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+ | * [[क्यूँ है ख़ामोश समंदर तुम्हें मा’लूम है क्या / गोविन्द गुलशन]] | ||
+ | * [[जीने की तमन्ना लिए मर जाऊँ तो क्या हो / गोविन्द गु्लशन ]] | ||
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00:29, 16 सितम्बर 2016 के समय का अवतरण
गोविन्द गुलशन
www.kavitakosh.org/govindgulshan
www.kavitakosh.org/govindgulshan
जन्म | 07 फ़रवरी 1957 |
---|---|
उपनाम | गोविन्द गुलशन |
जन्म स्थान | अनूपशहर, बुलंदशहर, उत्तर प्रदेश |
कुछ प्रमुख कृतियाँ | |
जलता रहा चराग़ | |
विविध | |
मूल नाम गोविन्द कुमार सक्सैना। सारस्वत सम्मान, अग्निवेश सम्मान | |
जीवन परिचय | |
गोविन्द गुलशन / परिचय | |
कविता कोश पता | |
www.kavitakosh.org/govindgulshan |
कुछ प्रतिनिधि रचनाएँ
- कर लिए मैंने मुहब्बत में अना के टुकड़े / गोविन्द गुलशन
- हमारे चाहने वाले बहुत हैं / गोविन्द गुलशन
- वहाँ चराग़ यहाँ रौशनी का साया है / गोविन्द गुलशन
- लफ़्ज़ अगर कुछ ज़हरीले हो जाते हैं / गोविन्द गुलशन
- हमारे जैसा बुरा उसका हाल था ही नहीं / गोविन्द गुलशन
- रेगिस्तानी आँखों में भी हैं तस्वीरें पानी की / गोविन्द गुलशन
- गुज़ारे के लिए एक आशियाना कम नहीं होता / गोविन्द गुलशन
- मंज़र क्या पसमंज़र मेरे सामने है / गोविन्द गुलशन
- वो तो क्या-क्या सितम नहीं करते / गोविन्द गुलशन
- काश! अपना भी कोई चाहने वाला हो जाए / गोविन्द गुलशन
- उम्र भर जिस आईने की जुस्तजू करते रहे / गोविन्द गुलशन
- किसी के पास अब दिल है नहीं क्या / गोविन्द गुलशन
- तुमने कितनी क़समें खाईं याद करो / गोविन्द गुलशन
- इक परिन्दा आज मेरी छत पे मंडलाया तो है / गोविन्द गुलशन
- हमको देखो ज़रा क़रीने से / गोविन्द गुलशन
- हमने कितने ख़्वाब सजाए याद नहीं / गोविन्द गुलशन
- राहे-उल्फ़त में मुकामात पुराने आए / गोविन्द गुलशन
- आँखें जब ख़ामोशी गाने लगती हैं / गोविन्द गुलशन
- क़ीमती हो न हो सौग़ात से डर लगता है / गोविन्द गुलशन
- पानी का एक कारवाँ घर-घर में आ गया / गोविन्द गुलशन
- होता रहा जब राख मेरा घर मेरे आगे / गोविन्द गुलशन
- हमने जाना मगर क़रार के बाद / गोविन्द गुलशन
- आवाज़ सुनी मेरी न रूदाद किसी ने / गोविन्द गुलशन
- आँखों वाले धोका खाने वाले हैं / गोविन्द गुलशन
- मिलने-जुलने की शुरुआत कहाँ से होती / गोविन्द गुलशन
- जहाँ भी आबो-दाना हो गया है / गोविन्द गुलशन
- ख़ुशबुओं की तरह जो बिखर जाएगा / गोविन्द गुलशन
- रौशनी की महक जिन चराग़ों में है / गोविन्द गुलशन
- उन्हें अब ज़ख़्म सीना आ गया है / गोविन्द गुलशन
- कौन अपना है ये चेहरों से नहीं जानते हैं / गोविन्द गुलशन
- जो ख़त लिखे हुए थे, किताबों में रह गए / गोविन्द गुलशन
- दिल को सुकून दीदा-ए-तर ने नहीं दिया /गोविन्द गुलशन
- बहुत ख़फ़ा हैं वो आज हमसे हमें बस इतना जता रहे हैं / गोविन्द गुलशन
- अब चलो ये भी ख़ता की जाए /गोविन्द गुलशन
- दिल है उसी के पास,हैं साँसें उसी के पास /गोविन्द गुलशन
- मेरे क़रीब जितने अँधेरे थे हट गये / गोविन्द गुलशन
- उसकी आँखों में बस जाऊँ मैं कोई काजल थोड़ी हूँ / गोविन्द गुलशन
- क़रार दे के किया जिसने बेक़रार मुझे / गोविन्द गुलशन
- दिल में ये एक डर है बराबर बना हुआ / गोविन्द गुलशन
- इधर उधर की न बातों में तुम घुमाओ मुझे / गोविन्द गुलशन
- इस लिए रहता नहीं कोई नया डर मुझमें / गोविन्द गुलशन
- क्यूँ है ख़ामोश समंदर तुम्हें मा’लूम है क्या / गोविन्द गुलशन
- जीने की तमन्ना लिए मर जाऊँ तो क्या हो / गोविन्द गु्लशन
- मैं ख़ुद पे एक अजब वार करने वाला था / गोविन्द गुलशन
- कभी जब रंग भरता हूँ तो भरने क्यूँ नहीं देते /गोविन्द गुलशन
- धूप के पेड़ पर कैसे शबनम उगे बस यही सोच कर सब परेशान हैं/गोविन्द गुलशन