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ज़मीन से उठती आवाज़ / बल्ली सिंह चीमा
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ज़मीन से उठती आवाज़
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रचनाकार | बल्ली सिंह चीमा |
---|---|
प्रकाशक | नीलाभ प्रकाशन, इलाहाबाद |
वर्ष | 1990, प्रथम संस्करण । |
भाषा | हिन्दी |
विषय | ग़ज़ल |
विधा | हिन्दी ग़ज़ल |
पृष्ठ | 92 |
ISBN | |
विविध |
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
पहला खण्ड
- भूमिका (अनिल सिन्हा) / बल्ली सिंह चीमा
- ले मशालें चल पड़े हैं लोग मेरे गाँव के / बल्ली सिंह चीमा
- रोटी माँग रहे लोगों से / बल्ली सिंह चीमा
- करो न शोर परिन्दा है डर न जाए कहीं / बल्ली सिंह चीमा
- सुन कर टी० वी० पर ख़बर मौसम से डर जाते हैं लोग / बल्ली सिंह चीमा
- बस भी करिए अब मेरे ईमान से मत खेलिए / बल्ली सिंह चीमा
- प्यासी रह गईं फ़सलें शरारत कर गया मौसम / बल्ली सिंह चीमा
- तुम्हारी कहानी तुम्हीं को सुनाने / बल्ली सिंह चीमा
- ज़िन्दगी को अपनी उँगली पर नचाकर देखिए / बल्ली सिंह चीमा
- सवेरा उनके घर फैला हुआ है / बल्ली सिंह चीमा
- इस ज़मीं से दूर कितना आस्माँ है / बल्ली सिंह चीमा
- दिल तो एक टूटा-सा मन्दिर हो गया / बल्ली सिंह चीमा
- अब तो फिर कहने लगी हैं राजनीतिक आँधियाँ / बल्ली सिंह चीमा
- इस अँधेरी रात को जड़ से मिटाना है हमें / बल्ली सिंह चीमा
- लड़खड़ा कर सँभल रही होगी / बल्ली सिंह चीमा
- ज़िन्दगी मेरी बता ये आज तू खुल कर मुझे / बल्ली सिंह चीमा
- क्या है इक्कीसवीं सदी आ कर बताएँ गाँव में / बल्ली सिंह चीमा
- राजनीति हिनहिनाई शहर में / बल्ली सिंह चीमा
- हर शख़्स के मासिक वेतन पर / बल्ली सिंह चीमा
- बात करते थे लंका जलाने की जो / बल्ली सिंह चीमा
- झोंपड़ों में रात भर करवट बदलती जो सदा / बल्ली सिंह चीमा
- हर गली कूचे में बजती सीटियाँ सुन लीजिए / बल्ली सिंह चीमा
- हादसे इस गाँव भी हमको लड़ाने आ गए / बल्ली सिंह चीमा
- जनता के हौंसलों की सड़कों पर धार देख / बल्ली सिंह चीमा
- कोठियों के बढ़ गए आकार हैं / बल्ली सिंह चीमा
- ख़बरों में रेडियो ने गर कुछ कहा नहीं / बल्ली सिंह चीमा
- अब घर के उजड़ने का कोई डर नहीं रहा / बल्ली सिंह चीमा
- लोग जिनके सताए हुए हैं / बल्ली सिंह चीमा
- कम नहीं होता अँधेरा रात का / बल्ली सिंह चीमा
- उचक्कों के डर से था लाचार, यारो ! / बल्ली सिंह चीमा
- पसीना चुए हैं ये मंज़र तो देखो / बल्ली सिंह चीमा
- ज़ख़्मों पर आज मरहम लगाने की बात कर / बल्ली सिंह चीमा
- शहर तो है ख़ामोश बराबर बोल रहीं सड़कें / बल्ली सिंह चीमा
- हर तरफ़ काला कानून दिखाई देगा / बल्ली सिंह चीमा
- पास बैठो प्यार जतलाओ ज़रा / बल्ली सिंह चीमा
- क्या हुआ जो बावफ़ा जल्लाद तेरे साथ हैं / बल्ली सिंह चीमा
- अब नज़र यारो नज़ारों तक पहुँचती है / बल्ली सिंह चीमा
- कौन चाहेगा भला जलते हुए घर देखना / बल्ली सिंह चीमा
- माँस खाते ख़ून पीते तीन बन्दर देख ले / बल्ली सिंह चीमा
- हर सुबह उठ, मुल्क के अख़बार भी देखा करो / बल्ली सिंह चीमा
- शुभ लड़ाई के सही आग़ाज़ की बातें करें / बल्ली सिंह चीमा
- / बल्ली सिंह चीमा
- / बल्ली सिंह चीमा
- / बल्ली सिंह चीमा
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