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21:35, 14 जुलाई 2009 का अवतरण
गोविन्द कुमार सक्सैना
जन्म | 7 फरवरी 1957 |
---|---|
उपनाम | गोविन्द गुलशन |
जन्म स्थान | अनूपशहर |
कुछ प्रमुख कृतियाँ | |
जलता रहा चराग़ ( पूर्व प्रकाशित ग़ज़ल संग्रह),
हवा के टुकड़े, फूल शबनम के ( प्रकाश्य - ग़ज़ल-संग्रह) | |
विविध | |
सारस्वत सम्मान, अग्निवेश सम्मान | |
जीवन परिचय | |
गोविन्द गुलशन / परिचय |
<sort order="asc" class="ul">
- कर लिए मैंने मुहब्बत में अना के टुकड़े / गोविन्द गुलशन
- हमारे चाहने वाले बहुत हैं / गोविन्द गुलशन
- वहाँ चराग़ यहाँ रौशनी का साया है / गोविन्द गुलशन
- लफ़्ज़ अगर कुछ ज़हरीले हो जाते हैं / गोविन्द गुलशन
- हमारे जैसा बुरा उसका हाल था ही नहीं / गोविन्द गुलशन
- रेगिस्तानी आँखों में भी हैं तस्वीरें पानी की / गोविन्द गुलशन
- गुज़ारे के लिए एक आशियाना कम नहीं होता / गोविन्द गुलशन
- मंज़र क्या पसमंज़र मेरे सामने है / गोविन्द गुलशन
- वो तो क्या-क्या सितम नहीं करते / गोविन्द गुलशन
- काश! अपना भी कोई चाहने वाला हो जाए / गोविन्द गुलशन
- उम्र भर जिस आईने की जुस्तजू करते रहे / गोविन्द गुलशन
- किसी के पास अब दिल है नहीं क्या / गोविन्द गुलशन
- तुमने कितनी क़समें खाईं याद करो / गोविन्द गुलशन
- इक परिन्दा आज मेरी छत पे मंडलाया तो है / गोविन्द गुलशन
- हमको देखो ज़रा क़रीने से / गोविन्द गुलशन
- हमने कितने ख़्वाब सजाए याद नहीं / गोविन्द गुलशन
- राहे-उल्फ़त में मुकामात पुराने आए / गोविन्द गुलशन
- आँखें जब ख़ामोशी गाने लगती हैं / गोविन्द गुलशन
- क़ीमती हो न हो सौग़ात से डर लगता है / गोविन्द गुलशन
- पानी का एक कारवाँ घर-घर में आ गया / गोविन्द गुलशन
- होता रहा जब राख मेरा घर मेरे आगे / गोविन्द गुलशन
- हमने जाना मगर क़रार के बाद / गोविन्द गुलशन
- आवाज़ सुनी मेरी न रूदाद किसी ने / गोविन्द गुलशन
- आँखों वाले धोका खाने वाले हैं / गोविन्द गुलशन
- मिलने-जुलने की शुरुआत कहाँ से होती / गोविन्द गुलशन
- जहाँ भी आबो-दाना हो गया है / गोविन्द गुलशन
- ख़ुशबुओं की तरह जो बिखर जाएगा / गोविन्द गुलशन
- रौशनी की महक जिन चराग़ों में है / गोविन्द गुलशन
- उन्हें अब ज़ख़्म सीना आ गया है / गोविन्द गुलशन
- कौन अपना है ये चेहरों से नहीं जानते हैं / गोविन्द गुलशन
- जो ख़त लिखे हुए थे, किताबों में रह गए / गोविन्द गुलशन
- दिल को सुकून दीदा-ए-तर ने नहीं दिया /गोविन्द गुलशन
- बहुत ख़फ़ा हैं वो आज हमसे हमें बस इतना जता रहे हैं / गोविन्द गुलशन