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मीठी सी चुभन
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रचनाकार | 'अना' क़ासमी |
---|---|
प्रकाशक | अयन प्रकाशन, महरौली, नई दिल्ली-110030 |
वर्ष | 2112 |
भाषा | उर्दू |
विषय | ग़ज़लें |
विधा | ग़ज़ल |
पृष्ठ | |
ISBN | 978-81-7408-570-2 |
विविध |
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
[ग़ज़ल-क्रम]
- उस क़ादरे-मुतलक़ से बग़ावत भी बहुत की / ‘अना’ क़ासमी
- हमारे बस का नहीं है मौला ये रोज़े महशर हिसाब देना / ‘अना’ क़ासमी
- उससे कहना कि कमाई के न चक्कर में रहे / ‘अना’ क़ासमी
- हारे थके परिन्दों से कहती है शाम कुछ / ‘अना’ क़ासमी
- वो अभी पूरा नहीं था हां मगर अच्छा लगा / ‘अना’ क़ासमी
- तेरी इन आंखों के इशारे पागल हैं / ‘अना’ क़ासमी
- अक्सर मिलना ऐसा हुआ बस / ‘अना’ क़ासमी
- कैसा रिश्ता है इस मकान के साथ / ‘अना’ क़ासमी
- फिर खिलखिला उठा किसी नादान की तरह / ‘अना’ क़ासमी
- उसको नम्बर देके मेरी और उलझन बढ़ गई / ‘अना’ क़ासमी
- देखा मुझे तो शर्म से मुस्का के रह गया / ‘अना’ क़ासमी
- उन निगाहों का मोरचा टूटा / ‘अना’ क़ासमी
- बर्थ पर लेट के हम सो गये आसानी से / ‘अना’ क़ासमी
- कम लोग हैं जो सच्ची इबादत में लगे हैं / ‘अना’ क़ासमी
- जो जैसे थे वो वैसे ही सरे महशर निकल आये / ‘अना’ क़ासमी
- कोई नहीं किसी का सुनो इस जहान में / ‘अना’ क़ासमी
- आज की शब अगर इजाज़त हो / ‘अना’ क़ासमी
- है वक़्त कम औ लम्बा सफ़र भागते रहो / ‘अना’ क़ासमी
- गर्मियों की यह तपिश भी चाँदनी हो जायेगी / ‘अना’ क़ासमी
- मसलहत खे़ज़ ये रियाकारी / ‘अना’ क़ासमी
- जो ज़बां से लगती है वो कभी नहीं जाती / ‘अना’ क़ासमी
- पैसा तो खुशामद में, मेरे यार बहुत है / ‘अना’ क़ासमी
- किसी पे ग़्ाुस्सा उठे है किसी पे प्यार उठे / ‘अना’ क़ासमी
- वैसे तो तुम्हें छोड़ के मय पी ही नहीं है / ‘अना’ क़ासमी
- वही अकेला जो घर में कमाने वाला था / ‘अना’ क़ासमी
- सारे जहाँ को अब तो ख़बर है और आप हैं / ‘अना’ क़ासमी
- बचा ही क्या है हयात में अब सुनहरे दिन तो निपट गये हैं / ‘अना’ क़ासमी
- है ख़बर गर्म उनके आने की / ‘अना’ क़ासमी
- अपने पुरखों की शान देखो तो / ‘अना’ क़ासमी
- मुहब्बत कोई भी ज़िद ठानती है / ‘अना’ क़ासमी
- इक तरह कै़द है दुनिया की नज़र में रहना / ‘अना’ क़ासमी
- फूल सब आप रखें, दे दें फ़क़त ख़ार मुझे / ‘अना’ क़ासमी
- छिड़ी थी गुफ़्तगू कल रात बेमहल मेरी / ‘अना’ क़ासमी
- शाम से पहले अगर तुमको चला जाना था / ‘अना’ क़ासमी
- कुछ चलेगा जनाब, कुछ भी नहीं / ‘अना’ क़ासमी
- वो एकता थी कि थोड़ा बहुत तज़ाद भी था / ‘अना’ क़ासमी
- रोज़ चिकचिक में सर खपायें क्या / ‘अना’ क़ासमी
- ये शबे-अख़्तरो-क़मर चुप है / ‘अना’ क़ासमी
- जब ये क़िस्मत मेहरबां हो जायेगी / ‘अना’ क़ासमी
- फ़ज़ा ने हाथ उठाकर यूं ली है अंगड़ाई / ‘अना’ क़ासमी
- आने की इजाज़त है दरबार में ग़ज़लों को / ‘अना’ क़ासमी
