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ऊषा / विजयदान देथा 'बिज्जी'
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ऊषा
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रचनाकार | विजयदान देथा 'बिज्जी' |
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प्रकाशक | राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर |
वर्ष | |
भाषा | हिन्दी |
विषय | कविता |
विधा | |
पृष्ठ | 80 |
ISBN | |
विविध |
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- मैं चिर मौन भी तो क्योंकर / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- मुझ मानव का, मानस मृणाल ही क्यों / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- नयनों में रात बिता दूँगा ! / विजयदान देथा 'बिज्जी'
* जाग्रत कर चिर—प्रसुप्त प्यार मेरा / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- मेरे रोम—रोम में ऊषा छाई ! / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- इतनी तो मेरी भी सुन लो ! / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- मेरा तो स्वप्न बना रखना ! / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- मैं तुमको न मिटने दूँगा ! / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- किसका सन्देशा लाई हो / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- क्या यह आमन्त्रण गान सुनाया ? / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- मेरे अन्तर—तम में छिप जाओ ! / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- तेरे श्रम का ही है प्रतिफल ! / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- मेरे ये दो नयन सितारे ! / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- तुम्हारा व्यक्तित्व है कितना प्रबल ! / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- करुणा की सजीव सी प्रतिमा हो तुम / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- प्रसव पीड़ा से पीड़ित ऊषा ! / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- मैं तुमको पा लूँगा ! / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- यह निष्ठुर-सी जल-क्रीड़ा क्यों ? / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- तुम अवगुण्ठन ही के अन्दर ! / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- है क्षणिक तुम्हारा भी यौवन ! / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- तेरी निष्ठुरता का अनुभव कर / विजयदान देथा 'बिज्जी'
- आज कितनी लाल ऊषा ! / विजयदान देथा 'बिज्जी'