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पद्माकर
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पद्माकर भट्ट
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जन्म | 1753 |
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निधन | 1833 |
उपनाम | पद्माकर |
जन्म स्थान | सागर, मध्य प्रदेश |
कुछ प्रमुख कृतियाँ | |
जगद्विनोद, प्रबोध चन्द्रोदय, हिम्मतबहादुर-विरुदावली | |
विविध | |
जीवन परिचय | |
पद्माकर / परिचय |
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- दाहन ते दूनी, तेज तिगुनी त्रिसूल हूं ते / पद्माकर
- दोहे / पद्माकर
- अँचल के ऎँचे चल करती दॄगँचल को / पद्माकर
- ओप भरी कंचुकी उरोजन पर ताने कसी / पद्माकर
- चाह भरो चंचल हमारो चित्त नौल बधू / पद्माकर
- कै रति रँग थकी थिर ह्वै / पद्माकर
- चहचही चुभकैँ चुभी हैँ चौँक चुँबन की / पद्माकर
- आरस सोँ रस सोँ पदमाकर / पद्माकर
- अधखुली कँचुकी उरोज अध आधे खुले / पद्माकर
- आरस सोँ आरत सँभारत न सीस पट / पद्माकर
- जाहिरै जागति सी जमुना जब बूडै बहै / पद्माकर
- सोभित स्वकीया गनगुन गिनती मे तहाँ / पद्माकर
- खाये पान बीरी सी बिलोचन विराजैँ आज / पद्माकर
- सुँदर सुरँग अँग शोभित अनँग रँग / पद्माकर
- सौ दिन को मारग तहाँ की बिदा माँगी पिया / पद्माकर
- ए अलि हमेँ तो बात गात की न जानि परै / पद्माकर
- जग जीवन को फल जानि परयो ,धनि नैनन को ठहरैयत हैँ / पद्माकर
- घर ना सुहात ना सुहात बन बाहिर हू / पद्माकर
- एकै सँग हाल नँदलाल औ गुलाल दोऊ / पद्माकर
- आजु दिन कान्ह आगमन के बधाए सुनि / पद्माकर
- लै पटपीत भले पहिरे पहिराय पियै चुनि चूनरि खासी / पद्माकर
- दूरि ही ते देखति दसा मैँ वा वियोगिनि की / पद्माकर
- कबहूं फिर पांव न देहौं लला, भजि जैहौं तहां जहां सूधी सहौ / पद्माकर
- ये नन्दगाँव ते आये इहां उत आई सुता वह कौनहू ग्वाल की / पद्माकर
- सोसनी दुकूलनि दुराये रूप रोसनी है / पद्माकर
- घूंघट की धूम के सुझूम के जवाहिर के / पद्माकर
- गँजन सुगुँज लग्यो तैसो पौन पुँज लग्यो / पद्माकर
- आली हौँ गई ही आज भूलि बरसाने कहूँ / पद्माकर
- बोलति न काहे ! एरी, पूछे बिन बोलोँ कहा / पद्माकर
- चपला चमाकैं चहुँ ओरन ते चाह भरी / पद्माकर
- फागु के भीर अभीरन तें / पद्माकर
- आई खेलि होरी, कहूँ नवल किसोरी भोरी / पद्माकर
- कूलन में केलि में कछारन में कुंजन में(ऋतु वर्णन) / पद्माकर
- कूरम पै कोल-कोल (गंगा-स्तुति) / पद्माकर
- मल्लिक न मंजुल मलिंद मतवारे मिले(ऋतु वर्णन) / पद्माकर
- तालन पै ताल पै तमालन पै मालन पै(ऋतु वर्णन) / पद्माकर
- औरे भांति कुंजन में गुंजरत भौर भीर(ऋतु वर्णन) / पद्माकर
- गुलगुली गिलमैं गलीचा है गुनीजन हैं(ऋतु वर्णन) / पद्माकर
- सम्पति सुमेर की कुबेर की जो पावै ताहि / पद्माकर
- ओप भरी कंचुकी उरोजन पर / पद्माकर
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