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15:52, 24 मार्च 2020 के समय का अवतरण
अब्दुल अहद ‘साज़’
जन्म | 16 अक्तूबर 1950 |
---|---|
उपनाम | साज़ |
जन्म स्थान | मुम्बई, महाराष्ट्र, भारत |
कुछ प्रमुख कृतियाँ | |
ख़ामोशी बोल उठी है (1990), सरगोशियाँ ज़मानों की (2003) | |
विविध | |
महाराष्ट्र उर्दू साहित्य अकादमी अवार्ड (1991), जेमिनी अकादमी हरियाणा अवार्ड (1997), पश्चिम बंगाल उर्दू अकादमी अवार्ड (2003), बिहार उर्दू अकादमी अवार्ड (2003)। महाराष्ट्र स्टेट बोर्ड की युवा भारती (कक्षा 12 ) तथा बाल भारती (कक्षा 5,6,9 ) में बाल कविताएँ शामिल । | |
जीवन परिचय | |
अब्दुल अहद ‘साज़’ / परिचय |
- अज़दवाजी ज़िन्दगी भी और तिजारत भी अदब भी / अब्दुल अहद 'साज़'
- ख़राब-ए-दर्द हुए ग़म-परस्तियों में रहे / अब्दुल अहद 'साज़'
- खिले हैं फूल की सूरत तेरे विसाल के दिन / अब्दुल अहद 'साज़'
- ख़ुद को औरों की तवज्जुह का तमाशा न करो / अब्दुल अहद ‘साज़’
- खुली जब आँख तो देखा के दुनिया सर पे / अब्दुल अहद 'साज़'
- जागती रात अकेली-सी लगे / अब्दुल अहद ‘साज़’
- ज़िक्र हम से बे-तलब का क्या तलबगारी के दिन / अब्दुल अहद 'साज़'
- जीतने मारका-ए-दिल वो लगातार गया / अब्दुल अहद 'साज़'
- दूर से शहरे-फ़िक्र सुहाना लगता है / अब्दुल अहद ‘साज़’
- बंद फ़सीलें शहर की तोड़ें ज़ात की / अब्दुल अहद 'साज़'
- बे-मसरफ़ बे-हासिल-ए-दुख / अब्दुल अहद 'साज़'
- मिज़ाज-ए-सहल-तलब अपना रुख़्सतें माँगे / अब्दुल अहद 'साज़'
- मैं ने अपनी रूह को अपने तन से अलग कर रक्खा है / अब्दुल अहद 'साज़'
- मैं ने कब चाहा कि मैं उस की तमन्ना हो जाऊँ / अब्दुल अहद ‘साज़’
- मौत से आगे सोच के आना फिर जी लेना / अब्दुल अहद 'साज़'
- यूँ भी दिल अहबाब के हम ने गाहे गाहे / अब्दुल अहद 'साज़'
- सोच कर भी क्या जाना जान कर भी क्या पाया / अब्दुल अहद 'साज़'
- हम अपने ज़ख़्म कुरेदते हैं वो ज़ख़्म / अब्दुल अहद 'साज़'
- हर इक लम्हे की रग में दर्द का रिश्ता / अब्दुल अहद 'साज़'
- सवाल बे-अमान बनके रह गए / अब्दुल अहद 'साज़'
- जो कुछ भी ये जहाँ की ज़माने की घर की है / अब्दुल अहद 'साज़'
- हद-ए-उफ़ुक़ पर सारा कुछ वीरान उभरता आता है / अब्दुल अहद 'साज़'
- मेरी आँखों से गुज़र कर दिल ओ जाँ में आना / अब्दुल अहद 'साज़'
- नज़र आसूदा-काम-ए-रौशनी है / अब्दुल अहद 'साज़'
- बुझ गई आग तो कमरे में धुआँ ही रखना / अब्दुल अहद 'साज़'
- जैसे कोई दायरा तकमील पर है / अब्दुल अहद 'साज़'
- ख़ुद को क्यूँ जिस्म का ज़िन्दानी करें / अब्दुल अहद 'साज़'
- बजा कि पाबन्द-ए-कूचा-ए-नाज़ हम हुए थे / अब्दुल अहद 'साज़'
- न मक़ामात न तरतीब-ए-ज़मानी अपनी / अब्दुल अहद 'साज़'
- हिसार-ए-दीद में जागा तिलिस्म-ए-बीनाई / अब्दुल अहद 'साज़'
- सामेआ लज़्ज़त-ए-बयान-ज़दा / अब्दुल अहद 'साज़'
- तब-ए-हस्सास मिरी ख़ार हुई जाती है / अब्दुल अहद 'साज़'
- जब तक शब्द के दीप जलेंगे सब आएँगे तब तक यार / अब्दुल अहद 'साज़'
- मिरी निगाहों पे जिस ने शाम ओ सहर की रानाइयाँ लिखी हैं / अब्दुल अहद 'साज़'
- लफ़्ज़ का दरिया उतरा दश्त-ए-मआनी फैला / अब्दुल अहद 'साज़'
- घुल सी गई रूह में उदासी / अब्दुल अहद 'साज़'
- हर इक धड़कन अजब आहट / अब्दुल अहद 'साज़'
- यूँ तो सौ तरह की मुश्किल सुख़नी आए हमें / अब्दुल अहद 'साज़'
- बातिन से सदफ़ के दुर-ए-नायाब खुलेंगे / अब्दुल अहद 'साज़'
- दिखाई देने के और दिखाई न देने के दरमियान सा कुछ / अब्दुल अहद 'साज़'
- सवाल का जवाब था जवाब के सवाल में / अब्दुल अहद 'साज़'
- मरने की पुख़्ता-ख़याली में जीने की ख़ामी रहने दो / अब्दुल अहद 'साज़'
- लम्हा-ए-तख़्लीक़ बख़्शा उस ने मुझ को भीक में / अब्दुल अहद 'साज़'