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स्फुट कविताएँ / भारतेंदु हरिश्चंद्र
Kavita Kosh से
स्फुट कविताएँ
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रचनाकार | भारतेंदु हरिश्चंद्र |
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इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
सवैया
- अब और के प्रेम के फंद परे / भारतेंदु हरिश्चंद्र
- हम चाहत हैं तुमको जिउ से / भारतेंदु हरिश्चंद्र
- जा मुख देखन को नितही रुख / भारतेंदु हरिश्चंद्र
- रैन में ज्यौहीं लगी झपकी त्रिजटे / भारतेंदु हरिश्चंद्र
- सदा चार चवाइन के डर सों / भारतेंदु हरिश्चंद्र
- ताजि कै सब काम को तेरे / भारतेंदु हरिश्चंद्र
- आइयो मो घर प्रान पिया / भारतेंदु हरिश्चंद्र
- कोऊ कलंकिनि भाखत है कहि / भारतेंदु हरिश्चंद्र
- मन लागत जाको जबै जिहिसों / भारतेंदु हरिश्चंद्र
- देखत पीठि तिहारी रहैंगे न / भारतेंदु हरिश्चंद्र
- पीवै सदा अधरामृत स्याम को / भारतेंदु हरिश्चंद्र
- लै बदनामी कलंकिनि होइ चवाइन / भारतेंदु हरिश्चंद्र
- लखिकै अपने घर को निज सेवक / भारतेंदु हरिश्चंद्र
- अब प्रीति करी तौ निबाह करौ / भारतेंदु हरिश्चंद्र
- यह काल कराल अहै कलि को / भारतेंदु हरिश्चंद्र
कवित्त
- आजु बृषभानुराय पौरी होरी होय रही / भारतेंदु हरिश्चंद्र
- गोपिन की बात कौं बखानौं कहा नंदलाल / भारतेंदु हरिश्चंद्र
- तेरेई बिरह कान्ह रावरे कला-निधान / भारतेंदु हरिश्चंद्र
- राधा-श्याम सेवैं सदा बृंदाबन वास करैं / भारतेंदु हरिश्चंद्र
- गोपिन बियोग अब सही नहीं जात मोपै / भारतेंदु हरिश्चंद्र
- जदपि उँचाई धीरताई गरुआई आदि / भारतेंदु हरिश्चंद्र
- बात गुरजन की न आछी लरकाई लागै / भारतेंदु हरिश्चंद्र
- जेही बक बार सुनै मोहै सो जन्म भरि / भारतेंदु हरिश्चंद्र
- केलि-भौन बैठी प्यारी सरस सिंगार करै / भारतेंदु हरिश्चंद्र
- वृंदाबन सोभा कछु बरनि न जाय मोपै / भारतेंदु हरिश्चंद्र
- आजु कुंज मंदिर बिराजे पिय प्यारी दोऊ / भारतेंदु हरिश्चंद्र
- रंग-भौन पितम उम्ंग भरि बैठ्यो आज / भारतेंदु हरिश्चंद्र
- आजु लौं न आए जो तो कहा भयो प्यारे याकों / भारतेंदु हरिश्चंद्र
- जोग जग्य जप तप तीरथ तपस्या ब्रत / भारतेंदु हरिश्चंद्र
- साँझ समै साजे सज ग्वाल-बाल साथ लिए / भारतेंदु हरिश्चंद्र
- दासी दरबानन की झिरकी करोर सहीं / भारतेंदु हरिश्चंद्र
- मेष मायावाद सिंह वादी अतुल धर्म / भारतेंदु हरिश्चंद्र
- कुंभ मुच परस दृग-मीन को दरस तजि / भारतेंदु हरिश्चंद्र
- फूलैंगे पलास बन आगि सी लगाई कर / भारतेंदु हरिश्चंद्र
- खेलौ मिलि होरी ढोरौ केसर-कमोरी फैंको / भारतेंदु हरिश्चंद्र
- लोक बेद लाज करि कीजे ना रुखाई एती / भारतेंदु हरिश्चंद्र
- आजु एक ललना जवाहिर खरीदबे को / भारतेंदु हरिश्चंद्र