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"भारतेंदु हरिश्चंद्र" के अवतरणों में अंतर

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(भारतेंदु हरिश्चंद्र की रचनाएँ)
(भारतेन्दु 'रसा' की ग़ज़लें)
 
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[[Category:भारतेंदु हरिश्चंद्र]]
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{{KKGlobal}}
==जीवन परिचय==
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|चित्र=Bhartendu.jpg
भारतेंदु हरिश्चंद्र का जन्म 1850 में काशी के एक प्रतिष्ठित वैश्य परिवार में हुआ। उनके पिता गोपाल चंद्र एक अच्छे कवि थे और गिरधर दास उपनाम से कविता लिखा करते थे।
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|नाम=भारतेंदु हरिश्चंद्र
 
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|उपनाम=ग़ज़लें कहते हुए ’रसा’ उपनाम लिखते थे
====शिक्षा====
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|जन्म=09 सितम्बर 1850
भारतेंदु जी की अल्पावस्था में ही उनके माता-पिता का देहांत हो गया था अतः स्कूली शिक्षा प्राप्त करने में भारतेंदु जी असमर्थ रहे। घर पर रह कर हिंदी, मराठी, बंगला, उर्दू तथा अंग्रेज़ी का अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया।
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|जन्मस्थान=काशी, उत्तर प्रदेश, भारत
 
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|मृत्यु=06 जनवरी 1885
भारतेंदु जी को काव्य-प्रतिभा अपने पिता से विरासत के रूप में मिली थी। उन्होंने पांच वर्ष की अवस्था में ही निम्नलिखित दोहा बनाकर अपने पिता को सुनाया और सुकवि होने का आशीर्वाद प्राप्त किया-
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|कृतियाँ=भक्तसर्वस्व (1870), प्रेममालिका (1871), प्रेम-माधुरी (1875), प्रेम-तरंग (1877), उत्तरार्द्ध-भक्तमाल (1876-77), प्रेम-प्रलाप (1877), गीत-गोविंदानंद (1877-78), होली (1879), मधु-मुकुल (1881), राग-संग्रह (1880), वर्षा-विनोद (1880), फूलों का गुच्छा (1882), प्रेम-फुलवारी  (1883), कृष्ण-चरित्र (1883)
 
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|विविध=हिन्दी साहित्य के पितामह
लै ब्योढ़ा ठाढ़े भए श्री अनिरुध्द सुजान।
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|अंग्रेज़ीनाम=Bhartendu Harishchandra
 
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|जीवनी=[[भारतेंदु हरिश्चंद्र / परिचय]]
वाणा सुर की सेन को हनन लगे भगवान।।
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|shorturl=bhartendu
 
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|gadyakosh=भारतेंदु हरिश्चंद्र
====साहित्य सेवा====
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}}
 
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{{KKShayar}}
पंद्रह वर्ष की अवस्था से ही भारतेंदु ने साहित्य सेवा प्रारंभ कर दी थी, अठारह वर्ष की अवस्था में उन्होंने कवि वचन-सुधा नामक पत्र निकाला जिसमें उस समय के बड़े-बड़े विद्वानों की रचनाएं छपती थीं।
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{{KKCatUttarPradesh}}
 
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{{KKCatBrajBhashaRachnakaar}}
====समाज सेवा====
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__NOTOC__
 
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====संग्रह====
साहित्य सेवा के साथ-साथ भारतेंदु जी की समाज सेवा भी चलती थी। उन्होंने कई समस्याओं की स्थापना में अपना योग दिया। दीन-दुखियों, साहित्यिकों तथा मित्रों की सहायता करना वे अपना कर्तव्य समझते थे।
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* '''[[उतरार्द्ध भक्तमाल / भारतेंदु हरिश्चंद्र]]'''
धन के अत्यधिक व्यय से भारतेंदु जी ॠणी बन गए और दुश्चिंताओं के कारण उनका शरीर शिथिल होता गया। परिणाम स्वरूप 1885 में अल्पायु में ही मृत्यु ने उन्हें ग्रस लिया।
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* '''[[होली / भारतेंदु हरिश्चंद्र]]'''
 
+
* '''[[वर्षा-विनोद / भारतेंदु हरिश्चंद्र]]'''
==कृतियां==
+
* '''[[उरहना / भारतेंदु हरिश्चंद्र]]'''
 
