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+ | * [[सूट-बूट को नायक झुग्गियाँ समझती हैं / 'सज्जन' धर्मेन्द्र]] | ||
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+ | * [[हों ज़ुल्म बेहिसाब तो लोहा उठाइये / 'सज्जन' धर्मेन्द्र]] | ||
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+ | * [[देख तेरे संसार की हालत सब्र छूटने लगता है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र]] | ||
+ | * [[ये झूठ है अल्लाह ने इंसान बनाया / 'सज्जन' धर्मेन्द्र]] | ||
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+ | * [[अमीरी बेवफ़ा मौका मिले तो छोड़ जाती है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र]] | ||
+ | * [[रक्षक स्वयं हो चोर तो लोहा उठाइए / 'सज्जन' धर्मेन्द्र]] | ||
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+ | * [[बरसात प्यार की हो सारा जहाँ सजल हो / 'सज्जन' धर्मेन्द्र]] | ||
+ | * [[था हरा और भरा साँवला कोयला / 'सज्जन' धर्मेन्द्र]] | ||
+ | * [[जहाँ जीने की आस रहती है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र]] | ||
+ | * [[तेज़ दिमाग़ों को रोबोट बनाते हैं हम / 'सज्जन' धर्मेन्द्र]] | ||
+ | * [[धूप से लड़ते हुए यदि मर कभी जाता है वो / 'सज्जन' धर्मेन्द्र]] | ||
+ | * [[क्या-क्या न करे देखिए पूँजी मेरे आगे / 'सज्जन' धर्मेन्द्र]] | ||
+ | * [[दर्द-ए-मज़्लूम जिसने समझा है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र]] | ||
+ | * [[बिखर जाएँ चूमें तुम्हारे क़दम / 'सज्जन' धर्मेन्द्र]] | ||
+ | * [[दिल के ज़ख़्मों को चलो ऐसे सँभाला जाए / 'सज्जन' धर्मेन्द्र]] | ||
+ | * [[आदमी की ज़िन्दगी है दफ़्तरों के हाथ में / 'सज्जन' धर्मेन्द्र]] | ||
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* [[महीनों तक तुम्हारे प्यार में इसको पकाया है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र]] | * [[महीनों तक तुम्हारे प्यार में इसको पकाया है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र]] |
21:31, 4 अप्रैल 2018 का अवतरण
पूँजी और सत्ता के ख़िलाफ़
रचनाकार | 'सज्जन' धर्मेन्द्र |
---|---|
प्रकाशक | अंजुमन प्रकाशन, 942 आर्य कन्या चौराहा, मुट्ठीगंज, इलाहाबाद-211003, उत्तर प्रदेश, भारत |
वर्ष | 2017 |
भाषा | हिन्दी |
विषय | ग़ज़ल संग्रह |
विधा | ग़ज़ल |
पृष्ठ | 127 |
ISBN | 978-93-86027-71-9 |
विविध |
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पहला भाग : 34 ग़ज़लें
- सिर्फ़ महलों को बचाती इस व्यवस्था के ख़िलाफ़ / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- इक दिन बिकने लग जाएँगे बादल-वादल सब / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- कहीं भी आसमाँ पे मील का पत्थर नहीं होता / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- जब-जब तुम्हारे पाँव ने रस्ता बदल दिया / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- ख़ुदा के साथ यहाँ राम हमनिवाला है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- सूट-बूट को नायक झुग्गियाँ समझती हैं / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- जो कह न सके सच वो महज़ नाम का शाइर / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- रोटी की रेडियस, जो तिहाई हुई, तो है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- हों ज़ुल्म बेहिसाब तो लोहा उठाइये / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- अपनी ताक़त के बलबूते हाथी ज़िन्दा है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- हो ख़ुशी या ग़म या मातम, जो भी है यहीं अभी है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- देख तेरे संसार की हालत सब्र छूटने लगता है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- ये झूठ है अल्लाह ने इंसान बनाया / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- अच्छी बात वही जिसको मर्ज़ी अपनाती है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- वक़्त आ गया दुःस्वप्नों के सच होने का / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- जगत में पाप जो पर्वत समान करते हैं / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- पुल के ऊपर से जाते जो गहराई से घबराते हैं / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- जब धरती पर रावण राजा बनकर आता है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- जाल सहरा पे डाले गये / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- प्रबंधन का अब उसको, सलीक़ा हो गया है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- जैसे मछली की हड्डी खाने वाले को काँटा है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- अमीरी बेवफ़ा मौका मिले तो छोड़ जाती है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- रक्षक स्वयं हो चोर तो लोहा उठाइए / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- मैं तो नेता हूँ जो मिल जाए जिधर, खा जाऊँ / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- बरसात प्यार की हो सारा जहाँ सजल हो / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- था हरा और भरा साँवला कोयला / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- जहाँ जीने की आस रहती है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- तेज़ दिमाग़ों को रोबोट बनाते हैं हम / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- धूप से लड़ते हुए यदि मर कभी जाता है वो / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- क्या-क्या न करे देखिए पूँजी मेरे आगे / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- दर्द-ए-मज़्लूम जिसने समझा है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- बिखर जाएँ चूमें तुम्हारे क़दम / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- दिल के ज़ख़्मों को चलो ऐसे सँभाला जाए / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- आदमी की ज़िन्दगी है दफ़्तरों के हाथ में / 'सज्जन' धर्मेन्द्र