / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- क्या यह आमन्त्रण गान सुनाया ? / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- मेरे अन्तर—तम में छिप जाओ ! / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- तेरे श्रम का ही है प्रतिफल ! / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- मेरे ये दो नयन सितारे ! / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- तुम्हारा व्यक्तित्व है कितना प्रबल ! / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- करुणा की सजीव सी प्रतिमा हो तुम / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- प्रसव पीड़ा से पीड़ित ऊषा ! / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- मैं तुमको पा लूँगा ! / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- यह निष्ठुर-सी जल-क्रीड़ा क्यों ? / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- तुम अवगुण्ठन ही के अन्दर ! / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- है क्षणिक तुम्हारा भी यौवन ! / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- तेरी निष्ठुरता का अनुभव कर / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- आज कितनी लाल ऊषा ! / विजयदान देथा 'बिज्जी'