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खड़ी बोली लोकगीत
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- मेरी पसली में दरद हुयो री मेरी माँ / खड़ी बोली
- कित रै गये थे पिया रात ने / खड़ी बोली
- बारह बरस में री जोगी आयो रे / खड़ी बोली
- जच्चा मेरी भोली / खड़ी बोली
- होलर का बाबा / खड़ी बोली
- एक रंगमहल की खूँट / खड़ी बोली
- काले री बालम / खड़ी बोली
- आर्यों का प्रण (हँसी गीत) / खड़ी बोली
- अन्दर से लाड्डो बाहर निकलो / खड़ी बोली
- लाडो मँगणा हो / खड़ी बोली
- मेरठ जिले के मेरे भातड़िए/ खड़ी बोली
- तुम तो श्याम बड़े बेख़बर हो / खड़ी बोली
- देखो सावन में हिंडोला झूलैं (कजली) / खड़ी बोली
- छैला छाय रहे मधुबन में (कजली) / खड़ी बोली
- आई सावन की बहार (कजली) / खड़ी बोली
- हरि संग डारि-डारि गलबहियाँ (कजली) / खड़ी बोली
- हरि बिन जियरा मोरा तरसे (कजली) / खड़ी बोली
- झूला झूलन हम लागी हो रामा (कजली) / खड़ी बोली
- अजहू न आयल तोहार छोटी ननदी (कजली) / खड़ी बोली
- अँगना में रौरा मचाइल चिरैयाँ सत / खड़ी बोली
- हे डोला हे डोला, हे डोला, हे डोला /खड़ी बोली
- हेरी मेरा लम्बा सहेलियों का साथ/ खड़ी बोली
- पिताजी काहे को (बिदाई गीत) / खड़ी बोली
- मत करो मन को उदास (बिदाई गीत) / खड़ी बोली
- पति पढ़ण चले / खड़ी बोली
- मेरे सिर पै बंटा टोकणी / खड़ी बोली
- कोठे ऊप्पर कोठड़ी / खड़ी बोली
- पचरंगी चीरा बाँध बीरण / खड़ी बोली
- काँकर उप्पर काँकरी (भात का गीत) / खड़ी बोली
- लाड्डो पूछै बाबा से (बारात आगमन) / खड़ी बोली
- अजी बाबा जी (फ़ेरों का गीत) / खड़ी बोली
- बीरा जो आते मैं सुणै (सावन- गीत) / खड़ी बोली
- आम्बो तलै क्यूँ खड़ी (सावन गीत) / खड़ी बोली
- नन्हीं-नन्हीं बुँदियाँ (सावन-गीत) / खड़ी बोली
- गलियों तो गलियों री बीबी (सावन-गीत) / खड़ी बोली
- ठाकै बण्टा टोकणी (पनघट-गीत) / खड़ी बोली
- सासू पनियाँ कैसे जाऊँ (पनघट-गीत) / खड़ी बोली
- बेल्ला ले रही दूध का / खड़ी बोली
- नटवर नै भेस / खड़ी बोली
- बारह बरस पीछै (विरह -गीत) / खड़ी बोली
- अरे बरसन लागे बुंदिया चला भागा पिया / खड़ी बोली
- कोऊ दिन उठ गयो मेरा हाथ / खड़ी बोली
- माई री मैं टोना करिहों / खड़ी बोली
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