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* '''[[होली डफ की / भारतेंदु हरिश्चंद्र]]'''
* भारतेंदु कृत-काव्य - ग्रंथों में दान-लीला, प्रेम तरंग, प्रेम प्रलाप, कृष्ण चरित्र आदि उनके भक्ति संबंधी काव्य हैं।
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* '''[[नये जमाने की मुकरी / भारतेंदु हरिश्चंद्र]]'''
* सतसई श्रृंगार, होली मधु मुकुल आदि श्रृंगार-प्रधान रचनाएं हैं।
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* '''[[संस्कृत लावनी / भारतेंदु हरिश्चंद्र]]'''
* भारत वीरत्व, विजय-बैजयंती सुमनांजलि आदि उनकी राष्ट्रीय कवियों के संग्रह हैं।
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* '''[[बसंत होली / भारतेंदु हरिश्चंद्र]]'''
* बंदर-सभा, बकरी का विलाप, हास्य-व्यंग्य प्रधान काव्य कृतियां हैं।
+
* '''[[उर्दू का स्यापा / भारतेंदु हरिश्चंद्र]]'''
 
+
* '''[[प्रबोधिनी / भारतेंदु हरिश्चंद्र]]'''
==काव्यगत विशेषताएं==
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* '''[[अपवर्गदाष्टक / भारतेंदु हरिश्चंद्र]]'''
 
+
* '''[[अथ श्री सर्वोत्तम-स्तोत्र (भाषा) / भारतेंदु हरिश्चंद्र]]'''
====वर्ण्य विषय====
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* '''[[निवेदन-पंचक / भारतेंदु हरिश्चंद्र]]'''
भारतेंदु जी की यह विशेषता रही कि जहां उन्होंने ईश्वर भक्ति आदि प्राचीन विषयों पर कविता लिखी वहां उन्होंने समाज सुधार, राष्ट्र प्रेम आदि नवीन विषयों को भी अपनाया। अतः विषय के अनुसार उनकी कविता श्रृंगार-रस प्रधान, भक्ति-रस प्रधान, सामाजिक समस्या प्रधान तथा राष्ट्र प्रेम प्रधान हैं।
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* '''[[अपवर्ग-पंचक / भारतेंदु हरिश्चंद्र]]'''
 
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* '''[[बन्दर सभा / भारतेंदु हरिश्चंद्र]]'''
=====श्रृंगार रस प्रधान=====
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* '''[[जातीय संगीत / भारतेंदु हरिश्चंद्र]]'''
 
+
* '''[[स्फुट कविताएँ / भारतेंदु हरिश्चंद्र]]'''
भारतेंदु जी ने श्रृंगार के संयोग और वियोग दोनों ही पक्षों का सुंदर चित्रण किया है। वियोगावस्था का एक चित्र देखिए-
+
* '''[[भक्तसर्वस्व / भारतेंदु हरिश्चंद्र]]'''
 
+
* '''[[प्रेममालिका / भारतेंदु हरिश्चंद्र]]'''
देख्यो एक बारहूं न नैन भरि तोहि याते
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* '''[[प्रेम-माधुरी / भारतेंदु हरिश्चंद्र]]'''
 
+
* '''[[वर्षा-विनोद / भारतेंदु हरिश्चंद्र]]'''
जौन जौन लोक जैहें तही पछतायगी।
+
* '''[[प्रेमाश्रु-वर्षण / भारतेंदु हरिश्चंद्र]]'''
 
+
* '''[[प्रेम-तरंग / भारतेंदु हरिश्चंद्र]]'''
बिना प्रान प्यारे भए दरसे तिहारे हाय,
+
* '''[[प्रेम-प्रलाप / भारतेंदु हरिश्चंद्र]]'''
 
+
* '''[[गीत-गोविंदानंद / भारतेंदु हरिश्चंद्र]]'''
देखि लीजो आंखें ये खुली ही रह जायगी।
+
* '''कार्तिक-स्नान / भारतेंदु हरिश्चंद्र'''
 
