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| + | * [[मुरझा के काली झील में गिरते हुए भी देख / शकेब जलाली]]  | ||
| + | * [[लौ दे उठे वो हर्फ़-ए-तलब सोच रहे हैं / शकेब जलाली]]   | ||
| + | * [[वहाँ की रोशनियों ने भी ज़ुल्म ढाए बहुत / शकेब जलाली]]    | ||
| + | * [[वही झुकी हुई बेलें वही दरीचा था / शकेब जलाली]]  | ||
* [[हमजिंस अगर मिले न कोई आसमान पर / शकेब जलाली]]     | * [[हमजिंस अगर मिले न कोई आसमान पर / शकेब जलाली]]     | ||
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| + | * [[समझ सको तो ये तिश्नालबी समन्दर है / शकेब जलाली]]  | ||
| + | * [[कहाँ रुकेंगे मुसाफ़िर नए ज़मानों के / शकेब जलाली]]  | ||
| + | * [[पर्दा-ए-शब की ओट में ज़ोहरा-जमाल खो गए / शकेब जलाली]]  | ||
| + | * [[जलते सहराओं में फैला होता / शकेब जलाली]]  | ||
| + | * [[कुछ तो आता मेरी बातों का जवाब / शकेब जलाली]]  | ||
| + | * [[जो भी तालिब है यक ज़र्रा उसे सहरा दे / शकेब जलाली]]  | ||
18:04, 22 अप्रैल 2019 के समय का अवतरण
सैयद हसन रिज़वी

| जन्म | 01 अक्तूबर 1934 | 
|---|---|
| निधन | 12 नवम्बर 1966 | 
| उपनाम | शकेब जलाली | 
| जन्म स्थान | कस्बा जलाली, अलीगढ़, उत्तरप्रदेश, भारत। | 
| कुछ प्रमुख कृतियाँ | |
| रौशनी ऐ रौशनी, कुलियाते शकेब जलाली | |
| विविध | |
| जीवन परिचय | |
| शकेब जलाली / परिचय | |
प्रतिनिधि ग़ज़लें
- आकर गिरा था कोई परिंदा लहू में तर / शकेब जलाली
 - आके पत्थर तो मेरे सहन में दो-चार गिरे / शकेब जलाली
 - उतर के नाव से भी कब सफ़र तमाम हुआ / शकेब जलाली
 - उतरीं अजीब रोशनियाँ रात ख़्वाब में / शकेब जलाली
 - खामोशी बोल उठे, हर नज़र पैगाम हो जाये / शकेब जलाली
 - गले मिला न कभी चाँद बख्त ऐसा था / शकेब जलाली
 - जहाँ तलक भी ये सेहरा दिखाई देता है / शकेब जलाली
 - जाती है धूप उजले परों को समेट के / शकेब जलाली
 - तूने कहा न था कि मैं कश्ती पे बोझ हूँ / शकेब जलाली
 - पास रह के भी बोहत दूर हैं दोस्त / शकेब जलाली
 - फिर सुन रहा हूँ गुज़रे ज़माने की चाप को / शकेब जलाली
 - मुरझा के काली झील में गिरते हुए भी देख / शकेब जलाली
 - लौ दे उठे वो हर्फ़-ए-तलब सोच रहे हैं / शकेब जलाली
 - वहाँ की रोशनियों ने भी ज़ुल्म ढाए बहुत / शकेब जलाली
 - वही झुकी हुई बेलें वही दरीचा था / शकेब जलाली
 - हमजिंस अगर मिले न कोई आसमान पर / शकेब जलाली
 - कू-ब-कू दाम बिछे हों किकड़कती हो कमाँ / शकेब जलाली
 - वो सामने था फिर भी कहाँ सामना हुआ / शकेब जलाली
 - समझ सको तो ये तिश्नालबी समन्दर है / शकेब जलाली
 - कहाँ रुकेंगे मुसाफ़िर नए ज़मानों के / शकेब जलाली
 - पर्दा-ए-शब की ओट में ज़ोहरा-जमाल खो गए / शकेब जलाली
 - जलते सहराओं में फैला होता / शकेब जलाली
 - कुछ तो आता मेरी बातों का जवाब / शकेब जलाली
 - जो भी तालिब है यक ज़र्रा उसे सहरा दे / शकेब जलाली
 
	
	