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+ | * [[कभी तो मुल्तवी ज़िक्र-ए-जहाँ-गर्दां भी होना था / निश्तर ख़ानक़ाही]] | ||
+ | * [[कशिश तो अब भी गज़ब की है नाज़नीनों में / निश्तर ख़ानक़ाही]] | ||
+ | * [[ख़ुश-फ़हमियों को दर्द का रिश्ता अज़ीज़ था / निश्तर ख़ानक़ाही]] | ||
+ | * [[सहरा का पता दे न समंदर का पता दे / निश्तर ख़ानक़ाही]] | ||
+ | * [[सुरमई धूप में दिन सा नहीं होने पाता / निश्तर ख़ानक़ाही]] | ||
+ | * [[तामीर हम ने की थी हमीं ने गिरा दिए / निश्तर ख़ानक़ाही]] | ||
+ | * [[ये दश्त को दमन कोह ओ कमर किस के लिए है / निश्तर ख़ानक़ाही]] | ||
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10:44, 2 जुलाई 2013 का अवतरण
निश्तर ख़ानक़ाही
जन्म | 1930 |
---|---|
निधन | 7 मार्च 2006 |
जन्म स्थान | बिजनौर, उत्तर प्रदेश, भारत |
कुछ प्रमुख कृतियाँ | |
मोम की बैसाखियाँ (1987), ग़ज़ल मैंने छेड़ी (1997), कैसे-कैसे लोग मिले (1998), फिर लहू रोशन हुआ (2007) मेरे लहू की आग (पाँचों ग़ज़ल-संग्रह) । धमकीबाज़ी के युग में (1995), दंगे क्यों और कैसे (1995), विश्व आतंकवाद : क्यों और कैसे (1997), चुने हुए ग्यारह एकांकी (1998), मानवाधिकार : दशा और दिशा (1998), ग़ज़ल और उसका व्याकरण (1999)। | |
विविध | |
जीवन परिचय | |
निश्तर ख़ानक़ाही / परिचय |
फुटकर शेर
प्रतिनिधि रचनाएँ
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- धड़का था दिल कि प्यार का मौसम गुज़र गया / निश्तर ख़ानक़ाही
- आप अपनी आग के शोलों में जल जाते थे लोग / निश्तर ख़ानक़ाही
- क्यों बयाबाँ बयाबाँ भटकता फिरा / निश्तर ख़ानक़ाही
- तेज़ रौ पानी की तीख़ी धार पर चलते हुए / निश्तर ख़ानक़ाही
- न मिल सका कहीं ढूँढ़े से भी निशान मेरा / निश्तर ख़ानक़ाही
- अनजाने हादसात का खटका लगा रहा / निश्तर ख़ानक़ाही
- सौ बार लौह-ए-दिल से मिटाया गया मुझे / निश्तर ख़ानक़ाही
- संदल के सर्द जंगल से आ-आ के थक गई हवा / निश्तर ख़ानक़ाही
- एक पल ताअल्लुक का वो भी सानेहा जैसा / निश्तर ख़ानक़ाही
- अपने ही खेत की मट्टी से जुदा हूँ मैं तो / निश्तर ख़ानक़ाही
- मैं भी तो इक सवाल था हल ढूँढते मेरा / निश्तर ख़ानक़ाही
- हर गाम पे यह सोच के, मैं हूँ कि नहीं हूँ / निश्तर ख़ानक़ाही
- जाँ भी अपनी नहीं, दिल भी नहीं तनहा अपना /निश्तर ख़ानक़ाही
- छत से उतरा साथी इक / निश्तर ख़ानक़ाही
- दिल तेरे इंतज़ार में कल रात-भर जला / निश्तर ख़ानक़ाही
- रिश्ता ही मेरा क्या है अब इन रास्तों के साथ /निश्तर ख़ानक़ाही
- अभी तक जब हमें जीना ना आया / निश्तर ख़ानक़ाही
- हर बार नया ले के जो फ़ित्ना नहीं आया / निश्तर ख़ानक़ाही
- कभी तो मुल्तवी ज़िक्र-ए-जहाँ-गर्दां भी होना था / निश्तर ख़ानक़ाही
- कशिश तो अब भी गज़ब की है नाज़नीनों में / निश्तर ख़ानक़ाही
- ख़ुश-फ़हमियों को दर्द का रिश्ता अज़ीज़ था / निश्तर ख़ानक़ाही
- सहरा का पता दे न समंदर का पता दे / निश्तर ख़ानक़ाही
- सुरमई धूप में दिन सा नहीं होने पाता / निश्तर ख़ानक़ाही
- तामीर हम ने की थी हमीं ने गिरा दिए / निश्तर ख़ानक़ाही
- ये दश्त को दमन कोह ओ कमर किस के लिए है / निश्तर ख़ानक़ाही
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