कोयले दहकते हैं
रचनाकार | शैलेश ज़ैदी |
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भाषा | हिन्दी |
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विविध |
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
- सच से आँखें मूंदकर चलना तुम्हें अच्छा लगा / शैलेश ज़ैदी
- बचके जीवन के संघर्ष से नाटकों में लगे हैं सभी / शैलेश ज़ैदी
- मेरी यादें असर कर रही हैं / शैलेश ज़ैदी
- साया कैसा धुप भी नापैद हो जाती है अब / शैलेश ज़ैदी
- दिल ने आशाओं के दो बोल सुनाये होंगे / शैलेश ज़ैदी
- उसकी आँखें जो दिल में उतर जायेंगी / शैलेश ज़ैदी
- मैंने ज़बान खोली तो तूफाँ मचल पड़े / शैलेश ज़ैदी
- हम तो बस रौशनी साथ लेकर चले / शैलेश ज़ैदी
- दिल में वफ़ा है आँखों में बेगानगी भी है / शैलेश ज़ैदी
- विकल्प कोई नहीं जिंदगी अधूरी है / शैलेश ज़ैदी
- ज़िन्दगी किराये का मकान बन गयी / शैलेश ज़ैदी
- मैं एक बात कहूँ गर उसे बुरा न लगे / शैलेश ज़ैदी
- प्यार में दर्द ही मिलता है तो ऐसा ही सही / शैलेश ज़ैदी
- पड़ जायें आबले न कहीं नंगे पाँव हो / शैलेश ज़ैदी
- सूरज के पास धूप न पानी नदी के पास / शैलेश ज़ैदी
- टाट के टुकड़ों पे चिपके तितलियों के पर मिले / शैलेश ज़ैदी
- आँसुओं से रात का दामन अगर भीगा तो क्या / शैलेश ज़ैदी
- साज़े-दिल पर कोई नग़्मा ही सुनाते रहिए / शैलेश ज़ैदी
- मैं चाहता हूँ जिन्हें अपनी ज़िन्दगी की तरह / शैलेश ज़ैदी
- पत्थरों से प्यार की बातें किया करता हूँ मैं / शैलेश ज़ैदी
- दो चार पल सही कभी ऐसा दिखायी दे / शैलेश ज़ैदी
- रहते थे सिर फिरे मेरे जैसे यहाँ ज़रूर / शैलेश ज़ैदी
- वो इन्साँ और होंगे राह में जो टूटते होंगे / शैलेश ज़ैदी
- ज़मीं की प्यास ने जब भी नदी को दी है सदा / शैलेश ज़ैदी
- रोशनी फूटेगी निश्चित रूप से / शैलेश ज़ैदी
- वैसे तो घर के लोग बहुत सावधान थे / शैलेश ज़ैदी
- रहते थे सिर फिरे मेरे जैसे यहाँ ज़रूर / शैलेश ज़ैदी