मिर्ज़ा मुहम्मद रफ़ी सौदा
जन्म | 1713 |
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निधन | 1781 (लखनऊ) |
उपनाम | सौदा |
जन्म स्थान | देहली |
कुछ प्रमुख कृतियाँ | |
फ़ारसी और उर्दू में एक दीवान, एक तज़्करा | |
विविध | |
मलकुश्शुउरा का ख़िताब | |
जीवन परिचय | |
मिर्ज़ा रफ़ी 'सौदा' / परिचय |
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- आशिक़ तो नामुराद हैं पर इस क़दर कि हम / सौदा
- इस क़दर साद-ओ-पुरकार कहीं देखा है / सौदा
- नावक तिरे ने सैद न छोड़ा ज़माने में / सौदा
- खैंच शमशीर, चाव दिल के निकाल / सौदा
- ख़त आ चुका, मुझसे है वही ढंग अब तलक / सौदा
- 'सौदा' गिरफ़्ता-दिल को न लाओ सुख़न के बीच / सौदा
- गिला लिखूँ मैं अगर तेरी बेवफ़ाई का / सौदा
- जी तक तो लेके दूँ कि तू हो कारगर कहीं / सौदा
- अक़्ल उस नादाँ में क्या जो तेरा दीवाना नहीं / सौदा
- किसी का दर्दे-दिल प्यारे तुम्हारा नाज़ क्या समझे / सौदा
- हर मिज़ा पर तेरे लख़्ते-दिल है इस रंजूर का / सौदा
- मक़दूर नहीं उस तज्जली के बयाँ का / सौदा
- टूटे तिरी निगह से अगर दिल हुबाब का / सौदा
- पाया वो हम इस बाग़ में जो काम न आया / सौदा
- याँ न ज़र्रा ही झमकता है फ़क़त गर्द के साथ / सौदा
- मुलायम हो गयीं दिल पर बिरह की साइतें कड़ियाँ / सौदा
- याँ सूरतो-सीरत से बुत कौन-सा ख़ाली है / सौदा
- जो गुज़री मुझपे मत उससे कहो हुआ सो हुआ / सौदा
- वो हम नहीं जो करें सैरे-बोस्ताँ तनहा / सौदा
- जगह थी दिल को तिरे, दिल में इक ज़माना था / सौदा
- बुलबुल ने जिसे जाके गुलिस्तान में देखा / सौदा
- तुझ बिन बहुत ही कटती है औक़ात बेतरह / सौदा
- हर संग में शरार है तेरे ज़हूर का / सौदा
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