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अर्चना / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
Kavita Kosh से
अर्चना
रचनाकार | सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला" |
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प्रकाशक | कला मंदिर, दारागंज, इलाहाबाद |
वर्ष | अगस्त २६, १९५० |
भाषा | हिन्दी |
विषय | कविताएँ |
विधा | गीत |
पृष्ठ | १२१ |
ISBN | |
विविध |
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
- भव अर्णव की तरणी तरुणा / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
- जन की, मन की, धन की हो तुम / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
- भज, भिखारी, विश्व-भरणा / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
- समझा जीवन की विजया हो / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
- पंक्ति पंक्ति में मान तुम्हारा / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
- दुरित दूर करो नाथ / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
- भव-सागर से पार करो हे! / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
- रमण मन के मान के तन / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
- बन जाय भले शुक की डक से / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
- लगी लगन, जगे नयन / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
- शिविर की शर्वरी / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
- आशा आशा मरे / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
- छहि न छोड़ी / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
- साधो मग डगमग पग / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
- सोई अखियाँ / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
- तिमिर दारण मिहिर दरसो / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
- तुम जो सुथरे पथ उतरे हो / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
- जिनकी नहीं मानी कान / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
- दीप जलता रहा / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
- आँख लगाई / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
- दो सदा सत्संग मुझको / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
- चंग चढी थी हमारी, / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
- नयन नहाये / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
- किशोरी, रंग भरी किस अंग भरी हो / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
- सरल तार नवल गान / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
- पार संसार के / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
- प्रथम बन्दूँ पद विनिर्मल / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
- पैर उठे, हवा चली। / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
- और न अब भरमाओ / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
- दे न गये बचने की साँस / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
- अलि की गूँज चली द्रुम कुँजों / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
- आज प्रथम गाई पिक पंचम / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
- फूटे हैं आमों में बौर, / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
- खेलूंगी कभी न होली, / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
- प्यास लगी है, बुझाओ / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
- केशर की, कलि की पिचकारी / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
- बांधो न नाव इस ठांव बन्धु! / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
- गिरते जीवन को उठा दिया, / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
- धीरे धीरे हँस कर आयी / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
- निविड़-विपिन, पथ अराल / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
- सुरतरु वर शाखा / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
- वेदना बनी, मेरी अवनी। / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
- आंख बचाते हो तो क्या आते हो / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
- हरि का मन से गुणगान करो / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
- खुल कर गिरती है / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
- तन, मन, धन वारे हैं / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
- वे कह जो गये कल आने को / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
- मानव का मन शान्त करो हे / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
- तुम ही हुए रखवाल / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
- नव तन कनक-किरण फूटी है / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
- / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"