- दोस्ती का वो जो हक़ है वो निभाता ही नहीं / ‘अना’ क़ासमी
- बना लो सैकड़ों बातें बना लो / ‘अना’ क़ासमी
- कभी महफ़िल में हम मिलते थे अपने जाम टकरा कर / ‘अना’ क़ासमी
- ना लड़कियों के रक्स इधर हैं न जाम हैं / ‘अना’ क़ासमी
- मुहब्बतों में वही आबो-ताब है कि नहीं / ‘अना’ क़ासमी
- आ गया फ़र्क़ बहुत उसके भी व्यवहारों में / ‘अना’ क़ासमी
- ज़ख़्म को फूल की मानिंद सजाने वाले / ‘अना’ क़ासमी
- तेरी अता है कि तूने मुझे ये धन बख़्शा / ‘अना’ क़ासमी
- फ़न तलाशे है दहकते हुए जज़्बात का रंग / ‘अना’ क़ासमी
- क्या ज़रूरत थी आज़माने की / ‘अना’ क़ासमी
- उल्फ़त का फिर मन है बाबा / ‘अना’ क़ासमी
- मेरा खूने-जिगर होने को है फिर / ‘अना’ क़ासमी
- आप इस छोटे से फ़ितने को जवां होने तो दो / ‘अना’ क़ासमी
- आराइशे-खुर्शीदो-क़मर किसके लिए है / ‘अना’ क़ासमी
- हो जितनी बात फ़क़त उतनी बात बोलो बस / ‘अना’ क़ासमी
- साफ़ कह दो जो भी कहना है बहाना छोड़ दो / ‘अना’ क़ासमी
- मुमकिन कहाँ कि तन्हा कोई फैसला करें / ‘अना’ क़ासमी
- ग़ज़ल तुमको सुनाना चाहता हूं / ‘अना’ क़ासमी
- जिसने जितने मन जीते हैं उसके ही आधार पे है / ‘अना’ क़ासमी
- अब हलो हाय में ही बात हुआ करती है / ‘अना’ क़ासमी
- छू जाये दिल को ऐसा कोई फ़न अभी कहाँ / ‘अना’ क़ासमी
- ये मक़ामे इश्क है कौन सा, कि मिज़ाज सारे बदल गये / ‘अना’ क़ासमी
- तुमने हाँ कर दी तो हमने भी सनम रख ही दिया / ‘अना’ क़ासमी
- उन निगाहों का मोरचा टूटा / ‘अना’ क़ासमी
- चलो जाओ ,हटो कर लो तुम्हें जो वार करना है / ‘अना’ क़ासमी
- चुभन तो है मगर पैहम कहाँ है / ‘अना’ क़ासमी
- इश्क़ का हौसला नहीं हम में / ‘अना’ क़ासमी
- नाराज़ किस लिए हैं हुआ है हुज़ूर क्या / ‘अना’ क़ासमी
- लुत्फ़ के साथ चुभन हो जैसे / ‘अना’ क़ासमी
- सुना कर हाले-दिल इक अजनबी को / ‘अना’ क़ासमी
- तलाश जारी है नामो-निशां नहीं / ‘अना’ क़ासमी
- कब चली है मिरी चलेगी / ‘अना’ क़ासमी
- शौक़े-परवाज़ न बिखरे हुये पर में रखना / ‘अना’ क़ासमी
- आप गर दिल का कारोबार / ‘अना’ क़ासमी
- किसी पे ग़्ाुस्सा उठे है किसी पे प्यार उठे / ‘अना’ क़ासमी
- सोच समझ कर फै़सला करना मत करना जज़्बात में तुम / ‘अना’ क़ासमी
- अपने पुरखों की शान देखो तो / ‘अना’ क़ासमी
- मुहब्बत कोई भी ज़िद ठानती / ‘अना’ क़ासमी
- सुना है इन दिनों रतबुल्लिसां / ‘अना’ क़ासमी
- इक ऐसी बात को वो कह गया रवानी में / ‘अना’ क़ासमी
- एक बुझता हुआ दिया और मैं / ‘अना’ क़ासमी
- सच कहूं तो वाक़ई तुम आज पछताने को हो / ‘अना’ क़ासमी
- ये तुमने बात छेड़ी है कहां की / ‘अना’ क़ासमी
- वो अष्क आंख को सांसों को हिचकियां देकर/ ‘अना’ क़ासमी
- अब भी आंखों में धार है कि नहीं / ‘अना’ क़ासमी
- गीली साड़ी अभी भी है गीली / ‘अना’ क़ासमी
- कोई आका नहीं ग़्ाुलाम नहीं / ‘अना’ क़ासमी
- अक्स ग़ज़लों को तेरा गर मिल जाये / ‘अना’ क़ासमी
- ये कब कहा कि तुमसे मुहब्बत नहीं रही / ‘अना’ क़ासमी