+
* '''वैशाख-माहात्म्य / भारतेंदु हरिश्चंद्र'''
=====भक्ति प्रधान=====
+
* '''प्रेम सरोवर / भारतेंदु हरिश्चंद्र'''
भारतेंदु जी कृष्ण के भक्त थे और पुष्टि मार्ग के मानने वाले थे। उनको कविता में सच्ची भक्ति भावना के दर्शन होते हैं। वे कामना करते हैं -
+
* '''जैन-कौतूहल / भारतेंदु हरिश्चंद्र'''
 
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* '''सतसई-सिंगार / भारतेंदु हरिश्चंद्र'''
बोल्यों करै नूपुर स्त्रीननि के निकट सदा
+
* '''मधु-मुकुल / भारतेंदु हरिश्चंद्र'''
 
+
* '''राग-संग्रह / भारतेंदु हरिश्चंद्र'''
पद तल मांहि मन मेरी बिहरयौ करै।
+
* '''विनय-प्रेम पचासा / भारतेंदु हरिश्चंद्र'''
 
+
* '''फूलों का गुच्छा / भारतेंदु हरिश्चंद्र'''
बाज्यौ करै बंसी धुनि पूरि रोम-रोम,
+
* '''प्रेम-फुलवारी / भारतेंदु हरिश्चंद्र'''
 
+
* '''कृष्ण-चरित / भारतेंदु हरिश्चंद्र'''
मुख मन मुस्कानि मंद मनही हास्यौ करै।
+
* '''छोटे प्रबंध तथा मुक्तक रचनाएँ / भारतेंदु हरिश्चंद्र'''
 
+
* '''सुमनोऽज्जलि / भारतेंदु हरिश्चंद्र'''
=====सामाजिक समस्या प्रधान=====
+
* '''देवी छद्म-लीला / भारतेंदु हरिश्चंद्र'''
 
+
* '''प्रातः स्मरण मंगल-पाठ / भारतेंदु हरिश्चंद्र'''
भारतेंदु जी ने अपने काव्य में अनेक सामाजिक समस्याओं का चित्रण किया। उन्होंने समाज में व्याप्त कुरीतियों पर तीखे व्यंग्य किए। महाजनों और रिश्वत लेने वालों को भी उन्होंने नहीं छोड़ा-
+
* '''दैन्य-प्रलाप / भारतेंदु हरिश्चंद्र'''
चूरन अमले जो सब खाते,
+
* '''तन्मय लीला / भारतेंदु हरिश्चंद्र'''
दूनी रिश्वत तुरत पचावें।
+
* '''दान-लीला / भारतेंदु हरिश्चंद्र'''
चूरन सभी महाजन खाते,
+
* '''रानी छद्म-लीला / भारतेंदु हरिश्चंद्र'''
जिससे जमा हजम कर जाते।
+
* '''स्फुट समस्या / भारतेंदु हरिश्चंद्र'''
 
+
* '''मुँह-दिखावनी / भारतेंदु हरिश्चंद्र'''
=====राष्ट्र-प्रेम प्रधान=====
+
* '''प्रात-समीरन / भारतेंदु हरिश्चंद्र'''
 
+
* '''बकरी विलाप / भारतेंदु हरिश्चंद्र'''
भारतेंदु जी के काव्य में राष्ट्र-प्रेम भी भावना स्पष्ट दृष्टिगोचर होती है। भारत के प्राचीन गौरव की झांकी वे इन शब्दों में प्रस्तुत करते हैं -
+
* '''स्वरूप-चिन्तन / भारतेंदु हरिश्चंद्र'''
भारत के भुज बल जग रच्छित,
+
* '''श्री राजकुमार-शुभागमन-वर्णन / भारतेंदु हरिश्चंद्र'''
भारत विद्या लहि जग सिच्छित।
+
* '''भारत-भिक्षा / भारतेंदु हरिश्चंद्र'''
भारत तेज जगत विस्तारा,
+
* '''श्री पंचमी / भारतेंदु हरिश्चंद्र'''
भारत भय कंपिथ संसारा।
+
* '''मानसोपायन / भारतेंदु हरिश्चंद्र'''
 
+
* '''प्रातः स्मरण स्तोत्र / भारतेंदु हरिश्चंद्र'''
==प्राकृतिक चित्रण==
+
* '''हिन्दी की उन्नति पर व्याख्यान / भारतेंदु हरिश्चंद्र'''
 
