ग़ज़ल
- ज़र्द पेड़ों को हरे ख़्वाब दिखाना चाहें / विकास शर्मा 'राज़'
- रात बढ़ती है तो चढ़ता है जुनूँ का दरिया / विकास शर्मा 'राज़'
- चल रहे थे नज़र जमाये हम / विकास शर्मा 'राज़'
- रोज़ ये ख़्वाब डराता है मुझे / विकास शर्मा 'राज़'
- पसे-ग़ुबार आई थी सदा मुझे / विकास शर्मा 'राज़'
- मैं अपने आसपास ही बिखर रहा था / विकास शर्मा 'राज़'
- उम्र भर एक ही सफ़र में रहा / विकास शर्मा 'राज़'
- हाथ पर हाथ रख के क्यों बैठूँ / विकास शर्मा 'राज़'
- फिर वही शब वही सितारा है / विकास शर्मा 'राज़'
- सबके आगे नहीं बिखरना है / विकास शर्मा 'राज़'
- फ़सीले-शब पे तारों ने लिखा क्या / विकास शर्मा 'राज़'
- ज़िन्दगी की हँसी उड़ाती हुई / विकास शर्मा 'राज़'
- दिल-खंडर में खड़े हुए हैं हम / विकास शर्मा 'राज़'
- कोई उसके बराबर हो गया है / विकास शर्मा 'राज़'
- अज़ल से बंद दरवाज़ा खुला तो / विकास शर्मा 'राज़'
- जिस वक़्त रौशनी का तसव्वुर मुहाल था / विकास शर्मा 'राज़'
- रात भर बर्फ़ गिरती रही है / विकास शर्मा 'राज़'
- हवा के वार पे अब वार करने वाला है / विकास शर्मा 'राज़'
- न हमसफ़र है न हमनवा है / विकास शर्मा 'राज़'
- हवा के साथ यारी हो गई है / विकास शर्मा 'राज़'
- क़ाफ़िले से अलग चले हम लोग / विकास शर्मा 'राज़'
- बदन पहले कभी छिलता नहीं था / विकास शर्मा 'राज़'
- ज़र्रों की बातों में आने वाला था / विकास शर्मा 'राज़'
- ज़ात के दश्त से गुज़रने की / विकास शर्मा 'राज़'
- ख़िज़ाँपसंद हूँ मैं, साफ़ ताड़ सकता है / विकास शर्मा 'राज़'
- रात की ग़ार में उतरने का / विकास शर्मा 'राज़'
- कैसे भी कर कोई जुगाड़ लगा / विकास शर्मा 'राज़'