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आस / बशीर बद्र
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आस
रचनाकार | बशीर बद्र |
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प्रकाशक | वाणी प्रकाशन |
वर्ष | 2000 |
भाषा | हिन्दी |
विषय | |
विधा | ग़ज़ल |
पृष्ठ | 114 |
ISBN | |
विविध | साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित |
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
- यूँ ही बेसबब न फिरा करो / बशीर बद्र
- कोई फूल धूप की पत्तियों में / बशीर बद्र
- आँखों में रहा दिल में उतर कर नहीं देखा / बशीर बद्र
- हँसी मासूम सी बच्चों की कापी में / बशीर बद्र
- नारियल के दरख़्तों की पागल हवा / बशीर बद्र
- सँवार नोक पलक अबरूओं में ख़म कर दे / बशीर बद्र
- कोई लश्कर है के बढ़ते हुए ग़म आते हैं / बशीर बद्र
- उनको आईना बनाया / बशीर बद्र
- सुनसान रास्तों से सवारी न आएगी / बशीर बद्र
- इस तरह साथ निभना है दुश्वार सा / बशीर बद्र
- पत्थर के जिगर वालों ग़म में वो रवानी है / बशीर बद्र
- हर बात में महके हुए जज़्बात की ख़ुश्बू / बशीर बद्र
- वो चांदनी का बदन ख़ुशबुओं का साया है / बशीर बद्र
- सौ ख़ुलूस बातों में सब करम ख़्यालों में / बशीर बद्र
- कभी यूँ भी आ मेरी आँख में / बशीर बद्र
- कहाँ आँसुओं की ये सौगात होगी / बशीर बद्र
- वो ग़ज़ल वालों को असलूब समझते होंगे / बशीर बद्र
- सूरज चंदा जैसी जोड़ी हम दोनों / बशीर बद्र
- मैक़दा रात ग़म का घर निकला / बशीर बद्र
- हमारा दिल सवेरे का सुनहरा जाम हो जाए / बशीर बद्र
- मुसाफ़िर के रस्ते बदलते रहे / बशीर बद्र
- दिल पे छाया रहा उमस की तरह / बशीर बद्र
- सरे राह कुछ भी कहा नहीं कभी उसके घर में गया नहीं / बशीर बद्र
- ये चिराग बेनज़र है ये सितारा बे ज़ुबाँ है / बशीर बद्र
- सियाहियों के बने हर्फ़ हर्फ़ धोते हैं / बशीर बद्र
- सब्ज़ पत्ते धूप की ये आग जब पी जाएँगे / बशीर बद्र
- ख़ुश्बू को तितलियों के परों में छिपाऊंगा / बशीर बद्र
- उड़ती किरणों की रफ़्तार से तेज़ तर / बशीर बद्र
- कच्चे फल कोट की जेब में ठूंस कर / बशीर बद्र
- चल मुसाफ़िर बत्तियां जलने लगीं / बशीर बद्र
- लहू पुकारता है रोशनी के पैकर दे / बशीर बद्र
- अपनी जगह जामे है कहने को कह रहे थे / बशीर बद्र
- हवा में ढूँढ रही है कोई सदा मुझको / बशीर बद्र
- दहकते नेज़ों से ये रात हमला कर देगी / बशीर बद्र
- चाँद हाथ में भर कर जुगनुओं के सर काटो / बशीर बद्र
- ज़मीं से आँच ज़मीं तोड़कर निकलती है / बशीर बद्र
- सब आने वाले बहला कर चले गए / बशीर बद्र
- पत्थर जैसे मछली के कूल्हे चमके / बशीर बद्र
- याद अब ख़ुद को आ रहे हैं हम / बशीर बद्र
- धूप निकली है मुद्दतों के बाद / बशीर बद्र
- हमसे मुसाफ़िरों का सफ़र इंतज़ार है / बशीर बद्र
- इस ज़ख्मी प्यासे को इस तरह पिला देना / बशीर बद्र
- हमारा दर्द हमारी दुखी नवा से लड़े / बशीर बद्र
- अपने पहाड़ ग़ैर के गुलज़ार हो गए / बशीर बद्र
- हम को भी अपनी मौत का पूरा यक़ीन है / बशीर बद्र
- सुबह होती है छुपा लो हमको / बशीर बद्र
- ख़ुश रहे या बहुत उदास रहे / बशीर बद्र
- फूल सा कुछ कलाम और सही / बशीर बद्र
- आया ही नहीं हम को आहिस्ता गुज़र जाना / बशीर बद्र
- हर रोज़ हमें मिलना हर रोज़ बिछड़ जाना / बशीर बद्र
- जो इधर से जा रहा है वही मुझ पर मेहरबां है / बशीर बद्र