+
* '''मनोमुकुल-माला / भारतेंदु हरिश्चंद्र'''
प्रकृति चित्रण में भारतेंदु जी को अधिक सफलता नहीं मिली, क्योंकि वे मानव-प्रकृति के शिल्पी थे, बाह्य प्रकृति में उनका मर्मपूर्ण रूपेण नहीं रम पाया। अतः उनके अधिकांश प्रकृति चित्रण में मानव हृदय को आकर्षित करने की शक्ति का अभाव है।
+
* '''भाषा सहज / भारतेंदु हरिश्चंद्र'''
चंद्रावली नाटिका के यमुना-वर्णन में अवश्य सजीवता है तथा उसकी उपमाएं और उत्प्रेक्षाएं नवीनता लिए हुए हैं-
+
* '''श्री राज-राजेश्वरी स्तुति / भारतेंदु हरिश्चंद्र'''
कै पिय पद उपमान जान यह निज उर धारत,
+
* '''वेणु-गीति / भारतेंदु हरिश्चंद्र'''
कै मुख कर बहु भृंगन मिस अस्तुति उच्चारत।
+
* '''श्री नाथ-स्तुति / भारतेंदु हरिश्चंद्र'''
कै ब्रज तियगन बदन कमल की झलकत झांईं,
+
* '''पुरुषोत्तम-पंचक / भारतेंदु हरिश्चंद्र'''
कै ब्रज हरिपद परस हेतु कमला बहु आईं।
+
* '''भारत-वीरत्व / भारतेंदु हरिश्चंद्र'''
 
+
* '''श्री सीता-वल्लभ-स्तोत्र / भारतेंदु हरिश्चंद्र'''
==भाषा==
+
* '''श्री रामलीला / भारतेंदु हरिश्चंद्र'''
भारतेंदु जी के काव्य की भाषा प्रधानतः ब्रज भाषा है। उन्होंने ब्रज भाषा के अप्रचलित शब्दों को छोड़ कर उसके परिकृष्ट रूप को अपनाया। उनकी भाषा में जहां-तहां उर्दू और अंग्रेज़ी के प्रचलित शब्द भी जाते हैं।
+
* '''भीष्मस्तवराज / भारतेंदु हरिश्चंद्र'''
भारतेंदु जी की भाषा में कहीं-कहीं व्याकरण संबंधी अशुध्दियां भी देखने को मिल जाती हैं। मुहावरों का प्रयोग कुशलतापूर्वक हुआ है। भारतेंदु जी की भाषा सरल और व्यवहारिक है।
+
* '''मान-लीला फूल-बुझौअल / भारतेंदु हरिश्चंद्र'''
 
+
* '''विजय-बल्लरी / भारतेंदु हरिश्चंद्र'''
==शैली==
+
* '''विजयिनी विजय-पताका या वैजयंती / भारतेंदु हरिश्चंद्र'''
भारतेंदु जी के काव्य में निम्नलिखित शैलियों के दर्शन होते हैं -
+
* '''रिपनाष्टक / भारतेंदु हरिश्चंद्र'''
1. रीति कालीन रसपूर्ण अलंकार शैली - श्रृंगारिक कविताओं में।
+
====भारतेन्दु की दुर्लभ रचना====
2. भावात्मक शैली - भक्ति के पदों में।
+
* '''[[दशरथ विलाप / भारतेंदु हरिश्चंद्र]]'''
3. व्यंग्यात्मक शैली - समाज-सुधार की रचनाओं में।
+
====प्रतिनिधि रचनाएँ====
4. उद्बोधन शैली - देश-प्रेम की कविताओं में।
+
* [[रोअहूं सब मिलिकै / भारतेंदु हरिश्चंद्र]]
 
+
* [[चूरन का लटका / भारतेंदु हरिश्चंद्र]]
==रस==
+
* [[चने का लटका / भारतेंदु हरिश्चंद्र]]
भारतेंदु जी ने लगभग सभी रसों में कविता की है। श्रृंगार और शांत की प्रधानता है। श्रृंगार के दोनों पक्षों का भारतेंदु जी ने सुंदर वर्णन किया है। उनके काव्य में हास्य रस की भी उत्कृष्ट योजना मिलती है।
+
* [[मुकरियाँ / भारतेंदु हरिश्चंद्र]]
 
