भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अंगिका जनेऊ गीत
Kavita Kosh से
मंडप
- असँगन निपल गहागही , माड़ब छाओल हे / अंगिका लोकगीत
- आजु माड़ब मोर सोभित भेल हे / अंगिका लोकगीत
- कुरहि खेत बाबा मटिया मँगायब / अंगिका लोकगीत
जनेऊ
- कासी मे ठाढ़ बरुआ, जनेउबा बोलै हे / अंगिका लोकगीत
- लाली पिअरी एक लेमुआ , नूनू बाबू लाली जनेउआ माँगे हे / अंगिका लोकगीत
- हरिअर लेमुआ पिअर भेल, ओकर पात पिअर भेल हे / अंगिका लोकगीत
- पिअर पिअर के पेमरी , ऊजे हरिअर बाँस बिट हे / अंगिका लोकगीत
- बाबा हो बाबा कवन बाबा, झोपड़िया बान्हि तहुँ देहो हो / अंगिका लोकगीत
- चैतहि बरुआ रूसिय गेल, बैसाखहि लौटल हे / अंगिका लोकगीत
- गँगा आरिओ पारिओ, बरुआ पुकारै हे / अंगिका लोकगीत
- काशी मे बरुआ पुकारे, हाथ जनेउआ लेल हे / अंगिका लोकगीत
- चैतहि बरुआ बिजय भेल, बैसाख पाँहुन भेल हे / अंगिका लोकगीत
- माटी कोड़ायब मड़बा भरायब , मड़बा रतन पमार माइ हे / अंगिका लोकगीत
- ऊँची त महलिया हो दादा, नीची त पोखरी / अंगिका लोकगीत
- जदुबीर, केहु न जनेउआ दै छै हे / अंगिका लोकगीत
- कुइमा में कबूतर बोलै, मड़बा पर मोर हे / अंगिका लोकगीत
- सभहाँ बैठल तोहे बाबा हो बड़का बाबा / अंगिका लोकगीत
- पलगाँ सुतल तोहे आपन बाबा, ऊजे पेट लागि दुलरुआ बरुआ हे / अंगिका लोकगीत
- हरिअर हरिअर लेमुआँ कि हरिअर / अंगिका लोकगीत
- सभहाँ बैठल तोहे बाबा हो, बावा बालक बरुआ माँगै रे जनेऊ / अंगिका लोकगीत
- बाबा हो तोहे आपनऽ बाबा, बाबा कौने बिधि जनेउआ होयत हे / अंगिका लोकगीत
- उँचियो टाल कवन बाबा, हुनका मानिक दीप जरै हे / अंगिका लोकगीत
- राम लखन के जनेउआ माय हे, अबध नगर मे / अंगिका लोकगीत
- अगे माइ, कवन बाबा मड़बा पर हे बभना करै बखेड़ा, / अंगिका लोकगीत
- काँचहि बाँस केर माड़ो, सोने पतर छाड़ल , रूपे पतर छाड़ल हे / अंगिका लोकगीत
- चैतहि बरुआ चलत भेल, बैसाख पाहुन भेल हे / अंगिका लोकगीत
- कासी के रूसल बरुआ, बनारस कैने जाय / अंगिका लोकगीत
- कवन दाइ पुनौती सूत काटल, भल रेतल हे / अंगिका लोकगीत
- इनरहि इनरहि भै गेलै सोर हे / अंगिका लोकगीत
- एक चिरैया नबी नागर , बिरिछि बिरिछि बुलै हे / अंगिका लोकगीत
- जेहि बन सिकियो न डोलै, बाघ गुजरि गेल हे / अंगिका लोकगीत
- जहि बन सिकिओ ना डोलै, बाघ गुजरि गेल हे / अंगिका लोकगीत
- रामचंदर पैसल महल घर, धानि से बिचार लेबऽ रे / अंगिका लोकगीत
- उड़ि उड़ि हित कागा सगुनियाँ, कि नित उठि भाखहुँ हे / अंगिका लोकगीत