फिर कबीर
रचनाकार | मुनव्वर राना |
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प्रकाशक | रूपांकन 31,शंकरगंज
,किला रोड,इन्दौर-452006 |
वर्ष | 2007 |
भाषा | हिन्दी |
विषय | |
विधा | ग़ज़ल |
पृष्ठ | 120 |
ISBN | |
विविध |
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
- माँ / मुनव्वर राना
- बचपन / मुनव्वर राना
- कई घरों को निगलने के बाद आती है / मुनव्वर राना
- मिट्टी में मिला दे कि जुदा हो नहीं सकता / मुनव्वर राना
- जब भी देखा मेरे किरदार पे धब्बा कोई / मुनव्वर राना
- अमीरे-शहर को तलवार करने वाला हूँ / मुनव्वर राना
- कभी ख़ुशी से ख़ुशी की तरफ नहीं देखा / मुनव्वर राना
- समझौतों की भीड़भाड़ में सबसे रिश्ता टूट गया / मुनव्वर राना
- हम कभी जब दर्द के किस्से सुनाने लग गये मुनव्वर राना
- तुझ में सैलाबे-बला थोड़ी जवानी कम है / मुनव्वर राना
- आँखों में कोई ख़्वाब सुनहरा नहीं आता / मुनव्वर राना
- तू कभी देख तो रोते हुए आकर मुझको / मुनव्वर राना
- अगर दौलत से ही सब क़द का अंदाज़ा लगाते हैं / मुनव्वर राना
- कुछ मेरी वफादारी का इनाम दिया जाए / मुनव्वर राना
- न मैं कंघी बनाता हूँ, न मैं चोटी बनाता हूँ/ मुनव्वर राना
- मेरे कमरे में अँधेरा नहीं रहने देता / मुनव्वर राना
- हाँ इजाज़त है अगर कोई कहानी और है / मुनव्वर राना
- मेरी थकन के हवाले बदलती रहती है / मुनव्वर राना
- नाकामियों के बाद भी हिम्मत वही रही / मुनव्वर राना
- जगमगाते हुए शहरों को तबाही देगा / मुनव्वर राना
- हमारा तीर कुछ भी हो निशाने तक पहुँचता है / मुनव्वर राना
- जब कभी धूप की शिद्दत ने सताया मुझको / मुनव्वर राना
- उम्मीद भी किरदार पे पूरी नहीं उतरी / मुनव्वर राना
- इतना रोये थे लिपट कर दरो दीवार से हम / मुनव्वर राना
- हँसते हुए माँ-बाप की गाली नहीं खाते / मुनव्वर राना
- ख़ूबसूरत झील में हँसता कँवल भी चाहिए/ मुनव्वर राना
- किसी भी ग़म के सहारे नहीं गुज़रती है / मुनव्वर राना
- कई घर हो गए बरबाद ख़ुद्दारी बचाने में / मुनव्वर राना
- उड़के यूँ छत से कबूतर मेरे सब जाते हैं / मुनव्वर राना
- मुझको गहराई में मिट्टी की उतर जाना है / मुनव्वर राना
- तुम्हारे जिस्म की ख़ुशबू गुलों से आती है / मुनव्वर राना
- वो मुझे जुर्रते-इज़हार से पहचानता है / मुनव्वर राना
- गौतम की तरह घर से निकलकर नहीं जाते / मुनव्वर राना
- हमारी दोस्ती से दुश्मनी शरमाई रहती है / मुनव्वर राना
- ऐन ख़्वाहिश के मुताबिक सब उसी को मिल गया / मुनव्वर राना
- बस इतनी बात पर उसने हमें बलवाई लिक्खा है / मुनव्वर राना
- क़सम देता है बच्चों की बहाने से बुलाता है / मुनव्वर राना
- धँसती हुई क़ब्रों की तरफ देख लिया था / मुनव्वर राना
- सरक़े का कोई दाग़ जबीं पर नहीं रखता / मुनव्वर राना
- / मुनव्वर राना
- / मुनव्वर राना
- / मुनव्वर राना