+
* [[हरी हुई सब भूमि / भारतेंदु हरिश्चंद्र]]
==छंद==
+
* [[परदे में क़ैद औरत की गुहार / भारतेंदु हरिश्चंद्र]]
भारतेंदु जी ने अपने समय में प्रचलित प्रायः सभी छंदों को अपनाया है। उन्होंने केवल हिंदी के ही नहीं उर्दू, संस्कृत, बंगला भाषा के छंदों को भी स्थान दिया है। उनके काव्य में संस्कृत के बसंत तिलका, शार्दूल, विक्रीड़ित, शालिनी आदि हिंदी के चौपाई, छप्पय, रोला, सोरठा, कुंडलियां कवित्त, सवैया घनाछरी आदि, बंगला के पयार तथा उर्दू के रेखता, ग़ज़ल छंदों का प्रयोग हुआ है। इनके अतिरिक्त भारतेंदु जी कजली, ठुमरी, लावनी, मल्हार, चैती आदि लोक छंदों को भी व्यवहार में लाए हैं।
+
* [[ऊधो जो अनेक मन होते / भारतेंदु हरिश्चंद्र]]
 
+
* [[गंगा-वर्णन / भारतेंदु हरिश्चंद्र]]
==अलंकार==
+
* [[यमुना-वर्णन / भारतेंदु हरिश्चंद्र]]
अलंकारों का प्रयोग भारतेंदु जी के काव्य में सहज रूप से हुआ है। उपमा, उत्प्रेक्षा, रूपक और संदेह अलंकारों के प्रति भारतेंदु जी की अधिक रुचि है। शब्दालंकारों को भी स्थान मिला है।
+
* [[अंग्रेज स्तोत्र / भारतेंदु हरिश्चंद्र]]
निम्न पंक्तियों में उत्प्रेक्षा और अनुप्रास अलंकार की योजना देखिए-
+
* [[अथ मदिरास्तवराज / भारतेंदु हरिश्चंद्र]]
तरनि तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाए।
+
झुके कूल सों जल परसन हित मनहु सुहाए।।
+
 
+
==साहित्य में स्थान==
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आधुनिक हिंदी साहित्य में भारतेंदु जी का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। भारतेंदु बहूमुखी प्रतिभा के स्वामी थे। कविता, कहानी, नाटक, उपन्यास, निबंध आदि सभी क्षेत्रों में उनकी देन अपूर्व है।
+
भारतेंदु जी हिंदी में नव जागरण का संदेश लेकर अवतरित हुए। उन्होंने हिंदी के सर्वांगीण विकास में महत्वपूर्ण कार्य किया। भाव, भाषा और शैली में नवीनता तथा मौलिकता का समावेश करके उन्हें आधुनिक काल के अनुरूप बनाया।
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आधुनिक हिंदी जन्म के वे जन्मदाता माने जाते हैं। हिंदी के नाटकों का सूत्रपात भी उन्हीं के द्वारा हुआ।
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भारतेंदु जी अपने समय के साहित्यिक नेता थे। उनसे कितने ही प्रतिभाशाली लेखकों को जन्म मिला। मातृ-भाषा की सेवा में उन्होंने अपना जीवन ही नहीं संपूर्ण धन भी अर्पित कर दिया। हिंदी भाषा की उन्नति उनका मूलमंत्र था -
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निज भाषा उन्नति लहै सब उन्नति को मूल।
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बिन निज भाषा ज्ञान के मिटे न हिय को शूल।।
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अपनी इन्हीं विशेषताओं के कारण भारतेंदु हिंदी साहित्याकाश के एक दैदिप्यमान नक्षत्र बन गए और उनका युग भारतेंदु युग के नाम से प्रसिध्द हुआ।
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==भारतेंदु हरिश्चंद्र की रचनाएँ ==
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* [[मातृभाषा प्रेम पर दोहे / भारतेंदु हरिश्चंद्र]]
 
* [[मातृभाषा प्रेम पर दोहे / भारतेंदु हरिश्चंद्र]]
 
* [[पद / भारतेंदु हरिश्चंद्र]]
 
