भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बाबू महेश नारायण
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:11, 21 जून 2017 का अवतरण
बाबू महेश नारायण
जन्म | 1858 |
---|---|
निधन | 01 अगस्त 1907 |
जन्म स्थान | पटना, बिहार, भारत |
कुछ प्रमुख कृतियाँ | |
स्वप्न (लम्बी कविता) | |
विविध | |
'स्वप्न' शीर्षक कविता खड़ी बोली हिन्दी में रचित पहली लम्बी कविता है, जिसे सबसे पहले पटना के हिन्दी साप्ताहिक पत्र 'बिहार बन्धु' ने 13 अक्तूबर 1881 से 15 दिसम्बर 1881 तक धारावाहिक प्रकाशित किया था। हिन्दी में मुक्त छंद का प्रयोग सबसे पहले इसी कविता में हुआ। बाबू महेश नारायण पटना के निवासी थे। | |
जीवन परिचय | |
बाबू महेश नारायण / परिचय |
स्वप्न (लम्बी कविता)
- थी अन्धेरी रात, और सुनसान था / बाबू महेश नारायण
- पहाड़ी ऊँची एक दक्षिण दिशा में / बाबू महेश नारायण
- और एक झरना बहुत शफ़्फ़ाफ़ था / बाबू महेश नारायण
- ठनके की ठनक से / बाबू महेश नारायण
- वह राक्षसी उजाला / बाबू महेश नारायण
- रात अन्धेरी में पहाड़ी की डरौनी मूर्ति / बाबू महेश नारायण
- पहाड़ी पै पत्थर के चट्टाँ बड़े / बाबू महेश नारायण
- एक कुंज / बाबू महेश नारायण
- सब्ज़े का बना था शमियाना / बाबू महेश नारायण
- पानी पड़ने लगा वह मूसल धार / बाबू महेश नारायण
- रोने की आवाज़ आती है? कहाँ? वह / बाबू महेश नारायण
- उस कोलाहल में ध्वनि उसकी / बाबू महेश नारायण
- बिजली की चमक में / बाबू महेश नारायण
- मुख मलीन मृग लोचन शुष्क / बाबू महेश नारायण
- कभी मुँह गुस्से से होता लाल / बाबू महेश नारायण
- दिल में उसके थी एक अजब हलचल / बाबू महेश नारायण
- मिलते थे जवाब दिल में उसके / बाबू महेश नारायण]]
- एक ज़ानू उठाए एक गिराए / बाबू महेश नारायण]]
- सीने की धड़क से / बाबू महेश नारायण]]
- थी वह अबला अकेली उस वन में / बाबू महेश नारायण]]
- घन्टों रही बैठी इस तरह वह / बाबू महेश नारायण]]
- क्या है यह अहा हिन्द की ज़मीन / बाबू महेश नारायण]]
- यां तो वे वज़ह लड़ाई नहीं होती होगी? / बाबू महेश नारायण]]
- सच है यह, प-ऐ मैं बकती क्या हूँ? / बाबू महेश नारायण]]
- देर तक यह पड़ी रही यों ही / बाबू महेश नारायण]]
- ज़िन्दा मुर्दा की तरह पड़ी थी / बाबू महेश नारायण]]
- अवश्य नयन स्वप्न ही में थी टेढ़ी / बाबू महेश नारायण]]
- दरख़्तों को फिर वह सुनाने लगी / बाबू महेश नारायण]]
- उस दिन से हुई गले की उसकी मैं हार / बाबू महेश नारायण]]
- रोने लगी कहके यह, वह अबला / बाबू महेश नारायण]]
- फिर कहने लगी सुनो दरख़्तो! / बाबू महेश नारायण]]
- दिनों तीन चार पाई पड़ी / बाबू महेश नारायण]]