भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"मनमोहन 'तल्ख़'" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKParichay |चित्र=MANMOHAN_TALKH.jpg |नाम=मनमोहन 'तल्ख़' |उपनाम= |ज...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
(एक अन्य सदस्य द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 14: | पंक्ति 14: | ||
}} | }} | ||
{{KKShayar}} | {{KKShayar}} | ||
− | * [[ / मनमोहन 'तल्ख़']] | + | ====ग़ज़लें==== |
+ | * [[आएँ आँसू अगर आँखों में तो बस पी जाएँ / मनमोहन 'तल्ख़']] | ||
+ | * [[अभी शुऊर ने बस दुखती रग टटोली है / मनमोहन 'तल्ख़']] | ||
+ | * [[बहुत हैं रोज़-ए-सवाब-ओ-गुनाह देखने को / मनमोहन 'तल्ख़']] | ||
+ | * [[खोलेगा राज़ कौन तेरी काएनात के / मनमोहन 'तल्ख़']] | ||
+ | * [[किसी के साथ न होने के दुख भी झेले हैं / मनमोहन 'तल्ख़']] | ||
+ | * [[कुछ देर तो सब कुछ टूटने का माहौल रहा / मनमोहन 'तल्ख़']] | ||
+ | * [[मैं ख़ुद को हर इक सम्त से घेर कर / मनमोहन 'तल्ख़']] | ||
+ | * [[साबित ये करूँगा के हूँ या नहीं हूँ मैं / मनमोहन 'तल्ख़']] | ||
+ | * [[सदाओं का न ख़ला देख कर डरा मझ को / मनमोहन 'तल्ख़']] | ||
+ | * [[ये शहर शहर सर-ए-आम अब मुनादी है / मनमोहन 'तल्ख़']] | ||
+ | * [[यूँही नहीं हम बोलते जाते ये अपनी मजबूरी है / मनमोहन 'तल्ख़']] | ||
+ | * [[ज़माना है के मुझे रोज़ शाम डस्ता है / मनमोहन 'तल्ख़']] | ||
+ | * [[ज़िक्र है दर्द का इक शहर बसा है मुझ से / मनमोहन 'तल्ख़']] |
00:40, 1 अक्टूबर 2016 के समय का अवतरण
मनमोहन 'तल्ख़'
जन्म | 1931 |
---|---|
निधन | 2001 |
जन्म स्थान | |
कुछ प्रमुख कृतियाँ | |
विविध | |
जीवन परिचय | |
मनमोहन 'तल्ख़' / परिचय |
ग़ज़लें
- आएँ आँसू अगर आँखों में तो बस पी जाएँ / मनमोहन 'तल्ख़'
- अभी शुऊर ने बस दुखती रग टटोली है / मनमोहन 'तल्ख़'
- बहुत हैं रोज़-ए-सवाब-ओ-गुनाह देखने को / मनमोहन 'तल्ख़'
- खोलेगा राज़ कौन तेरी काएनात के / मनमोहन 'तल्ख़'
- किसी के साथ न होने के दुख भी झेले हैं / मनमोहन 'तल्ख़'
- कुछ देर तो सब कुछ टूटने का माहौल रहा / मनमोहन 'तल्ख़'
- मैं ख़ुद को हर इक सम्त से घेर कर / मनमोहन 'तल्ख़'
- साबित ये करूँगा के हूँ या नहीं हूँ मैं / मनमोहन 'तल्ख़'
- सदाओं का न ख़ला देख कर डरा मझ को / मनमोहन 'तल्ख़'
- ये शहर शहर सर-ए-आम अब मुनादी है / मनमोहन 'तल्ख़'
- यूँही नहीं हम बोलते जाते ये अपनी मजबूरी है / मनमोहन 'तल्ख़'
- ज़माना है के मुझे रोज़ शाम डस्ता है / मनमोहन 'तल्ख़'
- ज़िक्र है दर्द का इक शहर बसा है मुझ से / मनमोहन 'तल्ख़'