* [[पद / भारतेंदु हरिश्चंद्र]]
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* [[हमहु सब जानति लोक की चालनि / भारतेंदु हरिश्चंद्र]]
 +
* [[नींद आती ही नहीं...(हज़ल) /भारतेंदु हरिश्वंद्र]]
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* [[गाती हूँ मैं...(हज़ल) / भारतेंदु हरिश्चन्द्र]]
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* [[वह अपनी नाथ दयालुता / भारतेंदु हरिश्चंद्र]]
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* [[कहाँ करुणानिधि केशव सोए / भारतेंदु हरिश्चंद्र]]
 +
* [[जगत में घर की फूट बुरी / भारतेंदु हरिश्चंद्र]]
 +
* [[रोकहिं जौं तो अमंगल होय / भारतेंदु हरिश्चंद्र]]
 +
* [[मारग प्रेम को को समझै / भारतेंदु हरिश्चंद्र]]
 +
* [[काले परे कोस चलि चलि थक गए पाय / भारतेंदु हरिश्चंद्र]]
 +
* [[इन दुखियन को न चैन सपनेहुं मिल्यौ / भारतेंदु हरिश्चंद्र]]
 +
* [[धन्य ये मुनि वृन्दाबन बासी / भारतेंदु हरिश्चंद्र]]
 +
* [[रहैं क्यौं एक म्यान असि दोय / भारतेंदु हरिश्चंद्र]]
 +
* [[लहौ सुख सब विधि भारतवासी / भारतेंदु हरिश्चंद्र]]
 +
* [[अथ अंकमयी / भारतेंदु हरिश्चंद्र]]
 +
* [[हरि-सिर बाँकी बिराजै / भारतेंदु हरिश्चंद्र]]
 +
* [[सखी री ठाढ़े नंदकिसोर / भारतेंदु हरिश्चंद्र]]
 +
* [[हरि को धूप-दीप लै कीजै / भारतेंदु हरिश्चंद्र]]
 +
* [[सुनौ सखि बाजत है मुरली / भारतेंदु हरिश्चंद्र]]
 +
* [[बैरिनि बाँसुरी फेरि बजी / भारतेंदु हरिश्चंद्र]]
 +
* [[बँसुरिआ मेरे बैर परी / भारतेंदु हरिश्चंद्र]]
 +
* [[सखी हम बंसी क्यों न भए / भारतेंदु हरिश्चंद्र]]
 +
* [[सखी हम काह करैं कित जायं /भारतेंदु हरिश्चंद्र]]
 +
* [[मेरे नयना भये चकोर  / भारतेंदु हरिश्चंद्र]]
 +
* [[ब्रज के लता पता मोहिं कीजै / भारतेंदु हरिश्चंद्र]]
 +
* [[होली / भारतेंदु हरिश्चंद्र]]
 +
* [[भारत के भुज-बल जग रक्षित / भारतेंदु हरिश्चंद्र]]
 +
* भारत जननि जिय क्यों उदास / भारतेंदु हरिश्चंद्र
 +
* लखौ किन भारतवासिन की गति / भारतेंदु हरिश्चंद्र
 +
* [[सब भाँति दैव प्रतिकूल... / भारतेंदु हरिश्चंद्र]]
 +
* अंधेर नगरी अनबूझ राजा / भारतेंदु हरिश्चंद्र
 +
* दोहे और सोरठे / भारतेंदु हरिश्चंद्र
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====भारतेन्दु 'रसा' की ग़ज़लें====
 +
* [[फिर आई फस्ले गुल फिर जख़्मदह रह-रह के पकते हैं / भारतेंदु हरिश्चंद्र]]
 +
* [[आ गई सर पर कज़ा लो सारा सामाँ रह गया / भारतेंदु हरिश्चंद्र]]
 +
* [[अजब जोबन है गुल पर आमदे फ़स्ले बहारी है / भारतेंदु हरिश्चंद्र]]
 +
* [[दिल आतिशे हिजराँ से जलाना नहीं अच्छा / भारतेंदु हरिश्चंद्र]]
 +
* [[उठा के नाज़ से दामन भला किधर को चले / भारतेंदु हरिश्चंद्र]]
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* [[जहाँ देखो वहाँ मौजूद मेरा कृष्ण प्यारा है / भारतेंदु हरिश्चंद्र]]
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* [[फ़सादे दुनिया मिटा चुके हैं हुसूले हस्ती उठा चुके हैं / भारतेंदु हरिश्चंद्र]]
 +
* [[दश्त पैमाई का गर कस्द मुकर्रर होगा / भारतेंदु हरिश्चंद्र]]
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* [[गले मुझको लगा लो ए दिलदार होली में / भारतेंदु हरिश्चंद्र]]
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* [[नींद आती ही नहीं धड़के की इक आवाज़ से / भारतेंदु हरिश्चंद्र]]
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* [[बैठे जो शाम से तेरे दर पर सहर हुई / भारतेंदु हरिश्चंद्र]]
 +
* [[उसको शाहनशही हर बार मुबारक होवे / भारतेंदु हरिश्चंद्र]]
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* [[ख़याले नावके मिजगाँ में बस हम सर पटकते हैं / भारतेंदु हरिश्चंद्र]]
 +
* [[ग़ज़ब है सुरमः देकर आज वह बाहर निकलते हैं / भारतेंदु हरिश्चंद्र]]
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* [[फिर मुझे लिखना जो वस्फ़-ए-रू-ए-जानाँ हो गया / भारतेंदु हरिश्चंद्र]]
 +
* [[दिल मिरा तीर-ए-सितम-गर का निशाना हो गया / भारतेंदु हरिश्चंद्र]]
 +
* [[असीरान-ए-क़फ़स सेहन-ए-चमन को याद करते हैं / भारतेंदु हरिश्चंद्र]]
 +
* [[रहे न एक भी बेदाद-गर सितम बाक़ी / भारतेंदु हरिश्चंद्र]]
 +
* [[बाल बिखेरे आज परी तुर्बत पर मेरे आएगी / भारतेंदु हरिश्चंद्र]]
 +
* [[बुत-ए-काफ़िर जो तू मुझ से ख़फ़ा है / भारतेंदु हरिश्चंद्र]]
 +
* चाह जिसकी थी वही यूसुफ़े सानी निकला / भारतेंदु हरिश्चंद्र
 +
* बख्त ने फिर मुझे इस साल दिखाई होली / भारतेंदु हरिश्चंद्र
 +
* चम्पई गरचे दुपट्टा है तो गुलदार है बेल / भारतेंदु हरिश्चंद्र
 +
* अल्ला रे लुल्फ़े ज़बह की कहता हूँ बार-बार / भारतेंदु हरिश्चंद्र
 +
* जुल्फ़ों को लेके हाथ में कहने लगा वह शोख / भारतेंदु हरिश्चंद्र
 +
* जब कभी उसकी याद पड़ती है / भारतेंदु हरिश्चंद्र
 +
* बर्कदम क्यों हाथ में शमशीर है / भारतेंदु हरिश्चंद्र
 +
* है कमाँ अबरू तो मिजगाँ तीर है / भारतेंदु हरिश्चंद्र

13:49, 28 अप्रैल 2017 के समय का अवतरण

भारतेंदु हरिश्चंद्र
www.kavitakosh.org/bhartendu
Bhartendu.jpg
जन्म 09 सितम्बर 1850
निधन 06 जनवरी 1885
उपनाम ग़ज़लें कहते हुए ’रसा’ उपनाम लिखते थे
जन्म स्थान काशी, उत्तर प्रदेश, भारत
कुछ प्रमुख कृतियाँ
भक्तसर्वस्व (1870), प्रेममालिका (1871), प्रेम-माधुरी (1875), प्रेम-तरंग (1877), उत्तरार्द्ध-भक्तमाल (1876-77), प्रेम-प्रलाप (1877), गीत-गोविंदानंद (1877-78), होली (1879), मधु-मुकुल (1881), राग-संग्रह (1880), वर्षा-विनोद (1880), फूलों का गुच्छा (1882), प्रेम-फुलवारी (1883), कृष्ण-चरित्र (1883)
विविध
हिन्दी साहित्य के पितामह
जीवन परिचय
भारतेंदु हरिश्चंद्र / परिचय
कविता कोश पता
www.kavitakosh.org/bhartendu

संग्रह

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प्रतिनिधि रचनाएँ

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